106 पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों ने लिखा पत्र, कहा ‘देश को NRC-CAA-NPR की जरूरत नहीं’


ex bureaucrats write letter said India does not need nrc caa and npr

 

सीएए, एनपीआर और एनआरसी को लेकर देश के 106 पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों देश की जनता के नाम एक पत्र लिखा है. इस पत्र में उन्होंने सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों के प्रति अपनी सहानुभूति दिखाई है.

उन्होंने कहा कि जनता का प्रदर्शन बिल्कुल जायज और अब जबकि केंद्र सरकार एनपीआर प्रक्रिया को एनआरसी से अलग बता रही है, ऐसे में वे कुछ ऐसे तथ्य बताना चाहते हैं जो यह स्थापित करते हैं कि सीएए, एनआरसी और एनपीआर आपस में जुड़ें हुए हैं. उन्होंने कहा कि भारत को सीएए, एनआरसी और एनपीआर की कोई जरूरत नहीं है.

पत्र की मुख्य बातें इस प्रकार हैं-

एनआरसी और एनपीआर दोनों 1955 के नागरिकता कानून में 2003 में हुए संशोधन की देन हैं. एनपीआर का हर दस साल पर होने वाली जनगणा से कोई संबंध नहीं है. जनगणना में गिनती व्यक्तियों का बिना नाम जाने होती है, जबकि एनपीआर में नाम पूछा जाता है. एनपीआर में छह महीने से एक विशेष क्षेत्र में रह रहे देशी और विदेशी दोनों तरह की नागरिकों की लिस्ट बनाई जाती है.

एनआरसी, एनपीआर का दूसरा कदम है. 2003 के संशोधन के अनुसार एनपीआर में दी गई जानकारियों को प्रमाणित करके एनआरसी लिस्ट बनती है. जानकारी को प्रमाणित करने का काम क्षेत्रीय रजिस्ट्रार करता है.

एनआरसी में उन लोगों की ही जानकारी प्रमाणित की जाती है, जिनकी नागरिकता एनपीआर लिस्ट बनाते समय संदेह में होती है. किसी की नागरिकता पर संदेह करना भी पूरी तरह से क्षेत्रीय रजिस्ट्रार के हाथ में है.

एनआरसी को लेकर सरकार द्वारा दिए जा रहे विरोधाभासी बयानों ने आपके डर में बढ़ोतरी की है. वहीं 2010 के एनपीआर और अब होने वाले एनपीआर में अंतर में है. 2010 में एनपीआर के लिए केवल व्यक्ति के माता-पिता का नाम ही पूछा गया था, जबकि इस बार के एनपीआर में माता-पिता के नाम के साथ उनकी जन्मतिथि और जन्मस्थान के बारे में भी बताना होगा. जो व्यक्ति ऐसा नहीं कर पाएगा उसकी नागरिकता संदेह में आ जाएगी.

हमारे हिसाब से अवैध प्रवासियों को लेकर सरकार की चिंता अतिरंजित है. क्योंकि हर दस साल में होने वाली जनगणना में ऐसा डेटा सामने नहीं आया है, जिससे पता चले कि भारत में करोड़ों अवैध प्रवासी रह रहे हैं.

हम इस बात को लेकर पूरी तरह से सहमत हैं कि क्षेत्रीय रजिस्ट्रार को एनआरसी और एनपीआर के लिए पूरी शक्ति देने के विध्वंसक परिणाम होंगे. क्षेत्रीय रजिस्ट्रार पर निहित राजनीतिक स्वार्थों को पूरा करने का दवाब होगा. इस पूरी प्रक्रिया में भ्रष्टाचार होगा. असम का उदाहरण हमारे सामने है. अपनी नागरिकता साबित करने के लिए गरीबों को पूरी जमा पूंजी खर्च करनी पड़ गई. इस प्रक्रिया का सबसे वीभत्स असर गरीबों पर ही पड़ेगा, चाहें वे किसी भी धर्म के हों.

सीएए को लेकर मुस्लिम समुदाय का डर बिल्कुल जायज है. बीते सालों में सत्ताधारी दल के नेताओं की तरफ से सीएए-एनआरसी को लेकर जिस तरह के बयान दिए गए हैं, उससे मुस्लिम समुदाय में डर बढ़ा है. लव जिहाद और बीफ को लेकर जिस तरह मुसलमानों को निशाना बनाया गया है, वो किसी से छिपा नहीं है. इस बात की पूरी संभावना है कि एनआरसी-एनपीआर की प्रक्रिया में मुसलमानों को निशाना बनाया जाएगा.


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