सिर्फ भाषणों और इश्तिहारों में है बीजेपी का ‘डिजिटल इंडिया’
बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार ने अपने कार्यकाल में तमाम ऐसी घोषणाएं की जिन्हें तस्वीर बदलने वाली कहकर प्रचारित किया गया. लेकिन इनमें से अधिकतर योजनाएं सिर्फ करदाताओं का पैसा डुबोने वाली साबित हुईं.
ऐसी एक योजना का नाम है भारतनेट. डिजिटल इंडिया के तहत बताई गई ये योजना मोदी सरकार की फ्लैगशिप योजना थी. हालांकि इसकी शुरुआत यूपीए-2 में ही दूसरे नाम से हो चुकी थी. बाद में इसे जोरशोर से प्रचारित किया गया. इस योजना में 250,000 गांवों को हाईस्पीड इंटरनेट सेवा से जोड़ना था.
लेकिन ये कितना सफल हुई? जिन गांवों को हाईस्पीड इंटरनेट से जोड़ने का दावा किया गया क्या उन्हें सेवाएं मिल पा रही हैं? इन सब सवालों को जांचने के लिए फैक्ट चेकर ने जमीनी स्तर पर पड़ताल की.
फैक्ट चेकर के रिपोर्टर ने हरियाणा के तिगांव का दौरा किया. ये गांव इस योजना के लिए चुना गया था. जो कागजों में हाईस्पीड इंटरनेट से जुड़ा हुआ है. बिल्लू सागर तिगांव में कॉमन सर्विस सेंटर चलाते हैं. वो कहते हैं कि गांव को भारतनेट स्कीम के तहत ब्रॉडबैंड से जोड़ा जरूर गया, लेकिन यहां एक दिन के लिए भी इंटरनेट नहीं चला. बिल्लू ने बताया कि उन्होंने पास के गांवों को इंटरनेट के कूपन बेचे थे, जिन्हें इंटरनेट ना चलने के कारण वापस लेना पड़ा.
गांव में सार्वजनिक इमारतों की छतों पर लगे एंटीना धूल खा रहे हैं. वाई-फाई की बात करने पर यहां के लोगों की नाराजगी साफ दिखती है.
पड़ोस के गांव खेरी कला के रहने वाले सुजीत जैन कहते हैं, “हमने सुना था कि यहां फाइबर केबल डाला गया, लेकिन ये कभी शुरू नहीं हो सका.” भारतनेट योजना के तहत हरियाणा के छह हजार से अधिक गांवों को मार्च 2017 में ही इंटरनेट से जोड़ने की बात कही गई थी. लेकिन जमीनी स्तर पर इसके ज्यादा सबूत नहीं दिखाई देते हैं. हरियाणा में ये हालत तब है जब ये दिल्ली के काफी नजदीक है.
15 अगस्त 2014 को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “जब मैं डिजिटल इंडिया की बात कहता हूं तो ये अमीरों के बारे में नहीं है, यह गरीब लोगों के लिए है.” इस दौरान मोदी ने इंडिया के तहत तमाम सब्जबाग दिखाए थे. इसके बाद दिसंबर 2018 में केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा ने 2019 तक देश के सभी गावों को इंटरनेट से जोड़ने की बात कही थी.
ये सब घोषणाएं सच्चाई से बहुत दूर हैं. डिजिटल क्रांति सिर्फ कागजों और इश्तिहारों में रह गई. जानकारों का मानना है कि गांवों के इंटरनेट से जुड़ने की योजना फेल साबित हुई है.
असल में ये योजना मोदी सरकार की पहल नहीं है, बल्कि ये साल 2011 में नेशनल फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क के नाम से यूपीए सरकार के दौरान शुरू हुई थी. ये योजना सैम पित्रोदा के दिमाग की उपज थी. बाद में मोदी सरकार ने इसका नाम बदलकर भारतनेट कर दिया.
भारतनेट योजना के तहत ग्राम पंचायतों को ब्लॉक से फाइबर केबल से जोड़ना था. इसके बाद उपयोगकर्ता को सेवाएं कैसे मिलेंगी इस बारे में इस योजना में कोई प्रावधान नहीं है. ऊपर हमने हरियाणा के जिस गांव की चर्चा की वहां इसी वजह से लोगों को इंटरनेट की सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं.
इस बारे में दिल्ली के संगठन डिजिटल एंपॉवरमेंट फाउंडेशन की मुखिया ऋतु श्रीवास्तव ने बताया, “फाइबर केबल डालने के बाद क्या हुआ? आगे गांव स्तर पर ये कैसे बांटा गया? नेटवर्क का संचालन कौन करता है? इस तरह के तमाम सवाल हैं जिनका कोई ठीक-ठाक जवाब नहीं है.”