सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए कांग्रेस पूरी तरह मुस्तैद


bjp and rss won't be allowed to attack culture and identity of assam says rahul gandhi

 

कांग्रेस ने 23 मई को नतीजे आते ही सरकार बनाने का दावा पेश करने की पूरी तैयारी कर ली है. नतीजों में जो भी समीकरण बनें, पार्टी हर स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहना चाहती है.

पार्टी की शुरूआती रणनीति की बात करें तो वरिष्ठ नेताओं ने फैसला किया है कि “अगर नतीजों में एडीए बहुमत के 272 आंकड़ें को पार नहीं कर पाती है और ऐसे में अगर राष्ट्रपति द्वारा उन्हें सरकार बनाने का पहला निमंत्रण भेजा जाता है तो इस पर पार्टी पहल करेगी.”

हिंदुस्तान टाइम्स ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि बीते हफ्ते इसी सिलसिले में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने वरिष्ठ नेता अहमद पटेल और अभिषेक मनु सिंघवी से चर्चा की थी. राहुल के आवास पर हुई बैठक में चुनाव नतीजों से बनने वाले समीकरणों पर चर्चा हुई थी.

चर्चा के आधार पर वरिष्ठ अधिवक्ता सिंघवी ने एक कानूनी मसौदा तैयार किया जिसमें बताया गया है कि नतीजों के आधार पर किस तरह विपक्षी दल एक गैर-एनडीए सरकार बनाने का दावा कर सकते हैं.

एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने बताया कि “बहुमत ना मिलने की स्थिति में हम राष्ट्रपति से जल्द से जल्द मुलाकात करेंगे. अगर एनडीए को बहुमत नहीं मिलता है तो हम कर्नाटक मॉडल की तर्ज पर दावा पेश कर सकते हैं. हालांकि इस पर अंतिम फैसला पार्टी प्रमुख राहुल गांधी और सोनिया गांधी ही करेंगे.”

चुनाव आयोग से आंकड़ों की जानकारी मिलने के बाद राष्ट्रपति सबसे ज्यादा सीटें हासिल करने वाली पार्टी या पार्टियों के समूह को सरकार बनाने का बुलावा देता है.

जानकारी के मुताबिक स्पष्ट बहुमत नहीं होने की स्थिति में कांग्रेस राष्ट्रपति से सबसे पहले मुलाकात करेगी.

पार्टी की तैयारियों और मुस्तैदी से साफ पता चलता है कि पार्टी सरकार बनाने का दावा पेश करने में कोई कानूनी ढील नहीं देना चाहती.

साल 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सरकार बनाने का बुलावा दिया था. चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 145 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी 138 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी. चुनाव के बाद हुए गठबंधन के साथ ही यूपीए ने बहुमत का आंकड़ा छू लिया था.

वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने बताया कि चुनाव के बाद होने वाले गठबंधन के संबंध में सीताराम येचुरी, मायावती, अखिलेश यादव, चंद्रबाबू नायडू जैसे करीबी नेताओं से बात की गई है. वहीं येचुरी ने कांग्रेस को सुझाव दिया है कि वो सभी विपक्षी नेताओं पर सरकार बनाने के लिए एक संगठित पत्र पर हस्ताक्षर करने का दबाव ना बनाए. उनका कहना है कि इन नेताओं को एक अलग पत्र पर सहमति देने का प्रस्ताव दिया जाना चाहिए.

येचुरी ने आशंका जताई है कि आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना राष्ट्र समिति प्रमुख और बीजू जनता दल के नेता संगठित पत्र पर हस्ताक्षर करने में असहज महसूस कर सकते हैं. वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने इस बारे में बीजेडी और टीआरएस जैसे नेताओं से पहले ही बात करना शुरू कर दिया है.


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