रेलवे के विकास के लिए विदेशी कंपनियों को आमंत्रित कर सकती है सरकार
Twitter
भारत सरकार मेक इन इंडिया परियोजना के तहत रेल निर्माण इकाइयों के लिए एक वैश्विक निविदा (Global Tendar) पर विचार कर रही है. जिसमें भारत में विदेशी कंपनियां आकर रेल निर्माण में अपनी भागीदारी अदा करेंगी.
भारत के स्वामित्व वाली स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया और जिंदल स्टील एंड पॉवर के साथ भारतीय रेलवे की मांग पूरी होने की सम्भावना नहीं लग रही है, इसलिए भारत सरकार के पास वैश्विक निविदा का ही एक मात्र स्रोत बचा है.
भारत सरकार द्वारा विदेशी कंपनियों से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (Expression of Interest) मांगने की पूरी सम्भावना है. जिन कंपनियों से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट मांगा जाएगा उनमें मुख्यतः वोस्टालपाइन शिएनन, सुमितोमो कॉर्पोरेशन, अंगंग ग्रुप इंटरनेशनल, ईस्ट मेटल्स, सीआरएम हॉन्ग कॉन्ग, ब्रिटिश स्टील, फ्रांस रेल और अटलांटिक स्टील शामिल हैं.
पिछले साल नवम्बर में रेलवे विकास नगर लिमिटेड को खरीद करते समय अनिवार्य स्थानीय सोर्सिंग क्लॉज से छूट दी गई थी. यह खरीद सरकारी खरीद के लिए घरेलू रूप से निर्मित लौह इस्पात नीति के प्रावधानों के तहत आवश्यक थी.
अनुमान के मुताकीब इस वितीय वर्ष में रेल निर्माण के लिए स्टील की लगभग 1.7 मिलियन टन की जरूरत होगी. इसमें से सेल ने 1.35 मिलयन टन की कमाई की है. रेलवे ने अब तक जेएसपीएल को अब तक 130,000 टन के करीब 650 करोड़ रुपये के आर्डर दिए हैं.
सूत्रों का कहना है कि कम से कम तीन लाख टन की कमी होने वाली है, जिसे सरकार वैश्विक निविदा के माध्यम से पूरा करना चाहती है.
जेएसपीएल की ओर से नियमित सप्लाई मार्च से शुरू होने की सम्भावना है. उत्पाद अभी विभिन्न गुणवत्ता जांचों से गुजर रहे हैं.
सेल ने साल 2018-19 में 5900 करोड़ रुपये की 985,000 टन रेल की आपूर्ति की थी. वहीं सेल का कहना है कि 2019-20 में इसके 37 फीसदी बढ़ने का भरोसा है.
आरवीएनएल के एक अधिकारी ने कहा, “वर्तमान में, भारतीय निर्माता सेल और जेएसपीएल क्षमता के लिहाज से 1.5-2 मिलियन टन तक जा सकते हैं. रेलवे की आवश्यकता के आधार पर बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि वे कितना उत्पादन कर सकते हैं.”
स्टील की गुणवत्ता को लेकर सेल और रेलवे में हमेशा से ही विवाद रहे हैं. यह इलिनोइस विश्वविद्यालय में से एक परिवहन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण टीम की एक रिपोर्ट के बाद पता चला कि मौजूदा पटरियों की शक्ति 25-टन एक्सल लोड संचालन के लिए पर्याप्त नहीं थी.
रेलवे को 880 मेगा पास्कल (एमपीए) से 1,080 एमपीए तक तन्य शक्ति में वृद्धि चाहिए थी.