जम्मू-कश्मीर के सरकार नियंत्रित दौरे पर जाने से यूरोपीय सांसदों का इनकार
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद दिल्ली स्थित अमेरिका समेत 16 देशों के राजदूतों ने स्थिति का मुयाअना करने के लिए राज्य का दौरा किया. ये केंद्र सरकार द्वारा आयोजित किया गया दौरा था. विदेश मंत्रालय के मुताबिक राजदूतों ने सुरक्षा अधिकारियों, राजनीतिक नेताओं, नागरिक संस्थाओं और मीडिया से मुलाकात की. विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह दौरा आयोजित किया गया था.
इससे पहले भी मोदी सरकार ने अक्टूबर में यूरोपियन यूनियन के धुर दक्षिणपंथी सदस्यों का दौरा राज्य में कराया था. वह दौरा भी पूरी तरह से नियोजित था और इसे लेकर मोदी सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था.
इस दौरे को लेकर भी मोदी सरकार की आलोचना हो रही है. कहा जा रहा है कि राज्य में इंटरनेट और सेल्युलर सेवाएं पूरी तरह से बहाल नहीं हुई हैं और राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री अभी भी हिरासत में हैं, ऐसे में एक प्रायोजित दौरा आयोजित करके सरकार कश्मीर के हालात सामान्य दिखाना चाहती है.
मोदी सरकार के आलोचकों का कहना है कि इस तरह के दौरों में राजदूत राज्य में जाते हैं, वहां अच्छा खाना खाते हैं, अच्छे होटलों में रुकते हैं और कभी भी सरकार के ऊपर कोई भी प्रश्न खड़ा नहीं करते हैं. राजदूतों के ऐसे समूहों की कोई विश्वसनीयता नहीं होती.
रिपोर्ट्स के मुताबिक वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील और खाड़ी के कई देशों ने अंतिम समय में व्यस्तता का हवाला देते हुए इस दौरे से अपने कदम पीछे खींच लिए. वहीं कुछ यूरोपीय राजदूतों ने भी इस दौरे से अपने कदम पीछे खींच लिए. रिपोर्ट्स के अनुसार वे राज्य में अपने मत मुताबिक दौरा करना चाहते थे और राज्य में रहने वाले अपने जानकारों से बात करना चाहते थे. जबकि सरकार ने यह दौरा अपने मत मुताबिक तैयार किया था, जिसमें उन्हें ऐसा करने की इजाजत नहीं थी.
भारत सरकार ने यह दौरा तब आयोजित किया है, जब अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन के डेलिगेशन को राज्य का दौरा करने की अनुमति ना देने की वजह से उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है.
कश्मीर स्थित राजनीतिक विश्लेषक सिदिक वाहिद का कहना है कि केंद्र सरकार वैधता हासिल करने की कोशिश कर रही है. कश्मीर के नजरिए से ऐसे दौरों की कोई विश्वसनीयता नहीं है. आखिर आपको राजदूतों के ऐसे समूहों की जरूरत क्यों हैं? कश्मीरी लोग केंद्र सरकार से किसी भी प्रकार की आशा नहीं रखते हैं.
इस दौरे को लेकर मोदी सरकार की आलोचना इस बात पर भी हो रही है कि वो देश के विपक्षी दलों के नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को राज्य का दौरा करने की अनुमति नहीं दे रही है.
इस दौरे को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने कहा, ‘सरकार कश्मीर के हालात सामान्य दिखाना चाहती है, जो कि सच्चाई से कोसों दूर है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद सरकार को लगा कि कश्मीर के लोग उसके इस कदम का स्वागत करेंगे. अगर ऐसा है तो अभी तक कश्मीर में इंटरनेट सेवाएं अभी तक बंद क्यों हैं? विडंबना यह है कि सरकार ने यूरोपीय संघ के धुर-दक्षिणपंथी सदस्यों का तो दौरा करा दिया लेकिन देश की विपक्षी पार्टियों के नेताओं को राज्य में नहीं जाने दिया.’
उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रायोजित दौरे हास्यास्पद हैं और सच्चाई को तोड़-मरोड़कर पेश करने का प्रयास हैं.
इससे पहले अमेरिकी संसद में जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति पर हुई सुनवाई के दौरान डेमोक्रेटिक सीनेटर प्रमिला जयपाल ने भारत सरकार पर कई सवाल खड़े किए थे. भारतीय मूल की अमेरिकी सीनेटर प्रमिला जयपाल ने जम्मू-कश्मीर पर प्रस्ताव पेश करते हुए भारत सरकार से वहां लगाए गए संचार प्रतिबंधों को जल्द से जल्द हटाने और सभी नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता संरक्षित रखे जाने की अपील की थी.
प्रमिला जयपाल ने मनमाने तरीके से हिरासत में लिए लोगों और नेताओं को रिहा करने की भी अपील की थी. इससे जवाब में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बाद में प्रमिला जयपाल से मिलने से मना कर दिया था. उन्होंने कहा था कि उन्हें ऐसे लोगों से मिलने में कोई दिलचस्पी नहीं है, जिन्होंने अपना मन पहले से ही बना लिया है. हालांकि, ऐसा करने पर अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से 2020 राष्ट्रपति चुनाव के लिए राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल सीनेटर एलिजाबेथ वॉरेन और बर्नी सैंडर्स ने एस जयशंकर की आलोचना की थी.
वहीं विदेशी राजदूतों के वर्तमान दौरे को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रही बीजेपी ने कहा है कि राज्य के लोग अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद से खुश हैं और हालात सामान्य हैं, विपक्ष बस सरकार को बदनाम करना चाहता है.