जलवायु परिवर्तन पर नीति बनाने जुटे 200 देशों के प्रतिनिधि
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पर्यावरण को लेकर गंभीर चुनौतियों की चेतावनी के बीच दुनियाभर के 200 देशों के प्रतिनिधि पोलैंड में एकत्रित हो रहे हैं. सम्मेलन के पहले दिन दो दिसंबर को सदस्य देशों ने विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को रोकने की अपनी योजनाओं का खाका रखा है.
संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है जब धरती के तापमान को लेकर चिंताएं बढ़ने लगी हैं.
छोटे और गरीब राष्ट्रों को जलवायु परिवर्तन से ज्यादा कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है. इसके मद्देनजर छोटे देश अमीर राष्ट्रों पर दबाव डाल रहे हैं कि वो 2015 में हुए पेरिस समझौते में किये गए वादों को पूरा करें.
पेरिस में तीन साल पहले हुए ऐतिहासिक सम्मेलन में वैश्विक तापमान में इजाफे को दो डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फारेनहाइट) से नीचे रखने का लक्ष्य निर्धारित करने पर सहमति बनी थी. लेकिन इस बीच इस मोर्चे पर बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिली और दुनिया ने बढ़ते समुद्री जलस्तर के साथ ही जंगलों में भीषण आग, लू और तूफान से ज्यादा नुकसान देखा.
इस बीच संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के पूर्व अध्यक्षों ने पोलैंड के शहर कातोवित्स में चल रही वार्ता के बीच एक संयुक्त बयान जारी किया और देशों से आह्वान किया कि वे ‘‘इन फौरी खतरों से निपटने के लिये निर्णायक कार्रवाई करें. ’’
बयान में कहा गया, ‘‘जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की अनदेखी करना अब मुश्किल हो रहा है.’’
यह बयान ऐसे वक्त आया है जब पेरिस समझौते से अलग होने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले को लेकर गुबार अभी थमा भी नहीं है. जी 20 देशों ने एक दिसंबर को ब्यूनस आयर्स में शिखर सम्मेलन के बाद एक संदेश में घोषणा की थी कि पेरिस समझौता ‘अपरिवर्तनीय’ है.