दि हिंदू का खुलासा, राफेल सौदे में पीएमओ ने किया था दखल
यह बात अब सामने आ गई है कि राफेल सौदे में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने रक्षा मंत्रालय की कड़ी आपत्तियों के बावजूद दखल दिया था. अंग्रेजी दैनिक दि हिन्दू ने 24 नवंबर 2015 के तारीख वाला रक्षा मंत्रालय का एक नोट प्रकाशित किया है, जिसमें यह बात सामने आई है. इस नोट के जरिए तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के संज्ञान में यह लाया गया था कि पीएमओ की ओर से राफेल सौदे में किए गए दखल से रक्षा मंत्रालय और सौदे के लिए बने भारतीय खरीद दल की स्थिति कमजोर हुई है.
इस नोट में यह भी कहा गया था कि मंत्रालय राफेल सौदे से पीएमओ और उन अधिकारियों को दूर रहने के लिए कह सकता है जो फ्रांस अधिकारियों से सौदे पर बातचीत कर रही रक्षा खरीद दल का हिस्सा नहीं हैं. पीएमओ के दखल से नाराज रक्षा मंत्रालय ने यह भी जोड़ा था कि अगर पीएमओ इस सौदे पर चल रही बातचीत के नतीजे को लेकर आश्वस्त नहीं है तो उसे अपने नेतृत्व में एक नई प्रक्रिया का गठन कर देना चाहिए.
जाहिर है कि इस नोट से राफेल सौदे में पीएमओ के दखल की बात पुष्ट होती है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में अक्टूबर 2018 में सरकार ने राफेल सौदे में पीएमओ की किसी भी भूमिका से इनकार किया है. उसने कोर्ट में कहा था कि राफेल सौदे पर बातचीत वायु सेना के डिप्टी-चीफ के नेतृत्व वाली सात सदस्यीय समिति ने की है. इसमें पीएमओ की कोई भूमिका नहीं रही है.
दरअसल, रक्षा सचिव जी. मोहन कुमार ने खुद अपने हाथ से यह नोट लिखा है. जबकि वायु सेना डिप्टी-सचिव एस. के. शर्मा ने इसे तैयार और रक्षा मंत्रालय के महासचिव एवं वायु सेना के संयुक्त सचिव और अधिग्रहण प्रबंधक ने जी. मोहन कुमार का समर्थन किया था.
रक्षा मंत्रालय ने नोट में यह बात भी सामने आई है कि उसे राफेल सौदे में पीएमओ के दखल की बात सौदे में बातचीत के लिए फ्रांस की ओर से गठित समिति के प्रमुख स्टीफेन रेब की ओर से 23 अक्टूबर 2015 को मिले पत्र के बाद पता चली. इस पत्र में पीएमओ में संयुक्त सचिव जावेद अशरफ और फ्रांस के रक्षा मंत्रालय के कूटनीतिक सलाहकार लुइस वसे के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत का जिक्र है.
रक्षा मंत्रालय ने इस पत्र को पीएमओ के संज्ञान में लाया. 11 नवंबर, 2015 को पीएमओ ने रक्षा मंत्रालय को जवाब देते हुए यह स्वीकार किया कि उसने फ्रांस के रक्षा मंत्रालय के कूटनीतिक सलाहकार लुइस वसे से बातचीत की है, लेकिन साथ ही यह भी जोड़ा कि वसे ने स्वयं यह बात फ्रांस के राष्ट्रपति के कहने पर की है.
जाहिर है कि इससे यह संदेह गहराता है कि राफेल सौदे पर रक्षा मंत्रालय की आपत्तियों को किनारे कर शीर्ष स्तर पर बदलाव किए गए. फ्रांस के राष्ट्रपति होलांड ने खुद सितंबर 2018 में यह स्वीकार किया था कि राफेल सौदे पर चल रही बातचीत में रिलायंस समूह का नाम नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद आया. उनके इस बयान में भारत में राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया था.
रक्षा मंत्रालय के इस नोट के सार्वजनिक होने के बाद मोदी सरकार के लिए राफेल सौदे पर लगातार हमलावर रही कांग्रेस के सवालों का जवाब देना और मुश्किल हो जाएगा. कांग्रेस लगातार आरोप लगाती रही है कि मोदी सरकार ने जान-बूझकर रिलायंस समूह को फायदा पहुंचाने के लिए एक विमान 560 करोड़ के बजाय 1,600 करोड़ रुपए में खरीदा. वे ये भी सवाल उठाते रहे हैं कि मोदी सरकार ने जान-बूझकर विमानों की संख्या 125 से घटाकर 36 कर दी.
दि हिन्दू ने कुछ दिनों पहले यह भी खुलासा किया था कि प्रधानमंत्री के दखल के बाद प्रति विमान कीमत 41 फीसदी बढ़ गई.