थम नहीं रहा आंकड़ों की बाजीगरी का खेल


crisiil scales down gdp growth rate of current fiscal year

 

केंद्र की मोदी सरकार देश में रिकॉर्ड तोड़ बेरोजगारी को छिपाने और आंकड़ों की बाजीगारी की कोशिशों में ढीला पड़ना नहीं चाहती. नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की रिपोर्ट में कल यह बात सामने आई थी कि साल 2017-18 में देश में बेरोजगारी पिछले साढ़े चार दशकों में सबसे ज्यादा रही.

इस रिपोर्ट पर मचा राजनीतिक तूफान अभी थमा नहीं है कि सरकार ने एक बार फिर राष्ट्रीय आय के नए आंकड़ें सामने रखकर साल 2017-18 की जीडीपी दर को 6.1 फीसदी से बढ़ाकर 7.2 फीसदी कर दिया है.

आश्चर्यजनक ये भी है कि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) की ओर से जीडीपी दर में किए गए इस पहले संशोधन में साल 2016-17 की जीडीपी दर को भी 7.1 फीसदी से बढ़ाकर 8.2 फीसदी कर दिया गया है. यह वही साल था जब नोटबंदी को लागू किया गया था.

साल 2017-18 की जीडीपी दर सिर्फ एक महीने पहले ही जारी की गई थी. अक्सर जीडीपी में संशोधन नए अध्ययनों और निष्कर्षों के आधार पर किया जाता है. यह बात समझ से परे है कि एक महीने के भीतर ही सीएसओ ने किस आधार पर जीडीपी दर को संशोधित कर बढ़ा दिया.

इस संशोधन के बाद मोदी सरकार के कार्यकाल में एक वर्ष भी ऐसा नहीं होगा जिसमें जीडीपी दर 7 फीसदी से कम रही हो. इसके अलावा नोटबंदी का साल यानी साल 2016-17 वह साल बन जाएगा जब जीडीपी दर सबसे ज्यादा रही हो. यह तमाम अर्थशात्रियों और जानकारों के निष्कर्षों के ठीक उलट है.

सीएसओ का दावा है कि उसने जीडीपी में यह संशोधन केंद्र और राज्य सरकार के वास्तविक बजटों, सहकारी बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों से मिले नवीनतम आंकड़ों और विभिन्न मदों पर मिली संशोधित जानकारियों के आधार पर किया है. हालांकि औद्योगिक और सर्विस सेक्टर की वृद्धि दर के आंकड़ें इस दावे के अनुरूप नहीं हैं.

वहीं जानकार मान रहे हैं कि आम चुनाव से ठीक पहले पेश किए जाने वाले अंतरिम बजट से पहले सरकार ने ये बाजीगारी राजकोषीय घाटे को कम दिखाने के लिए की है. राजकोषीय घाटे की गणना जीडीपी दर के आधार पर ही की जाती है. जहां साल 2017-18 में राजकोषीय घाटे के जीडीपी के 3.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था, वहीं पिछले बजट में पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साल 2018-19 में राजकोषीय घाटे के 3.3 फीसदी रहने का अनुमान जताया था.

दरअसल, राजकोषीय घाटे को कम दिखाने के लिए साल 2018-19 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर को 5 फीसदी दिखाया गया है जबकि 2017-18 में यह 3.3 फीसदी थी. ठीक इसी तरह, औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि दर को 5.8 (2017-18) फीसदी के मुकाबले 6 फीसदी(2018-19) और सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर को 7.9 (2017-18) फीसदी के मुकाबले 8.1 (2018-19) फीसदी दिखाया गया है.

यह क्षेत्रवार बढ़ोतरी जमीनी स्थितियों से मिल नहीं खाती. जानकार मानते हैं कि जिस समय में कृषि क्षेत्र गहरे संकट के दौर से गुजर रहा है, उस समय यह मानना मुश्किल है कि कृषि क्षेत्र प्रगति कर रहा है. कृषि संकट के गहराने के कारण ही विभिन्न राज्य सरकारों को किसानों की कर्ज माफी संबंधी घोषणाएं करनी पड़ी हैं.

असल में मोदी सरकार द्वारा जीडीपी के आंकड़ों में यह संशोधन करना दिखाता है कि वह बेरोजगारी के आंकड़ों की सच्चाई को अर्थव्यवस्था की उजली तस्वीर पेश कर ढकना चाहती है. हालांकि ऐसा करके वह जमीनी वास्तविकताओं को नकार नहीं सकती.


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