अर्थशास्त्रियों और अकादमिकों ने NSSO उपभोक्ता खर्च डेटा जारी करने की मांग की


it is unconstitutional to oppose caa implementation says nirmala sitharaman

 

200 से अधिक अर्थशास्त्रियों, अकादमिकों और पत्रकारों ने एक स्टेटमेंट जारी कर एनएसएसओ के उपभोग सर्वे डेटा को जारी करने की मांग की है. एक मीडिया में रिपोर्ट में उपभोक्ता खर्च के चालीस सालों में पहली बार सबसे कम होने की बात कही गई थी. इसके बाद सरकार ने खराब डेटा गुणवत्ता का हवाला देकर रिपोर्ट को जारी होने से रोक लिया था.

स्टेटमेंट के मुख्य अंश-

हम मांग करते हैं कि भारत सरकार अभी तक एनएसएसओ द्वारा मंजूर किए गए सभी डेटा सर्वे रिपोर्ट्स को जारी करे. इसमें उपभोक्ता खर्च 2017-18 के 75वें राउंड सर्वे का डेटा भी शामिल होना चाहिए.

मीडिया में लीक हुई एक खबर से पता चला है कि 2017-18 औसत उपभोग में भारी कमी आई है. यह कहा जा रहा है कि सरकार ने इस रिपोर्ट को इसलिए जारी नहीं किया है क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था के खराब हालत में होने की बात पुष्ट हो रही है. सांख्यिकी मंत्रालय ने घोषणा की है कि इस सर्वे की रिपोर्ट को इसलिए जारी नहीं किया जाएगा क्योंकि प्रशासनिक डेटा के साथ यह रिपोर्ट बहुत कम मेल खा रही है.

यह बात ध्यान देने लायक है कि इस तरह के सर्वे नेशनल अकाउंट्स के मैक्रोइकॉनमिक अनुमानों से विचलन दर्शाते हैं. यह भी नेशनल अकाउंट्स के अनुमान केवल प्रशासनिक डाटा पर आधारित ना होकर एनएसएसओ और दूसरे सर्वे पर आधारित होते हैं. इसलिए इनमे गलती की गुंजाइश ज्यादा नहीं होती है.

उपभोक्ता सर्वे गरीबी और आर्थिक असमानता के रुझान मांपने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इसके साथ ही इससे राष्ट्रीय आय और दूसरे सूचकांकों के बारे में भी पता चलता है. यह ना केवल नीति निर्माताओं के लिए जरूरी है बल्कि जनता के लिए भी जरूरी है.

यह देश के लिए जरूरी है कि सांख्यकी संस्थानों की स्वतंत्रता सुनिश्चित रहे. इनमें किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप ना हो. इस फ्रंट पर इस सरकार का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है. अभी तक भारत का सैंपल सर्वे मॉडल पूरी दुनिया के लिए आदर्श रहा है. इन सर्वे में प्रयोग की जाने वाली विधियां पूरी तरह से वैज्ञानिक हैं. इनमें किसी भी तरह की छेड़छाड़ सही नहीं होगी.


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