यूरोपियन संसद चुनाव: समूचे यूरोप में बदले राजनीतिक समीकरण
ट्विटर
यूरोपीय संसद में सेंटर-राइट और सेंटर-लेफ्ट पार्टियों का वर्चस्व टूटता नजर आ रहा है. ये दोनों संयुक्त रूप से संसद में अपना बहुमत खो चुकी हैं. इस बीच लिबरल, ग्रीन्स और नेशनलिस्ट दलों का समर्थन बढ़ा है.
लेकिन सेंटर-राइट विचारधारा वाली यूरोपियन पीपुल्स पार्टी अब भी सबसे बड़ी पार्टी है. इस लिहाज से कहा जा रहा है कि पीपुल्स पार्टी यूरोपीय यूनियन के समर्थन वाला गठबंधन बनाने में सफल होगी.
यूरोपीय देश इस समय यूरोपीय संसद के प्रतिनिधियों का चुनाव कर रहे हैं. चुनाव प्रक्रिया संपन्न हो चुकी है. इस दौरान बीते 20 सालों में सर्वाधिक वोट पड़े. कुछ जगहों पर पॉपुलिस्ट पार्टी को मजबूती मिली है, लेकिन कहीं-कहीं पर ये पार्टी उम्मीद से पीछे रही.
उधर यूके में ब्रेग्जिट पार्टी ने बड़ी जीत दर्ज की है. ये बिल्कुल नई पार्टी है. लिबरल डेमोक्रेट ने भी ठीक प्रदर्शन किया है, लेकिन लेबर और कंजरवेटिव पार्टी को बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है.
चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि ईपीएफ अन्य पार्टियों के साथ मिलकर महागठबंधन बना सकती है. जिसमें सोशलिस्ट, डेमोक्रेटस, लिबरल और ग्रीन्स शामिल हो सकते हैं.
ईयू के लिए इस परिणाम के मायने
इस बार चुनावों के जो नतीजे आए हैं उनको देखते हुए एक बात तो साफ है कि पहले जो पार्टियां सत्ता पर कब्जा जमाए थीं, उनका एकाधिकार टूटेगा. इस बार ईपीएफ, सोशलिस्ट और डेमोक्रेट बिना अन्य पार्टियों की सहायता के गठबंधन बनाने में सफल नहीं हो पाएंगे.
कम से कम आंकड़े तो यही कह रहे हैं. बीते 2014 में ईपीएफ के पास 216 सीटें थीं. लेकिन इस बार उसे सिर्फ 179 सीटों पर ही जीत मिल सकी है. वहीं सोशलिस्ट और डेमोक्रेट 191 से गिरकर 150 पर आ पहुंचे हैं.
इन सबके बावजूद कहा जा रहा है कि ईयू के समर्थन वाले दल एक बार फिर से बहुमत हासिल कर लेंगे. इसकी वजह लिबरल हैं, उन्हें इस बार अच्छी सीटें मिल रही हैं. उधर मैक्रों की पार्टी भी इसी खेमे में आ गई है.
कौन जीता कौन हारा
सबसे पहले बात करते हैं जर्मनी की. यहां दोनों सेंटरिस्ट पार्टियों को मुश्किल का सामना करना पड़ा है. जहां एंगेला मर्केल की क्रिश्चेन डेमोक्रेट का वोट 35 फीसदी से गिरकर 28 फीसदी पर आ गया है, वहीं सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेट के वोट में भारी कमी आई है. इनका मत फीसदी 27 से 15.5 पर आ गया है.
यूके में नाइजेल फराज के नेतृत्व वाली ब्रेग्जिट पार्टी ने 32 फीसदी वोट हासिल किए हैं. वहीं लिबरल डेमोक्रेट के वोट में भी सुधार हुआ है. लेकिन यहां लेबर और कंजर्वेटिव पार्टी का प्रदर्शन काफी खराब रहा है.
फ्रांस में दक्षिणपंथी पॉपुलिस्ट पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा उसे 10.5 फीसदी मत ही मिले, लेकिन ये 2014 की अपेक्षा बेहतर है.
वैसे पूरे यूरोप में दक्षिणपंथियों का प्रदर्शन मिला-जुला रहा है. फ्रांस में मैक्रों की प्रतिद्वंद्वी मरीन ला पेन की नेशनल रैली पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया.
वहीं हंगरी में विक्टर ऑर्बन की अप्रवासी विरोधी पार्टी फिदेशज ने 52 फीसदी वोट हासिल किए हैं. देश की कुल 21 सीटों में से 13 सीटें पर कब्जा कर ये सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.
स्पेन में सत्ताधारी सोशलिस्ट पार्टी ने 32.8 फीसदी वोट हासिल किए और 20 सीटों पर कब्जा जमाने में सफल रही. वहीं दक्षिणपंथी वोक्स पार्टी 6.2 फीसदी मत के साथ तीन सीट ही पा सकी.
क्यों होते हैं ये चुनाव?
यूरोपीय यूनियन के कार्यों को संचालित करने के लिए ईयू संसद का गठन इन्हीं चुनावों के माध्यम से किया जाता है. ईयू के 28 सदस्य देशों के 51.2 करोड़ लोग इस संसद के लिए सदस्यों को चुनते हैं.
इस संसद में कुल 705 सदस्य होते हैं. जिनका कार्यकाल पांच साल का होता है. पहले इस संसद में कुल 751 सदस्य थे, लेकिन ब्रेग्जिट के बाद इनकी संख्या घटकर 705 रह जाएगी.
ब्रेग्जिट के बाद सीटों का बंटवारा नए सिरे से किया जाएगा. इनमें फ्रांस और स्पेन को सबसे ज्यादा फायदा होगा. दोनों देशों को पांच-पांच अतिरिक्त सीटें मिलेंगी.