केंद्र सरकार ने दिया रोजाना नौ घंटे काम करने का सुझाव, न्यूनतम मजदूरी दरकिनार


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केंद्र सरकार ने वेज कोड रूल के मसौदे में रोजाना काम करने के लिए नौ घंटे का सुझाव दिया है. लेकिन, सरकार ने राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी तय नहीं की है.

मसौदे में ज्यादातर पुराने नियम दोहराए गए हैं. इसमें से उन तीन नियमों की अनदेखी की गई है जिसके आधार पर भविष्य में मजदूरी तय की जाती. वे नियम खासकर तीन भौगोलिक वर्गीकरण पर आधारित हैं.

नियमों के मसौदे में कहा गया है, ‘काम करने के लिए सामान्य रूप से  रोजाना नौ घंटे के वक्त को माना जाएगा.’

मसौदे में आठ घंटे काम करने के वक्त को लेकर कहा गया है कि वेतन का हिसाब करने के लिए वह सिर्फ 26 दिनों तक ही जोड़ा जाएगा. आठ घंटे काम करने का नियम पिछले कई दशकों से लागू है.

सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन के उपाध्यक्ष एके पदमनाभन ने कहा, ‘पहले से ही कई परिस्तिथियों के चलते अमुमन लोगों को नौ घंटे काम करना पड़ता है. वेज कोड नियम इसे संस्थागत करना चाहता है. हमने मजदूरी कोड का विरोध किया था और हम इन नियमों का भी विरोध करेंगे क्योंकि इसमें कर्मचारियों के हितों की बात नहीं की जा रही है.’

न्यूनतम मजदूरी के मुद्दे पर मसौदे में कहा गया है कि विशेषज्ञों की समितियां केंद्र सरकार को इस संबंध में भविष्य में सुझाव देंगी.

केंद्रीय श्रम मंत्रालय के आंतरिक पैनल ने अपनी जनवरी की रिपोर्ट में कहा था कि जुलाई 2018 से राष्ट्रीय न्यूनतम आय 375 रुपये रोजाना के हिसाब से होने चाहिए. इसके अलावा 7 सदस्यीय पैनल ने सुझाव दिया था कि शहरों में काम करने वालों को 9,750 रुपये के न्यूनतम मजदूरी के अलावा 1,430 रुपये का आवास भत्ता मिलना चाहिए.

आरएसएस की भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के अध्यक्ष सीके साजी नारायणन ने कहा, ‘आजादी के 70 सालों के बाद भी देश फ्लोर वेज के बारे में बात कर रहा है जो न्यूनतम मजदूरी से भी कम है. मजदूरी तीन वर्गीकरण पर आधारित होना चाहिए, न्यूनतम मजदूरी, उचित मजदूरी और जीवनशैली का स्तर थोड़ा बढ़ाने और जीवन बेहतर ढंग से गुजारने के हिसाब से वेतन मिलना चाहिए. इस मजदूरी कोड नियम में नए भारत के लिए सही नजरिए का आभाव है. और हमें इसका विरोध करना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि वे रोजाना काम के लिए ना आठ और ना नौ बल्कि छह घंटे के पक्ष में हैं.

मसौदे में यह भी सुझाव दिया गया है कि फ्लोर वेज को हर पांच साल या उससे कम में संशोधित किया जाएगा.

मसौदे के नियमों को एक महीने तक लोगों की प्रतिक्रिया लेने के बाद दिसंबर तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा.


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