पड़ोसी देशों से आने वाले मुसलमानों को छोड़कर बाकी सबको मिलेगी नागरिकता
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने नागरिक नियम, 2009 में बदलाव लाते हुए पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से संबंध रखने वाले छह अल्पसंख्यक धार्मिक समूहों के लिए अलग से कॉलम रखने संबंधित नोटिफिकेशन जारी किए हैं.
विवादास्पद नागरिक बिल, 2016 फिलहाल संसद में विचाराधीन है. अंग्रेजी अखबार द हिन्दू के मुताबिक नए संशोधन में आवदकों के लिए कहा गया है, “क्या आप इनमें से किसी एक अल्पसंख्यक देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, जैन, सिख, बौद्ध, पारसी या ईसाई धर्म से आते हैं?”
सरकार ने यह बदलाव नागरिक एक्ट, 1955 के खण्ड 18 में किया है. नया नियम तीन दिसम्बर को जारी किया गया है.
साल 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू, जैन, सिख, पारसी, ईसाई और बौद्ध धर्मावलंबियों को नागरिकता देने के लिए नागरिक संशोधन बिल, 2016 को बदलने के लिए एक संसदीय समिति का गठन किया गया है.
इस बिल का असम में विरोध हो रहा है. बिल के लागू होने के बाद से 1971 के बाद असम आने वाले ‘अवैध प्रवासियों’ को भी भारतीय नागरिकता मिल जाएगी. बीजेपी शासित इस राज्य में 1985 के बाद से राज्य में अवैध प्रवासियों के आने पर प्रतिबंध लगा हुआ है.
असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन(एनआरसी) की अंतिम सूची में असम में रह रहे 40 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं किए गए हैं. 30 जून को एनआरसी की अंतिम सूची जारी की गई थी. पिछले महीने गृह मंत्रालय ने सात राज्यों के 44 जिला अधिकारियों को पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के छह अल्पसंख्यक धार्मिक समूहों के लिए ऑनलाइन आवेदन स्वीकार करने संबंधित नोटिस जारी किए थे. हालांकि इसमें असम का कोई भी जिला शामिल नहीं था.
बीजेपी सांसद और नागरिक संशोधन बिल पर बने संयुक्त संसदीय कमिटी के अध्यक्ष राजेन्द्र अग्रवाल ने गृह मंत्रालय के इस कदम को पीड़ितो के लिए लाभकारी बताया है. उन्होंने कहा कि नागरिकता देने का अधिकार संसद के पास सुरक्षित है.
साल 2011 के बाद से पाकिस्तान से आने वाले 30,000 हिन्दुओं को लंबे समय का वीजा जारी किया गया है.