लेखक संगठनों ने पीएम को पत्र लिखने वाले बुद्धिजीवियों पर हमले की निंदा की
चार लेखक संगठनों ने लिंचिंग और घृणा अपराध को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखने वाले 49 कलाकारों और बुद्धिजीवियों पर 62 अन्य लोगों द्वारा किए गए हमले की निंदा करते हुए संयुक्त बयान जारी किया है. इन चार लेखक संगठनों में जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, जन संस्कृति मंच और दलित लेखक संघ शामिल हैं.
लेखक संगठनों ने अपने बयान में कहा है कि मोदी सरकार में सत्ता के विरोध का विरोध एक आम बात हो गई है और बीजेपी समर्थक कलाकार, जिनमें से ज्यादातर असामाजिक तत्व हैं, लगातार बुद्धिजीवियों से बदसलूकी कर रहे हैं.
संयुक्त बयान में कहा गया, “लेखक-कलाकार हमेशा से सत्ता के विरोध में रहे हैं, लेकिन मोदीराज में सत्ता के विरोध का विरोध एक स्थाई रुझान बनता जा रहा है. जब 2015 में लेखकों-कलाकारों-वैज्ञानिकों ने अपने पुरस्कार लौटाकर सत्ताधारी दल की असहिष्णुता का विरोध किया तो एक हिस्सा, भले ही इस हिस्से के लोगों का कद अपने-अपने कार्यक्षेत्र में उतना बड़ा ना हो, उनके विरोध में उठ खड़ा हुआ.”
बयान में आगे कहा गया, “जब 23 अक्टूबर 2015 को प्रोफेसर कलबुर्गी की शोकसभा की मांग के साथ लेखक-कलाकार साहित्य अकादमी के कार्यकारी मंडल की बैठक के मौके पर अपना मौन जुलूस लेकर पहुंचे, तब वहां भी भाजपा समर्थक लेखकों-कलाकारों का एक जमावड़ा इनके विरोध में मौजूद पाया गया जिसमें नरेंद्र कोहली जैसे औसत दर्जे के लोकप्रिय लेखक को छोड़ दें तो कोई प्रतिष्ठित नाम नहीं था. ”
संगठनों ने अपने संयुक्त बयान में कहा, “अनुपम खेर के नेतृत्व में 2015 में ही सत्ताधारी दल के समर्थन में इंडिया गेट पर एक प्रदर्शन हुआ जिसमें कलाकारों के नाम पर बड़ी संख्या में असामाजिक तत्व शामिल थे, जिन्होंने पत्रकारों और विशेष तौर पर महिला पत्रकारों के साथ बदसलूकी की. इसी प्रकार 2019 के आम चुनाव से पहले 210 बुद्धिजीवियों ने मोदीराज खत्म करने की अपील की, तो इसके विरोध में मोदीराज का समर्थन करती हुई 600 कथित बुद्धिजीवियों की अपील जारी हुई. इन 600 नामों में गिने-चुने लोग ही ऐसे थे जिन्हें उनके क्षेत्र में उन्हें कोई ठीक से जानता हो.”

संगठनों ने आगे कहा कि जहां 49 कलाकारों और बुद्धिजीवियों ने देश में लगातार बढ़ती जा रही लिंचिंग की घटनाओं को केंद्र में रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा, वहीं 62 अन्य लोगों ने इस पत्र में उठाए गए सवालों का जवाब देने की जगह इसे बीजेपी-आरएसएस की भाषा में राजनीति से प्रेरित और झूठा बता दिया.
संयुक्त बयान में कहा गया, “बुद्धिजीवियों और कलाकारों ने मुसलमानों और दलितों के खिलाफ हो रहे घृणा अपराधों के आंकड़ों को विश्वसनीय स्रोतों से उठाते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा, वहीं 62 लोगों द्वारा लिखे गए दूसरे पत्र में बीजेपी-आरएसएस द्वारा विनिर्मित झूठों जैसे- कैराना से हिंदुओं के पलायन, कश्मीरी पंडितों की समस्या और देश के विश्वविद्यालयों में लगे देशद्रोही नारों को बुद्धिजीवियों का समर्थन का सहारा लेकर पहले पत्र को देश विरोधी के तौर पर पेश कर दिया गया.”
संयुक्त बयान में आगे कहा गया, “जिन बुद्धिजीवियों-कलाकारों ने केंद्र में सरकार की विचारधारा को देखे बिना कभी भी अपनी आलोचनात्मक चेतना का विसर्जन नहीं किया, उनके विरोध को संकीर्ण राजनीति से प्रेरित बताना असल में खुद एक स्तरहीन दलगत पक्षधरता का उदाहरण है. बुद्धिजीवियों-कलाकारों की अपील जनता में असर करती है, क्योंकि लोगों के दिलों में उनके लिए इज्जत और भरोसा है. यह बात भाजपा-आरएसएस को पता है. साथ ही उन्हें यह भी पता है कि इनकी शिकायतों के विरोध में दो चार नामचीन लोगों के साथ गुमनाम लोगों की फेहरिस्त को जोड़कर लोगों को बरगलाया जा सकता है और उनके बीच ईमानदार बुद्धिजीवियों की विश्वसनीयता को दरकाया जा सकता है. प्रतिरोध का विरोध करने के पीछे यही मंशा है.”
संयुक्त बयान में आगे कहा गया, “बुद्धिजीवी और कलाकार की खाल ओढ़े इन हत्या समर्थकों की हम भर्त्सना करते हैं और इनसे उम्मीद करते हैं कि भविष्य में कोई बयान जारी करते हुए ये ओढ़ी हुई खाल की थोड़ी परवाह करेंगे. बुद्धिजीवी और कलाकार के दावेदार के रूप में नहीं, बतौर नागरिक भी, इन्हें अल्पसंख्यकों और दलितों की हत्याओं का बचाव करते हुए इस तरह का बयान जारी नहीं करना चाहिए.”