छह महीनों में सीवर साफ करते हुए 50 सफाईकर्मियों की मौत
सीवर में होने वाली मौतों का सिलसिला थमता हुआ नजर नहीं आ रहा है. राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इस साल के शुरुआती छह महीनों में 50 कर्मचारियों की मौत हो चुकी है.
ये आंकड़े एक और नजरिए से काफी चौंकाने वाले हैं. 26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से आयोग के पास सिर्फ आठ राज्यों के आंकड़े मौजूद हैं. बाकी राज्यों को नजरअंदाज कर दिया गया है.
जिन राज्यों से ये आंकड़े लिए गए हैं उनमें उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु शामिल हैं.
हालांकि असली तस्वीर इससे भी भयावह हो सकती है. आयोग खुद स्वीकार कर रहा है कि राज्यों ने मरने वाले कर्मचारियों की संख्या कम करके दिखाई है. सफाई कर्मचारी आयोग को जो आंकड़े राज्यों ने दिए हैं, उन्हीं को आधिकारिक तौर पर शामिल किया है.
दिल्ली की ओर से दी गई जानकारी में एक जनवरी से 30 जून के बीच मरने वाले मजदूरों की संख्या तीन बताई गई है. जबकि वास्तविक आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हैं. उदाहरण के लिए जून में दिल्ली जल बोर्ड की ओर से सफाई में लगाए गए तीन मजदूरों की मौत को इन आंकड़ों में शामिल नहीं किया गया है.
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ही पूरे देश में एकमात्र संस्था है जो इन हादसों में मरने वाले कर्मचारियों के आंकड़ों को सहेजती है.
इस तरह से आंकड़े इकट्ठा करने के बावजूद आयोग के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 1993 से अब तक 817 कर्मचारियों की मौत सीवर की सफाई करते हुए हो चुकी है. हालांकि हाथ से सफाई करने वाले मजदूरों की मौत के आंकड़े बीते दो साल से ही एकत्र करने शुरू किए गए हैं.
आयोग ने बीते हफ्ते संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की थी. आयोग की इस रिपोर्ट में एक महत्वपूर्ण बात उठाई गई थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकार के स्वच्छ भारत अभियान को सिर्फ शौचालय निर्माण तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि इसके माध्यम से हाथ से मल साफ करने वाले मजदूरों के पुनर्वास भी किया जाना चाहिए.
आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इस तरह से मरने वाले सफाई कर्मचारियों के मामले में तमिलनाडु सबसे ऊपर है. यहां रिपोर्ट किए जाने तक कुल 210 मजदूरों की मौत हो चुकी थी.
जबकि गुजरात में मरने वाले सफाई कर्मचारियों की संख्या 156 रिकॉर्ड की गई है. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 77 और हरियाणा में 70 मजदूर मौत के मुंह में समा चुके हैं. हरियाणा में बीते छह महीनों में ही 11 सफाई कर्मचारियों की मौत हो चुकी है.
ऐसे मामले में मरने वाले कर्मचारियों के परिवार को 10 लाख रुपये सहायता राशि दिए जाने का प्रावधान है. हर्जाना देने में ज्यादातर राज्यों का रिकॉर्ड बहुत खराब है. इस मामले में तमिलनाडु का रिकॉर्ड सबसे बेहतर है. यहां इस तरह मरने वालों के 75 फीसदी परिवारों को सहायता मिल चुकी है.
सहायता राशि देने के मामले में गुजरात का रिकॉर्ड बहुत खराब है. यहां सिर्फ 30 फीसदी पीड़ित परिवारों को मुआवजे की राशि दी गई है.
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष जाला ने मैनुअल स्केवेंजर्स और उनके पुनर्वास अधिनियम के रूप में रोजगार का निषेध अधिनियम 2013 में संशोधन का प्रस्ताव रखा है. इस प्रस्ताव में इन कर्मचारियों को नियुक्ति देने वाली संस्थाओं को किसी ठहराए जाने का प्रावधान करने की बात कही गई है.
आयोग की रिपोर्ट में रेलवे की जमकर खिंचाई की गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि रेलवे ही सबसे ज्यादा सफाईकर्मियों को काम पर रखता है और हाथ से सफाई करने वालों की जितनी संख्या रेलवे में है उतनी कहीं और नहीं है.