टूट रहा है मुसलमानों की ऊंची प्रजनन दर का मिथक


The need for a Muslim leader who has taken everyone along with the Indian democracy

 

दक्षिणपंथी राजनीति के उभार ने अक्सर यह डर फैलाया है कि मुस्लिम समुदाय की बढ़ी जन्म दर जल्दी ही इस देश में हिन्दू समुदाय को अल्पसंख्यक बना देगी. करीब डेढ़ साल पहले ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम में हिन्दू दंपत्तियों से अपनी जन्म दर बढ़ाने का आग्रह किया था. इसकी वकालत में मोहन भागवत ने संस्कृति और सभ्यता की रक्षा की भी दुहाई दी.

साल 2015-16 के दौरान नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) की ओर से किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि हिन्दुओं में फैलाया जा रहा इस तरह के डर का कोई सिर-पैर नहीं है. एनएफएचएस ने अपने इस सर्वे में बताया है कि दोनों समुदायों की औसत प्रजनन दर का अंतर बीते चार दशकों में सबसे निचले स्तर पर आ गया है.

नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे के 2005-06 के रिपोर्ट में हिन्दू और मुसलमान समुदायों की महिलाओं के औसत प्रजनन अनुपात में 30.8 फीसदी का फर्क था, लेकिन 2015-16 के सर्वे में दोनों समुदायों का औसत प्रजनन अनुपात घटकर 23.8 फीसदी ही रह गया.

आने वाले दिनों में दोनों समुदायों के प्रजनन अनुपात में और कमी दर्ज हो सकती है. ऐसी उम्मीद है कि 2021 के जनगणना में यह फर्क और कम हो जाएगा.

मोहन भागवत ने 2016 के कार्यक्रम में बगैर किसी तथ्य के यहां तक कह दिया था कि हिन्दूओं के मुकाबले दूसरे समुदायों में चार गुना ज्यादा बच्चे जन्म लेते हैं. उस वक्त उन्होंने यह भी कहा था कि अगर यही हाल रहा तो हिन्दुओं का 2025 तक अपने ही देश में अस्तित्व बचाना कठिन हो जाएगा.

हालांकि ब्रिटिश हुकूमत से भारत की आजादी के वक्त दोनों समुदायों की प्रजनन क्षमता में 10 फीसदी का फर्क था. 1970 के आस-पास देश भर में परिवार नियोजन कार्यक्रम के चलते हिन्दू समुदाय ने गर्भनिरोधक उपायों पर जोर दिया. वहीं, मुसलमान समुदाय में इन उपायों को अपनाने की दर काफी धीमी रही.

1990 तक आते-आते इसकी वजह से दोनों समुदाय के प्रजनन अनुपात में 30 फीसदी का फर्क आ गया. यह फर्क ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरी इलाकों में ज्यादा देखने को मिला था.

मुसलमान समुदाय में प्रजनन को लेकर कई दफा गरीबी को भी जिम्मेदार माना जाता है. लेकिन 1993-94 के एनएसएसओ रिपोर्ट को देखें तो यह बात पूरी तरह सही साबित नहीं  होती है. उस वक्त के आंकड़ों में दोनों समुदायों के सभी वर्गों (निर्धन और धनी) में प्रजनन अनुपात में फर्क देखने को मिला था.

जनसांख्यिकी विशेषज्ञ पीएन मारी के अनुसार, हिन्दू समुदाय में 2021 तक प्रजनन दर प्रति महिला 2.1 के स्तर तक पहुंच जाएगी. वहीं, मुसलमान समुदाय को यह औसत दर हासिल करने में साल 2031 का समय लगेगा. इस गति से देश में हिन्दू जनसंख्या 2061 तक और मुसलमान जनसंख्या 2101 तक स्थिर हो जाएगी.

जाहिर है नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे डर की राजनीति करने वाले उन तमाम दावों को को खारिज करता है, जो यह कहानी बुन रहे हैं कि अगर हिन्दूओं ने ज्यादा बच्चे पैदा नहीं किए तो एक दिन इस देश में अल्पसंख्यक रह जाएंगे.


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