आर्थिक सुस्ती ने बढ़ाई वरिष्ठ कर्मचारियों की मुश्किलें, भर्ती में कमी के साथ वेतन कटौती


Jobs not generating as expected in America

 

आर्थिक सुस्ती ने उच्च पदों (सी-स्यूट जॉब) की नौकरी खोजने वालों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. पहले के मुकाबले विभाग प्रमुख के पदों के लिए रिक्तियों में बड़ी कमी आई है.

जानकारों के मुताबिक आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिए कंपनियां वरिष्ठ पदों पर कम भर्तियां कर रही हैं. इसके साथ ही विभाग प्रमुखों के वेतन में कटौती के साथ उनसे अधिकतम काम लेने की कोशिश हो रही है.

चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर, चीफ फाइनेंसियल ऑफिसर और चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर के पदों की भर्तियों में 10 फीसदी की कमी आई है. इन विभाग प्रमुख(सी-स्यूट) के पदों को आम तौर पर वरिष्ठ कर्मचारी माना जाता है.

इंसिस्ट के प्रबंध निदेशक आर सुरेश ने बताया कि वरिष्ठ पदों पर भर्तियों में 10 फीसदी की कमी आई है. उनकी जरूरत अब भी बनी हुई है लेकिन बहाली में वेतन का ध्यान रखा जा रहा है. इसके साथ ही वरिष्ठ कर्मियों के सहयोगी कर्मचारियों की संख्या में कटौती की जा रही है.

उन्होंने बताया कि कंपनियां डिप्युटी पदों को खत्म करने पर विचार कर रही हैं.

नौकरी डॉट कॉम की ओर से 11 सितंबर को जारी सर्वे के मुताबिक 16 साल से अधिक कार्य अनुभव की योग्यता वाले नेतृत्वकारी पदों के लिए भर्तियों में आठ फीसदी की कमी आई है.

इसके साथ ही कंपनियों की ओर से प्रोत्साहन भत्ते में भी कटौती की गई है या वेतन को कर्मचारियों के प्रदर्शन के आधार पर तय किया जा रहा है. इसके साथ ही पुराने बकाये के भुगतान मे देरी की जा रही है.

कोर्न फेरी के वरिष्ठ अधिकारी कुणाल सेनगुप्ता ने कहा कि वेरियेबल पे (मूल वेतन को छोड़कर दिया जाने वाला प्रोत्साहन भत्ता आदि) को सख्ती से प्रदर्शन के साथ जोड़ने से आर्थिक सुस्ती के समय कंपनियों को खर्च में कटौती करने में मदद मिलती है.

सुरेश ने कहा कि मैन्युफैक्चरिंग, इन्फ्रास्ट्रक्चर और वित्तीय सेवाओं सहित सभी क्षेत्र में यह ट्रेंड दिख रहा है.

उन्होंने कहा कि कंपनियां देख रही हैं कि चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर (सीएफओ) के बिना काम चल सकता है या फिर किसी नीचे के पद को ही प्रोमोट कर उनसे सीएफओ का काम लिया जाए. इसके साथ ही वे ऐसे सीएफओ की भर्ती को प्राथमिकता दे रहे हैं जो इसके साथ ही अन्य जिम्मेदारियां भी निभा सके.

माइकेल पेज इंडिया के अंशुल लोढा ने कहा कि कंपनियों के द्वारा खर्च में कटौती के प्रयासों के बाद प्रोत्साहन भत्ता और शेयर के विकल्प में बड़ी कमी आई है.


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