गन्ने के FRP में कोई इजाफा नहीं, किसानों के हाथ लगी निराशा


government decide not to change frp of sugar cane, sugar industry welcome, farmer says betrayal

 

केंद्र सरकार ने पेराई सीजन 2019-20 के लिए गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में कोई परिवर्तन ना करने का फैसला किया है. चीनी मिल मालिकों के लिए इसे तोहफे के रूप में देखा जा रहा है. जबकि किसानों के हाथ सिर्फ निराशा लगी है. मोदी सरकार के इस फैसले के बाद किसान ठगा सा महसूस कर रहे हैं.

इंडियन एक्सप्रेस किसान नेता राजू शेट्टी के हवाले से लिखता है कि ये किसानों के साथ सरकार का विश्वासघात है. इस समय गन्ने का एफआरपी 275 रुपये प्रति क्विंटल है. महंगाई को देखते हुए इसमें बढ़ोतरी होनी चाहिए थी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली आर्थिक मामलों के लिए कैबिनेट कमिटी ने गन्ना सेक्टर के लिए दो बड़े फैसले लिए हैं. इनमें से पहला है कि सरकार मिल स्तर पर 40 लाख टन का बफर स्टॉक बनाने जा रही है. इसमें करीब 1,674 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. जिसे सरकार मिलों को सब्सिडी के रूप में देगी. इससे मिल मालिकों को गन्ना किसानों का बकाया भुगतान करने में मदद मिलेगी.

दूसरे फैसले के तहत सरकार ने गन्ने के उचित एवं लाभकारी मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं करने का फैसला किया है. यह बीते साल की तरह 275 रुपये प्रति क्विंटल ही रहेगी. साल 2009-10 के बाद ये पहली बार है जब सरकार ने गन्ने की कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं की है.

उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) वो कीमत होती है जिस पर मिल मालिकों को किसानों से गन्ना खरीदना होता है.

गन्ना उद्योग की ओर से सरकार के इन कदमों का जोरदार स्वागत किया गया है. पश्चिमी भारत चीनी मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष भैरवनाथ थोम्बरे ने बताया कि वे बीते एक साल से इसके लिए लॉबिंग कर रहे हैं. उनका कहना है कि ये पहले से ही अधिक है.

उन्होंने बताया, “हम कृषि लागत और कीमत आयोग के अध्यक्ष से मिले थे और इस बात की ओर इंगित किया था कि किस तरह से एफआरपी बढ़ाने से पूरे चीनी उद्योग में अस्थिरता आ जाएगी.”

थोम्बरे खुद लातूर क्षेत्र में दो मिलों के मालिक हैं. उनका कहना है कि गन्ने की कीमतें हर फसल से अधिक हैं. उन्होंने बताया कि सरकार के इस फैसले से सभी हितधारकों को फायदा होगा.

दूसरी तरफ किसानों के बीच निराशा का माहौल है. किसानों का कहना है कि खाद और डीजल की कीमतें पहले ही आसमान छू रहीं हैं. ऐसे में गन्ने की कीमतों को बढ़ाया जाना जरूरी था. राजू शेट्टी का कहना है कि खाद की कीमतों में पहले की अपेक्षा 100 रुपये तक की बढ़ोतरी हो चुकी है ऐसे में गन्ने का एफआरपी बढ़ाया जाना जरूरी था. सरकार के इस फैसले से गन्ना किसानों के साथ अन्याय हुआ है.

शेट्टी ने बताया कि बीते साल गन्ने का बेस रिकवरी मूल्य 9.5 से बढ़ाकर 10 कर दिया गया था. इस वजह से पहले ही 20 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से नुकसान उठाना पड़ रहा है. अब इस फैसले के बाद किसानों को एक और झटके का सामना करना होगा.

थोम्बरे का मानना है कि बीते साल सरकार का एफआरपी बढ़ाने का फैसला आर्थिक होने के बजाय राजनीतिक था. लेकिन इस बार मूल्य ना बढ़ाकर सरकार ने बहुत जरूरी और साहसी कदम उठाया है.


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