पूर्व नौकरशाहों ने चुनाव आयोग की ‘बुजदिली’ पर जताई चिंता


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रिटायर्ड अधिकारियों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर चुनाव आयोग के बेदम आचरण को लेकर चिंता जताई है. इस पत्र में कहा गया है कि कई मौकों पर ऐसा देखने में आया, जब आयोग ने उचित कार्रवाई नहीं की. अधिकारियों ने कहा कि ये हालत तब है, जबकि अभी 17वीं लोकसभा के लिए मतदान शुरू भी नहीं हुआ है.

पत्र लिखने वालों में पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन और योजना आयोग के पूर्व सचिव एनसी सक्सेना जैसे नौकरशाहों के नाम शामिल हैं.

अधिकारियों ने पत्र में कहा, “हम चुनाव आयोग के बेदम आचरण को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं. इसकी वजह से इस संवैधानिक संगठन की विश्वसनीयता अब तक के सबसे निचले स्तर पर है.”

संवैधानिक आचरण शब्द का इस्तेमाल करते हुए इन पूर्व नौकरशाहों ने कहा, “चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर लोगों के विश्वास में कमी होने पर हमारे लोकतंत्र को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.”

उन्होंने कहा, “चुनाव आयोग की स्वतंत्रता, निष्पक्षता, तटस्थता और दक्षता के साथ समझौता हो रहा है, जिसके चलते चुनाव प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा खतरे में है. ये किसी लोकतंत्र की नींव होती है.”

पत्र में इन अधिकारियों ने कहा, “केंद्र की सत्ताधारी पार्टी लगातार आचार संहिता का उल्लंघन कर रही है और चुनाव आयोग इसको लेकर बुजदिली दिखा रहा है.”

इस पत्र में प्रधानमंत्री के 27 मार्च के नागरिक संबोधन का जिक्र भी किया गया है, जब एंटी-सैटेलाइट मिसाइल के परीक्षण को लेकर नरेंद्र मोदी ने लोगों को संबोधित किया था.

पत्र में कहा गया है, “हालांकि परीक्षण का समय भी सवाल पैदा करता है, लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि इसकी घोषणा प्रधानमंत्री ने क्यों की, जबकि कायदे से इसे डीआरडीओ के अधिकारियों को करना चाहिए था. और ये भी ऐसे समय जब आचार संहिता लागू थी.”

इन नौकरशाहों ने कहा है कि इसको लेकर चुनाव आयोग ने जो तर्क दिया उसमें कोई दम नहीं था. आयोग ने कहा था, चूंकि इसका प्रसारण दूरदर्शन ने नहीं किया इसलिए आचार संहिता के उल्लंघन का मामला नहीं बनता.

इस पत्र में मोदी की बायोपिक और ‘मोदी- ए कॉमन मैन जर्नी’ वेब सीरीज को लेकर भी आयोग की आलोचना की गई है.

पत्र में नमो टीवी चैनल का जिक्र भी है. इसमें कहा गया है, “चुनाव आयोग ने वेब सीरीज और बायोपिक की तरह ‘नमो’ चैनल को लेकर भी निष्क्रियता दिखाई है. ये सूचना प्रसारण मंत्रालय की बिना किसी आधिकारिक इजाजत के शुरू कर दिया गया. अब ये नरेंद्र मोदी की छवि और विचारों को प्रचारित कर रहा है.”

इस पत्र में अधिकारियों के तबादलों को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं. पत्र में कहा गया, “चुनाव आयोग ने आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में अधिकारियों के तबादले कर दिए, लेकिन तमिलनाडु में ऐसा नहीं किया गया. जबकि वहां के पुलिस महानिदेशक पर गुटखा घोटाले के मामले में जांच चल रही है.”

इस पत्र में राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह का जिक्र भी किया गया है. कल्याण सिंह ने संवैधानिक पद पर रहते हुए बीजेपी का समर्थन करने की मांग की थी.

पत्र में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी के ‘मोदी की सेना’ वाले बयान पर भी सवाल उठाए गए हैं. इसके अलावा पीएम के महाराष्ट्र में बांटने वाले बयान की भी आलोचना की गई है.

वीवीपैट के ईवीएम मशीनों से मिलान को लेकर चुनाव आयोग के रुख पर भी सवाल उठाए गए हैं.

इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में योजना आयोग के पूर्व सचिव एनसी सक्सेना, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिव शंकर मेनन, बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव अर्धेंदु सेन, पूर्व कोयला सचिव आलोक पेर्ती, गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक पीजीजे नंपूथिरी और ट्राई के पूर्व चेयरमैन राजीव खुल्लर के नाम शामिल हैं.


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