डूब रहे हैं सरकारी बैंक, बाजार में हिस्सेदारी घटी


RBI's use of reserved capital in meeting government expenditure: Nomura

 

एसेट क्वालिटी रिव्यू(एक्यूआर) और प्रोम्ट करेक्टिव एक्शन(पीसीए) के बाद मुश्किल में आये सरकारी बैंक लगातार प्राइवेट सेक्टर के बैंकों से पीछे छूट रहे हैं. पिछले तीन साल में जमा और उधार के साथ बाजार में सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी लगातार घटी है. क्रेडिट और जमा राशि दोनों मोर्चों पर सरकारी बैंकों ने बनी-बनाई जमीन खोई है. जबकि प्राइवेट बैंक लगातार तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.

आरबीआई बैंकों की बैलेंस सीट को जांचने के लिए एएसक्यू की प्रक्रिया अपनाती है. बैंकों को भारी घाटा होने की स्थिति में यह प्रक्रिया अपनाई जाती है.

खस्ताहाल बैंकों की निगरानी, नियंत्रण और उनके हालात में सुधार लाने के लिए पीसीए के तहत आरबीआई निगरानी तंत्र विकसित करती है.

तीन जनवरी 2018 को आरबीआई की ओर से जारी व्यवसायिक बैंक के बेसिक स्टैटिकल रिटर्न डाटा के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2018 में सरकारी बैंकों के सकल क्रेडिट में  63.2 फीसदी, वित्तीय वर्ष 2017 में 65.8 फीसदी और वित्तीय वर्ष 2016 में 68.1 फीसदी की कमी आई है. जबकि प्राइवेट सेक्टर के बैंकों ने इसी समय अवधि में अपनी स्थिति मजबूत की है. वित्तीय वर्ष 2018 में प्राइवेट बैंक के कुल क्रेडिट में 29.3 फीसदी, वित्तीय वर्ष 2017 में 26.7 फीसदी और 2016 में 24.1 फीसदी की वृद्धि हुई.

जमा राशि के मामले में भी सरकारी बैंकों की बाजार में हिस्सेदारी में कमी आई है. वित्तीय वर्ष 2018 में 69.4 फीसदी, वित्तीय वर्ष 2017 में 69.4 फीसदी और वित्तीय वर्ष 2016 में 70.6 फीसदी कमी आई है. जबकि प्राइवेट बैंकों की बाजार में हिस्सेदारी वित्तीय वर्ष 2018 में 25.4 फीसदी, 2017 में 23 फीसदी और वित्तीय वर्ष 2016 में 21.5 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई.

एक्यूआर के बाद पीसीए के अंतर्गत लाए गए सरकारी बैंक नए लोन देने से बच रहे हैं.  जांच का डर और कर्ज डूबने की आशंका की वजह से कई वाजिब लोन भी जारी नहीं किया जा सका है.

साल 2015 के अगस्त से नवंबर महीने में विशेष जांच अभियान चलाया गया था. इसे एसेट क्वालिटी रिव्यू कहा गया था. एक्यूआर के बाद कई बैंकों के माली हालात सामने आ गए थे.

एक्यूआर में वित्तीय वर्ष 2016 की चौथी तिमाही में कई बड़े बैंकों में हुआ फ्रॉड सामने आए. इस तिमाही में बैंक ऑफ बड़ौदा को 3,230 करोड़, पंजाब नैशनल बैंक को 5,367 करोड़ और आईडीबीआई बैंक को 1,376 करोड़ का रिकार्ड घाटा हुआ. एएसक्यू का प्रभाव सभी सरकारी बैंकों पर हुआ था. एक्यूआर के बाद बड़ी संख्या में एनपीए का पता चला और वित्तीय वर्ष 2016 में खराब लोन की राशि में 80 गुणा की वृद्धि दर्ज की गई थी.

साल 2017 से आरबीआई ने 10 खस्ताहाल चल रहे सरकारी बैंकों, आईडीबीआई बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया, देना बैंक, इलाहाबाद बैंक, यूको बैंक को पीसीए फ्रेमवर्क के तहत रखा है.  जबकि इंडियन ओवसीज बैंक साल 2015 से ही इसके तहत है. इसका उदेश्य सुधारात्मक उपायों से इन बैंकों की माली हालत में सुधारा लाना है.

वित्तीय मामलों पर बनी संसदीय स्थायी समिति ने अपनी जांच में पाया कि पीसीए फ्रेमवर्क के तहत आरबीआई इन 11 सरकारी बैंकों के कामकाज पर सख्ती से निगरानी रख रही है. जिनमें उधार देने से लेकर नई नियुक्तियों पर नियंत्रण भी शामिल हैं.

समिति ने चिंता जताई है कि आने वाले समय में पीसीए फ्रेमवर्क में कुछ और सरकारी बैंक आ सकते हैं. जो बैंक और अर्थव्यवस्था के लिए ऐसे दुष्चक्र की तरह होगा. जिससे निकल पाना मुश्किल होगा.

बैंकों के बंद होने से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होता है. आमतौर पर सरकार घाटे में चल रहे बैंकों को बंद नहीं होने देती है. और स्थिति अनियंत्रित होने से पहले हालात में सुधार लाने के लिए कदम उठाये जाते हैं.

क्या होता है पीसीए?

खस्ताहाल बैंको की निगरानी, नियंत्रण और उनके हालात में सुधार लाने के लिए पीसीए के तहत आरबीआई निगरानी तंत्र विकसित करती है. इसके तहत आरबीआई सीआरएआर (बैंक की बैलेंस सीट की स्थिति जानने के लिए), एनपीए और आरओए के आधार पर बैंकों के लिए सीमाएं तय करती है. न्यूनतम जमा राशि, संपत्ति पर मिले रिटर्न और नॉन परफार्मिंग एसेट(एनपीए) संबंधी नियमों को सख्ती से लागू करने के लिए पीसीए लागू की जाती है.

पीसीए के तहत बैंकों को बड़ी रकम को दोबारा जमा लेने, शुल्क आधारित आय बढ़ाने के लिए नए कदम उठाने की अनुमति नहीं होती है. उन्हें किसी नई प्रकार के व्यवसाय में जाने की अनुमति नहीं होती है. इसके साथ ही बैंक को इंटरबैंक मार्केट से उधार लेने पर पाबंदी लगा दी जाती है. ये बैंक का एनपीए कम करने के लिए अभियान इसके तहत उठाये गए कदम हैं.

भारतीय रिजर्व बैंक(आरबीआई) ने अप्रैल 2017 में पीसीए के लिए नई गाइडलाइन जारी की थी.

क्या होता है एक्यूआर?

आमतौर पर आरबीआई के इंस्पेक्टर सालाना वित्तीय स्थिति जानने के लिए बैंक बुक की जांच करते हैं.  एनुअल फाइनेंशियल इन्सपेक्शन यानि एपीआई में बैंक लोन के सैंपल से यह सुनिश्चित किया जाता है कि लोन की अदायगी और वित्तीय स्थिति सही है.

जबकि एक्यूआर की प्रक्रिया में बड़ा सैंपल लिया जाता है, जिसमें सभी बड़े लोन धारकों के एकाउंट की जांच की जाती है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 में किए गए एक्यूआर के बाद 200 एकाउंट को एनपीए घोषित किया गया था. बैंक बैलेंस सीट की ‘सफाई’ के लिए मार्च 2017 का समय तय किया गया था.


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