सबूतों के अभाव में छूटे समझौता एक्सप्रेस मामले के आरोपी: NIA कोर्ट


Dastardly act of violence remained unpunished for want of evidence: Special court in Samjhauta case

 

समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट मामले में स्वामी असीमानंद और तीन अन्य आरोपियों को बरी करने वाली पंचकुला विशेष कोर्ट ने कहा कि अभियोजन के सबूतों में गंभीर खामियां थी. उन्होंने कहा, विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव के चलते हिंसा के इस नृशंस कृत्य में किसी गुनहगार को सजा नहीं मिल पाई.

एनआईए कोर्ट ने इस मामले में चारों आरोपियों – स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को 20 मार्च को बरी कर दिया था.

गुरूवार को सार्वजनिक किए गए 160 पन्ने के आदेश में जज ने कहा कि आतंकवाद का कोई महजब नहीं होता और आम तौर पर यह पाया गया है कि जांच एजेंसियों में भी एक दुर्भावना घर कर गई है, जिसने मुस्लिम आतंकवाद, हिंदू कट्टरपंथ जैसे विभिन्न शब्द गढ़े हैं.

उन्होंने कहा कि किसी धर्म, समुदाय या जाति से जुड़े किसी आपराधिक तत्व को इस तरह के एक धर्म, समुदाय या जाति के प्रतिनिधि के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता तथा समूचे समुदाय, जाति या धर्म को इस रूप में देखना पूरी तरह से गलत होगा.

जज ने कहा, मामले में स्वतंत्र गवाहों से कभी पूछताछ या जिरह नहीं की गई, क्योंकि वो अभियोजन पक्ष के केस के खिलाफ से गवाही दे रहे थे.

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) कोर्ट के विशेष जज जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा, “मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले का अंत करना पड़ रहा है क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव के चलते हिंसा के इस नृशंस कृत्य में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका. अभियोजन के साक्ष्यों में निरंतरता का अभाव था और आतंकवाद का मामला अनसुलझा रह गया.”

कोर्ट ने कहा कि एनआईए ने संदिग्धों की एक शिनाख्त परेड कराने की ज़हमत नहीं उठाई, जबकि उसे पता चल गया था कि इंदौर के एक टेलर ने उन दो सूटकेस का कवर सिला था जिनमें बम रखे हुए थे और जिन्हें ट्रेन में पाया गया था.

जज ने कहा कि शिनाख्त परेड से घटना में संलिप्त वास्तविक दोषियों के बारे में कुछ अहम सुराग मिल सकते थे.

भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में 18 फरवरी 2007 को हरियाणा के पानीपत के पास धमाका हुआ था. उस वक्त रेलगाड़ी अटारी जा रही थी जो भारत की तरफ का आखिरी स्टेशन है. इस बम विस्फोट में 68 लोगों की मौत हो गई थी.

जज ने 28 मार्च को सार्वजनिक किये गए विस्तृत फैसले में कहा है, “अदालत को लोकप्रिय या प्रभावी सार्वजनिक धारणा या राजनीतिक भाषणों के तहत आगे नहीं बढ़ना चाहिए और अंतत: उसे मौजूदा साक्ष्यों को तवज्जो देते हुए प्रासंगिक वैधानिक प्रावधानों और इसके साथ तय कानूनों के आधार पर अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए.”

उन्होंने कहा, “चूंकि अदालती फैसले कानून के मुताबिक स्वीकार्य साक्ष्यों पर आधारित होते हैं, इसलिए ऐसे में यह पीड़ा तब और बढ़ जाती है, जब नृशंस अपराध के साजिशकर्ताओं की पहचान नहीं होती और उन्हें सजा नहीं मिल पाती है.”

जज ने कहा कि, “संदेह चाहे कितना भी गहरा हो, साक्ष्य की जगह नहीं ले सकता.”


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