‘कांग्रेस अपने मूल सिद्धांतों के साथ नहीं करेगी समझौता’


Govt used executive powers to tear apart j&k says Rahul Gandhi

 

मंगलवार 6 अगस्त को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई. इस बैठक का मकसद जम्मू-कश्मीर के मसले पर पार्टी के नेताओं के पक्ष पर विचार-विमर्श करना था. इस बैठक को लेकर कई नेताओं के मन में यह प्रश्न उठा कि आखिर यह बैठक बुलाई ही क्यों गई है?

कांग्रेस की पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा इससे काफी नाराज दिखीं. उन्होंने कहा कि पार्टी के अंदर कभी-कभार मूल वैचारिक मुद्दों को लेकर विरोधाभासी विचार पैदा हो जाते हैं. लेकिन, क्या ऐसा होने से सिर्फ चुनाव के मकसद से पार्टी के मूल सिद्धांत को सुविधा अनुसार बदल दिया जाएगा.

उन्होंने कहा, “हम इस बात पर क्यों वाद-विवाद कर रहे हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार का कश्मीर के लिए अचानक किया गया फैसला गलत है या सही? अनुच्छेद 370 में संशोधन कर के कश्मीर को एक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है. इस मुद्दे पर हमारा पक्ष क्या होना चाहिए, क्या यह हमारे लिए स्वात:स्पष्ट नहीं है?”

कांग्रेस के कुछ युवा नेता जिसमें ज्योतिरादित्या सिंधिया, दीपेंद्र हुड्डा और मिलिंद देओरा शामिल हैं, उन्होंने कश्मीर के फैसले पर सरकार को समर्थन किया है. और इस संबंध में उन्होंने ट्वीट भी किया था.

बैठक में भी उन्होंने और उनके अलावा बाकि युवा नेताओं ने जिसमें आरपीएन सिंह और जितिन प्रसाद शामिल हैं, ने अपने पक्ष का बचाव करते हुए कहा कि उन्हेंने ऐसा जनता के दबाव में किया है.

उन्होंने अपने पक्ष का बचाव करते हुए संविधान में अनुच्छेद 370 के अस्थायी होने का भी हवाला दिया.

शैलजा ने अपने पक्ष को स्पष्टता से रखते हुए कहा, “अगर किसी मुद्दे पर लिया गया हमारा पक्ष हमें वोट नहीं दिला सकता है तो क्या हम उस पक्ष के लिए खड़े नहीं होंगे? क्या हमें नहीं मालूम है कि आखिर क्यों पार्टी के दिग्गजों ने अतीत में वह फैसला लिया था?”

उन्होंने कहा, “पिछले पांच सालों में पार्टी के किसी भी सदस्यों ने अनुच्छेद 370 के जारी रहने का विरोध क्यों नहीं किया? आखिर क्यों सब चुनाव के नतीजे आने के बाद बदल गया? जिन लोगों ने अभी ट्वीट किया है उन्होंने अपना विचार बीजेपी के कदम उठाने से पहले क्यों नहीं व्यक्त किया था?”

सूत्रों के मुताबिक शैलजा ने कहा कि अगर हर चुनाव के बाद लोगों की विचारधारा बदलती है, और अगर मैं कांग्रेस की विचारधारा को मानने वाली एकलौती सदस्य बचुंगी तो भी मैं अकेली रहना ही पसंद करूंगी.

इस वक्त कांग्रेस का निराश होना समझा जा सकता है. लगभग तीन महीने पहले ही पार्टी ने कश्मीर से आफ्सपा (आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट) हटाने का वादा किया था. लेकिन अब कश्मीर के बंटवारे के बाद पार्टी में उलझन है कि आखिर वो किस तरह से इसका विरोध करें.

बैठक में पार्टी के दिग्गज नेता पी चिदंबरम और गुलाम नबी आजाद ने ऐतेहासिक और संविधानिक पक्ष की व्याख्या की. इसके अवाला उन्होंने स्पष्ट रूप से वैचारिक असमंजस और दृढ़ विश्वास की कमी को लेकर चिंताओं को व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने अनगिनत उतार-चढ़ाव देखा है. लेकिन पार्टी के नेता हमेशा अपनी विचारधारा से जुड़े रहे. उन्होंन कहा कि अब युवा नेताओं को यह तय करना होगा कि क्या वो भी पार्टी के सूत्रधारों की तरह विचारधारा से जुड़े रहेंगे या राजनीतिक रूप से मिलने वाले असामान्य दबाव की वजह से अपनी विचारधारा बदल देंगे.

बैठक में प्रियंका गांधी ने भी संक्षिप्त हस्तक्षेप करते हुए कहा, “कांग्रेस और बीजेपी की विचारधार स्पष्ट रूप से अलग है. और जो विभाजन रेखा हमें उनसे अलग करती है उसे धुंधला नहीं होने देना चाहिए.” यह तर्क देते हुए कि प्रत्येक कांग्रेसी को कांग्रेस के एजेंडे पर काम करना है, उन्होंने पूछा, “क्या सिर्फ चुनाव जीतने के चलते हम गलत को गले लगा सकते हैं? हमें सिर्फ अपनी विचारधारा अपनी पार्टी को मजबूत करने की और प्रतिबद्ध होना चाहिए.”

प्रियंका ने यह माना कि कांग्रेस के लिए यह वक्त अत्यंत चुनौतिपूर्ण है. लेकिन, उससे निकलने का रास्ता अपनी विचारधारा से भटकना नहीं है.

कार्यसमिति के एक सदस्य ने राहुल गांधी के बारे में कहा कि उन्होंने अपनी अद्भुत परिपक्वता और अनुग्रह होने का सबूत पेश किया है. उन्होंने कहा, “राहुल गांधी ने कहा कि मैं मुश्किलों को देख सकता हूं और अलग-अलग दृष्टिकोण क्यों पैदा हो रहे हैं यह भी समझ रहा हूं. इसके बावजूद उन्होंने युवा नेताओं से पूछा कि क्या कोई इस बात का समर्थन करता है कि किस तरह मोदी सरकार ने अपना फैसला सुना दिया. वो भी बिना किसी से परामर्श किए और बिना संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किए हुए.”

राहुल गांधी ने यह मानते हुए कि अनुच्छेद 370 अस्थायी प्रावधान था, पूछा कि जिस तरह इसे निरस्त किया गया है और जम्मू-कश्मीर को बांट दिया गया है क्या उसकी सराहना की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि जब राज्य कि विधानसभा भंग है तब ऐसा कदम कैसे उठाया जा सकता है. उन्होंने भारत के संघीय भावना का हवाला देते कहा कि क्या कांग्रेस को फैसला थोपने का और आम सहमति ना मानने वाले दृष्टिकोण का समर्थन करना चाहिए.

राहुल ने “राज्यों के बीच समानता” के सिद्धांत को भी गिनाया. उन्होंने पूछा कि नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में प्रतिबंधों से किसी को कोई समस्या क्यों नहीं है? उन्होंने युवा नेताओं से बीजेपी के वास्तविक इरादों को देखने का अनुरोध किया.

अपना पक्ष रखते हुए युवा नेताओं ने कहा कि वे पार्टी लाइन के साथ ही हैं. लेकिन उनका यह भी कहना था कि उन पर बीजेपी के डिजिटल वॉर का दबाव भी था. उन्होंने जनता और सोशल मीडिया के मूड का हवाला दिया. इन सबके बीच किसी ने भी महत्वपूर्ण सवाल का जवाब नहीं दिया कि क्या कांग्रेस को जनता के दबाव में अपने मूल मूल्यों के साथ समझौता करना चाहिए?

कार्यसमिति के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, “बैठक में लड़कों और पुरुषों के बीच का अंतर उजागर हुआ. राहुल ने फिर से यह साबित कर दिया कि वह एक नेता क्यों हैं. और दूसरों को अभी बहुत कुछ सीखना बाकि है. लेकिन वे दबाव में आ गए. अनुच्छेद 370 पर जनता की राय से वे भयभीत हो गए. राहुल गांधी ने इस बैठक में साबित किया कि अगर कोई सही नहीं सुनना चाहता है तो इस डर से आप गलत बोलना नहीं शुरू कर देते हैं. उन्होंने यह स्वीकार किया कि एक धारणा की लड़ाई है और जनता का दबाव भी था. लेकिन, उन्होंने जोर देते हुए कहा कि किसी भी प्रतिक्रिया को आतंकित होकर तय नहीं किया जाना चाहिए.”


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