चीन ने कहा, भारत के साथ सीमा पर स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रयासरत


china says making efforts to promote stability along border with india

 

चीनी सेना ने कहा है कि वह भारत-चीन सीमा पर सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रहा है. साथ ही कहा है कि 2017 में डोकलाम गतिरोध सुलझाने के लिए चीन ने ‘अनुकूल परिस्थितियां’ पैदा कीं.

चीनी रक्षा मंत्रालय ने ‘नए युग में चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा’ शीर्षक के साथ एक श्वेत पत्र जारी किया है. इसमें भारत, अमेरिका, रूस और अन्य देशों की तुलना में चीन के सैन्य विकास के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डाली गई है.

पत्र में विदेशी हितों की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय शांति को बनाए रखने की लिए चीनी सेना की भूमिका की सराहना की गई है. वहीं अमेरिका पर निशाना साधते हुए वैश्विक रणनीतिक स्थिरता को नजरअंदाज करने का जिम्मेदार ठहराया गया है.

2015 के बाद अब जारी श्वेत पत्र में चीन-भारतीय सीमा पर स्थिति के बारे में कहा है कि चीनी सेना “भारत के साथ सीमा पर स्थिरता एवं सुरक्षा को प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रही है और उसने डोंगलांग (डोकलाम) के शांतिपूर्ण समाधान के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा करने की दिशा में प्रभावशाली कदम उठाए.”

श्वेत पत्र में डोकलाम का जिक्र इन रिपोर्टों की पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण है जिनमें कहा गया है कि चीन गतिरोध स्थल से कुछ ही दूरी पर अपने बलों को फिर से मजबूत कर रहा है.

डोकलाम गतिरोध उस समय शुरू हुआ था जब भारतीय बलों ने पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को वहां सड़क निर्माण कार्य करने से रोक दिया था. इस गतिरोध के चलते दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए थे. पीएलए के सड़क निर्माण रोकने के बाद यह गतिरोध समाप्त हुआ था, जिसके बाद भारत ने भी अपने बलों को वहां से वापस बुला लिया.

इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच वुहान में 2018 में अनौपाचरिक शिखर वार्ता हुई थी. इस वार्ता के बाद दोनों देशों के संबंध सामान्य हुए थे.

सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भारत और चीन की ओर से नियुक्त विशेष प्रतिनिधि साल 2002 के बाद से 21 बैठकें कर चुके हैं. हालांकि साल 2002 से पहले भी दोनों देशों की बीच इस मसले पर बातचीत होती रही थी. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इस दौरान दोनों देशों की ओर से सीमा पर एक भी गोली नहीं चलाई गई और शांति बनी रही है.

जिनपिंग इस साल दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए भारत आएंगे जिससे दोनों देशों के संबंध और बेहतर होने की उम्मीद है.

श्वेत पत्र में चीन की सेना और भारत, अमेरिका, रूस और अन्य देशों की सेनाओं के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा को भी रेखांकित किया गया.

इसमें कहा है कि “वैश्विक सैन्य प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है. विश्वभर में बड़े देश अपनी सुरक्षा एवं सैन्य रणनीतियों और सैन्य संगठनात्मक ढांचों में बदलाव कर रहे हैं. वे सैन्य प्रतिद्वंदिता में रणनीतिक उल्लेखनीय उपलब्धियों को हासिल करने के लिए नए प्रकार के लड़ाकू बल विकसित कर रहे हैं.” पूर्ण सैन्य श्रेष्ठता हासिल करने के लिए अमेरिका तकनीकी और संस्थागत स्तर पर नए प्रयोग कर रहा है.

पत्र में कहा गया है कि रूस अपने ‘न्यू लुक’ सैन्य सुधार को आगे बढ़ा रहा है जबकि ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान और भारत अपने सैन्य बलों की संरचना का पुनर्संतुलन और सुधार कर रहे हैं.

श्वेत पत्र में उल्लेख किया गया है कि अंतरराष्ट्रीय सैन्य प्रतिस्पर्धा में ऐतिहासिक बदलाव हो रहे हैं. आईटी पर आधारित नई और उच्च तकनीक वाली सैन्य प्रौद्योगिकियां तेजी से विकसित हो रही हैं. सैन्य क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), क्वांटम इंफॉर्मेशन, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, क्लाउड कम्प्यूटिंग और विशाल डाटा के इस्तेमाल को भी बढ़ावा मिल रहा है. लंबी दूरी पर सटीकता से वार करने में सक्षम, कुशल और मानवरहित हथियार और उपकरण बनाने पर जोर दिया जा रहा है.

पत्र में कहा है, सूचना युद्ध के रूप में युद्ध विकसित हो रहे है और बुद्धिमत्ता युद्ध अपने शिखर पर हैं.

चार देशों के अनाधिकारिक समूह अमेरिका, भारत, जापान और आस्ट्रेलिया की ओर इशारा करते हुए पत्र में कहा गया है कि वॉशिंगटन अपने एशिया-पैसिफिक सैन्य सहयोगियों को मजबूत कर रहा है. वह सैन्य पहुंच और दखल को बढ़ा रहा है जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा जटिल बनती जा रही है.

ध्यान देने वाली बात है कि चीन अब भी एशिया-पैसिफिक शब्द का इस्तेमाल करता है जबकि अमेरिका के पश्चिमी तट और अफ्रीका के पूर्वी तटों के बीच के महासागरों और भूभाग को संबोधित करने के लिए अब अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक शब्द का इस्तेमाल शुरू कर दिया है.

इस पत्र में चीन ने अपने भारी सैन्य खर्च को कम करके दिखाने की कोशिश करते हुए कहा कि भारत, अमेरिका और अन्य देशों की तुलना में चीन रक्षा बजट पर जीडीपी का कम हिस्सा खर्च करते हैं.

‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के अनुसार चीन रक्षा क्षेत्र में खर्च के मामले में विश्व में दूसरे नंबर पर है. इस मामले में अमेरिका अव्वल है.

पत्र में कहा है कि चीन का रक्षा खर्च उचित है और देश विकास एवं सुरक्षा दोनों पर ध्यान देता है.


Big News