दिल्ली हिंसा : सीजेआई ने कहा, हम चीजों को होने से नहीं रोक सकते
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा थमने के बीच जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी शांति की कामना करता है, लेकिन उसकी भी कुछ ‘सीमाएं’ हैं और वह ‘एहतियातन राहत’ नहीं दे सकता है.
जस्टिस बोबडे ने यह टिप्पणी बीजेपी नेताओं- अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा, कपिल मिश्रा और अभय वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर चार मार्च को सुनवाई करने पर सहमति जताने के बीच की. बीजेपी के नेताओं पर नफरत फैलाने वाले भाषण देने का आरोप है जिसकी वजह से कथित तौर पर दिल्ली में हिंसा भड़की. नागरिकता संशोधन कानून को लेकर गत 23 फरवरी को उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा में कम से कम 42 लोगों की मौत हुई है और 200 से अधिक लोग घायल हुए हैं.
हिंसा के 10 पीड़ितों द्वारा दायर याचिका का अविलंब सुनवाई के लिए जस्टिस बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष उल्लेख किया गया, जिसने कहा कि इसपर बुधवार को सुनवाई होगी.
जब याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने इन याचिकाओं को अविलंब सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया तो चीफ जस्टिस ने कहा, ”हम यह नहीं कह रहे हैं कि लोगों को मरना चाहिए. इस तरह के दबाव से निपटने के लिए हम सक्षम नहीं हैं. हम चीजों को होने से नहीं रोक सकते. हम एहतियाती राहत नहीं दे सकते. हम अपने ऊपर एक तरह का दबाव महसूस करते हैं.”
पीठ में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं. पीठ ने कहा कि अदालत किसी स्थिति से कोई चीज होने के बाद निपट सकती है और उसे किसी चीज को रोकने की शक्ति प्रदान नहीं की गई है.
जब गोंजाल्विस ने कहा कि अदालत स्थिति को और बिगड़ने से रोक सकती है तो सीजेआई ने कहा, ”जिस तरह का हमपर दबाव है, आपको जानना चाहिए कि हम उससे नहीं निपट सकते हैं.”
उन्होंने कहा, ”हम भी समाचार पत्र पढ़ते हैं और टिप्पणियां ऐसे की जाती हैं, मानो अदालत ही जिम्मेदार है.”
उन्होंने कहा, ”हम भी शांति चाहेंगे, लेकिन आप जानते हैं कि कुछ सीमाएं हैं.”
जब पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही दिल्ली हिंसा से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है तो इसपर गोंजाल्विस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने करीब छह सप्ताह के लिए सुनवाई स्थगित कर दी है और यह निराशाजनक है.
उन्होंने शीर्ष अदालत से याचिका को मंगलवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का अनुरोध करते हुए कहा, ”जब लोग अब भी मर रहे हैं, तो सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं इसपर अविलंब सुनवाई कर सकता है.”
पीठ ने याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताते हुए कहा, ”हम देखेंगे कि हम क्या कर सकते हैं.”
इसी से संबंधित मामले में दिल्ली सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से हिंसा प्रभावित लोगों के उपचार और उनके पुनर्वास के लिए उठाए गए कदमों के बारे में उससे स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा.
जस्टिस डीएन पटेल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया कि वह अदालत के 26 फरवरी के आदेश के अनुपालन में उनकी तरफ से उठाए गए कदमों पर एक रिपोर्ट सौंपे. उस आदेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ितों के पुनर्वास के लिए कुछ निर्देश दिए थे.
शीर्ष अदालत में पीड़ितों की ओर से दायर याचिका में दिल्ली के बाहर के अधिकारियों को लेकर एक विशेष जांच दल गठित करने और इसकी अगुवाई ऐसे ‘ईमानदार और प्रतिष्ठित’ अधिकारी को सौंपने का अनुरोध किया गया है, जो स्वतंत्र तरीके से काम करने में सक्षम हो.
शीर्ष अदालत में सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना ने दंगों और खुफिया ब्यूरो के अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या की अदालत की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग करते हुए एक अलग याचिका दायर की है.
अधिवक्ता उत्सव सिंह बैंस के जरिए दायर याचिका में हिंसा रोकने में विफल रहे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की भी मांग की गई है.