आंकड़ों के साथ छेड़छाड़ के खिलाफ अर्थशास्त्रियों ने उठाई आवाज


PUCL presented charge sheet against central govt

 

दुनिया भर के प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों और समाज विज्ञानियों ने केंद्र सरकार द्वारा असहज करने वाले रोजगार आंकड़ों को छिपाने और उन्हें तोड़ने-मरोड़ने की निंदा की है. कुल 108 विशेषज्ञों ने संयुक्त बयान में सांख्यिकी संगठनों की ‘संस्थागत स्वतंत्रता’ बहाल करने और सांख्यिकी आंकड़ों तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने की मांग की है.

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के प्रमुख पद से हाल में इस्तीफा देने वाले सांख्यिकविद पी.सी. मोहनन ने 14 मार्च को कहा कि देश में सांख्यिकी आंकड़ों में कथित राजनीतिक हस्तक्षेप पर 108 अर्थशास्त्रियों और समाज विज्ञानियों की चिंता को राजनीतिक दलों को गंभीरता से लेना चाहिए.

मोहनन ने कहा, ‘‘ हाल के घटनाक्रमों के मद्देनजर इन सभी प्रमुख लोगों द्वारा दर्ज कराई गई आपत्ति बहुत ही सामयिक और प्रासंगिक है. यह महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक दल इसे गंभीरता से लें.’’

मोहनन ने जनवरी में आयोग के कार्यवाहक चेयरमैन पद से एक अन्य सदस्य के साथ इस्तीफा दे दिया था. सरकार नौकरियों को लेकर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों को छिपाने की कोशिश कर रही थी, जिसके विरोध में इन दो सदस्यों ने इस्तीफा दिया.

अपील में कहा गया है, “सरकार की उपलब्धि पर संदेह करने वाले किसी भी सांख्यिकी गणना के तरीकों पर सवाल उठाकर या तो उन्हें तोड़ा-मरोड़ा जाता है या फिर उन्हें दबा दिया जाता है.”

इस अपील को दुनिया भर से कई बड़े सांख्यिकीविदों ने समर्थन दिया है. इनमें एमआईटी के अभिजीत बनर्जी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ज्यां द्रेज और यूसी बर्कले के प्रणव बर्धन शामिल हैं.

केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने देश में बेरोजगारी से जुड़े कई आंकड़ों के प्रकाशन पर रोक लगा दी है. इनमें हाल ही में मुद्रा योजना के तहत सृजित रोजगार के आंकड़ों को चुनाव बाद प्रकाशित करने का फैसला शामिल है. इससे पहले भी सरकार आंकड़ो के साथ छेड़ छाड़ करती रही है.

इन खबरों में जानें सरकार ने किन आंकड़ों को दबाया और उनके साथ छेड़-छाड़ की है.

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जनवरी में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग(एनएससी) के कार्यवाहक अध्यक्ष ने रोजगार से जुड़े आंकड़ों के   प्रकाशन में देरी के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. एनएससी सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त एक परामर्शदात्री संस्थान है. हालांकि बाद में ये आंकड़ें लीक हो गए जिससे पता चला कि जून 2018 में बेरोजगारी की दर 6.1 फीसदी रही है. यह 45 साल में सबसे अधिक बेरोजगारी दर है.  

पत्र के लेखकों ने आंकड़ों को दबाने के लिए वर्तमान सरकार के साथ-साथ आने वाली सरकार के लिए भी चेतावनी जारी की है.

अपील में कहा गया है कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है और यह भयावह है.

अपील में कहा गया है, “दशकों से, भारत के सांख्यिकी ढांचे को आर्थिक और सामाजिक मानकों पर आंकड़ों की विश्वसनियता के लिए सम्मान मिलता रहा है. कभी-कभी अनुमानों को लेकर आलोचना जरूर हुई है, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप से आंकड़ों को प्रभावित करने का आरोप कभी नहीं लगा.”

अपील में कहा गया है कि भारतीय सांख्यिकी संस्थाओं का राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया गया है जिससे इन संस्थाओं की वैश्विक छवि धूमिल हो गई है..

सांख्यिकी शुद्धता की जरुरत पर जोर देते हुए अपील में कहा गया है, “आंकड़ें प्राप्त करने के लिए सांख्यिकी शुचिता जरूरी है, जो कि आर्थिक नीति बनाने और स्वस्थ्य और लोकतांत्रिक बहस के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं.”

इस रिपोर्ट का शीर्षक ‘आर्थिक आंकड़ों में गड़बड़ी: आवाज उठाने की जरुरत’ है.

बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में राकेश बसंत (आईआईएम-अहमदाबाद), जेम्स बॉयस (यूनिवर्सिटी आफ मैसाचुसेट्स, अमेरिका), सतीश देशपांडे (दिल्ली विश्वविद्यालय), पैट्रिक फ्रांकोइस (यूनिवर्सिटी आफ ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा), आर रामकुमार (टीआईएसएस, मुंबई), हेमा स्वामीनाथन (आईआईएम-बी) तथा रोहित आजाद (जेएनयू) शामिल हैं.

अर्थशास्त्रियों तथा समाज शास्त्रियों के अनुसार, यह जरूरी है कि आंकड़े एकत्रित करने तथा उसके प्रसार से जुड़े केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) तथा राष्ट्रीय नमूना सर्वे संगठन (एनएसएसओ) जैसी एजेंसियों को राजनीतिक हस्तक्षेप से दूर रखा जाए और वह पूरी तरह विश्वसनीय रहें.

(इनपुट भाषा और टेलीग्राफ से)


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