नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पारित


citizenship amendment bill passed in lower house of parliament

 

नागरिकता संशोधन विधेयक बिल लोकसभा में 80 के मुकाबले 311 मत से पास हो गया. इस विधेयक में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले मुसलमान शरणार्थियों को छोड़कर बाकी सभी समुदायों के शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.

गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन विधेयक को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा कि यह बीजेपी के घोषणापत्र का हिस्सा रहा है तथा 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में देश के 130 करोड़ लोगों ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाकर इसकी मंजूरी दी है.

उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस धर्म के नाम पर देश का बंटवारा ना करती तो इस विधेयक की जरूरत नहीं पड़ती. उन्होंने यह भी कहा कि यह बिल अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है और कांग्रेस अगर यह साबित कर दे वे बिल को वापस ले लेंगे.
लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि उनकी पार्टी धार्मिक आधार होने की वजह से नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रही है . उन्होंने सवाल किया कि क्या सरकार इस विधेयक के माध्यम से ”हिंदू राज्य बनने की दिशा में बढ़ रही है?”

चौधरी ने लोकसभा में विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि हमारे विरोध करने से सदन के बाहर माहौल बनाया जाएगा कि कांग्रेस हिंदू विरोध कर रही है.

उन्होंने कहा कि हम विधेयक में पीड़ितों को नागरिकता देने का विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि धार्मिक आधार पर नागरिकता दिए जाने का विरोध कर रहे हैं.

चौधरी ने कहा कि क्या इन समुदायों की सहायता के लिए देश के इतने सारे कानूनों में कोई प्रावधान नहीं है.

उन्होंने सवाल कि ”क्या हम भारत को हिंदू राज्य बनाने की दिशा में बढ़ रहे हैं?”

कांग्रेस नेता ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता की बात होती है तो हम केवल तीन देशों और छह समुदायों की बात नहीं कर सकते.

उन्होंने कहा कि सरकार केवल तीन देशों के लिए विधेयक लाई है क्योंकि ये मुस्लिम बहुल देश हैं. सरकार ने इसमें म्यामां, नेपाल और श्रीलंका जैसे भारत की सीमा से लगे देशों को क्यों शामिल नहीं किया.

वहीं लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक कहीं भी धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं है और इसका देश के अल्पसंख्यकों से कोई लेना-देना नहीं है.

नागरिकता संशोधन विधेयक पर लोकसभा में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने विरोध दर्ज कराते हुए विधेयक पर पुनर्विचार की और इसमें ‘मुस्लिम’ शब्द शामिल करने की मांग की, वहीं बीजू जनता दल ने विधेयक का समर्थन किया.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की सुप्रिया सुले ने कहा कि वह सरकार की मंशा पर सवाल नहीं उठा रहीं, लेकिन धारणाओं को लेकर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है.

उन्होंने कहा कि मुस्लिमों में असुरक्षा का माहौल बन रहा है. क्या एनआरसी विफल हो गया है, इसलिए सरकार विधेयक लाई है? सरकार को देश के दूसरे सबसे बड़े समुदाय की चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए.

सुले ने कहा कि गृह मंत्री ने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में विधेयक पर सहमति की बात कही जो तथ्यात्मक रूप से गलत है क्योंकि जेपीसी में इस पर कई सदस्यों ने असहमति जताई थी.

उन्होंने सवाल किया कि विधेयक लाने की तत्काल जरूरत क्या आन पड़ी. यदि पूर्वोत्तर को अभी शामिल नहीं किया जा सकता तो सरकार इसे इतनी जल्दबाजी में क्यों लाई.

उन्होंने विधेयक वापस लेकर सरकार से इस पर पुनर्विचार की मांग की और कहा कि यह विधेयक संसद से पारित हो गया तो उच्चतम न्यायालय में नहीं टिकेगा.

बीजू जनता दल (बीजेडी) की शर्मिष्ठा सेठी ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इस विधेयक को एनआरसी से नहीं जोड़ा जाए, सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए.

उन्होंने इसमें श्रीलंका को भी शामिल करने की मांग की.

उन्होंने सुझाव दिया कि इसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी शामिल करने पर विचार किया जाए.

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के अफजाल अंसारी ने कहा कि यह संशोधन विधेयक संविधान की मूल भावना के विपरीत है इसलिए उनकी पार्टी इसका विरोध कर रही है.

उन्होंने कहा कि जिन तीन देशों की बात हो रही है, उनमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं होने की बात ठीक हो सकती है लेकिन यह भी कटु सत्य है कि भारत से पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों के साथ भी वहां के नागरिकों के समान व्यवहार नहीं किया जाता.

अंसारी ने कहा कि सरकार इन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के खिलाफ उन्हें पनाह देने की दरियादिली दिखा रही है तो थोड़ा और बड़ा दिल करके उसे मुस्लिमों को भी इसमें शामिल करना चाहिए.

तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नामा नागेश्वर राव ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि धार्मिक आधार पर नागरिकता देना संविधान के मूल सिद्धांत के खिलाफ है. उन्होंने विधेयक में अन्य धर्मों के साथ ‘मुस्लिम’ समुदाय को भी शामिल करने की मांग की.

समाजवादी पार्टी (सपा) के एस टी हसन ने कहा कि यह विधेयक ऐसा लगता है कि एनआरसी की भूमिका निभा रहा है जिससे मुसलमानों में डर का माहौल है.

उन्होंने विधेयक का विरोध करते हुए इस पर पुनर्विचार करने की और इसमें मुसलमानों को भी समाहित करने की मांग की.

आईयूएमएल के पी के कुन्हालीकुट्टी और सीपीएम के एस वेंकटेशन ने भी विधेयक का विरोध किया.

कुन्हालीकुट्टी ने कहा कि आज आजाद भारत के लिए काला दिन है और पहली बार ऐसा भेदभाव वाला विधेयक लाया गया है. इससे सरकार का सांप्रदायिक एजेंडा स्पष्ट हो जाता है. उन्होंने भी कहा कि यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट में कानूनी पड़ताल में टिक नहीं पाएगा.

जेडीयू ने नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन करते हुए सोमवार को लोकसभा में कहा कि यह विधेयक किसी भी तरह से धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं है.

विधेयक पर चर्चा में भाग लेते जुए जेडीयू नेता राजीव रंजन सिंह ने कहा कि सदन में कुछ लोग अपने अपने हिसाब से धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा गढ़ रहे हैं.

उन्होंने कहा कि यह विधेयक किसी भी तरह से धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं है.
चर्चा में हिस्सा लेते हुए वाईएसआर कांग्रेस के नेता मिथुर रेड्डी ने कहा कि उनकी पार्टी विधेयक का समर्थन करती है. उन्होंने साथ ही कुछ चिंताएं व्यक्त की और कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सरकार इस पर ध्यान देगी .

शिवसेना ने नागरिकता संशोधन विधेयक पर सरकार से कई बिन्दुओं पर स्थिति स्पष्ट करने की मांग करते हुए लोकसभा में कहा कि जिन लोगों को इस विधेयक के अमल में आने पर नागरिकता मिलने वाली है, उन्हें 25 साल तक मताधिकार नहीं दिया जाए.

‘नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019’ पर चर्चा में भाग लेते हुए शिवसेना सांसद विनायक राउत ने कहा कि उनकी पार्टी इस पक्ष में है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यकों को यहां सम्मान दिया जाए, लेकिन इसमें श्रीलंका में पीड़ा झेलने वाले तमिलों को भी शामिल किया जाए.

उन्होंने कहा कि गृह मंत्री ने यह स्पष्ट नहीं किया कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से कितने लोग भारत में आए और इस विधेयक के पारित होने के बाद कितने लोगों को नागरिकता दी जाएगी.

राउत ने कहा कि देश बहुत मुश्किलों का सामना कर रहा है और ऐसे में इन लोगों को नागरिकता देने से देश पर कितना बोझ पड़ेगा.

उन्होंने कहा कि अगर विषय पर कुछ राजनीति नहीं हो रही है तो जिन लोगों को नागरिकता दी जाएगी उन्हें 25 साल तक मताधिकार नहीं मिलना चाहिए.

शिवसेना नेता ने यह भी पूछा कि जम्मू-कश्मीर से 370 हटने के बाद कितने कश्मीरी पंडितों को वहां बसाया गया है.

डीएमके नेता दयानिधि मारन ने आरोप लगाया कि इस सरकार का हर कदम एक समुदाय के खिलाफ है और इस समुदाय के बीच डर का माहौल है.

उन्होंने दावा किया कि पश्चिमी देशों के डर के चलते ईसाई समुदाय को इस विधेयक के दायरे में लाया गया है.

मारन ने कहा कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर नाकाम होने के बाद सरकार इस तरह के ‘विभाजनकारी’ कदम उठा रही है.

तृणमूल कांग्रेस के अभिषेक बनर्जी ने कहा कि यह सरकार स्वामी विवेकानंद, सरदार पटेल और दूसरे महापुरुषों के सिद्धांतों एवं विचारों के खिलाफ कदम उठा रही है.

उन्होंने एनआरसी और नागरिकता विधेयक दोनों की आलोचना की .

बनर्जी ने कहा कि बंगालियों के खिलाफ किसी भी कदम को स्वीकार नहीं किया जाएगा.

वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के मिथुन रेड्डी ने कहा कि पाकिस्तान के बोहरा और अहमदिया समुदायों तथा श्रीलंका के तमिलों को भी इस विधेयक के दायरे में लाया जाए.


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