न्यूनतम मजदूरी को 180 रुपए प्रतिदिन से भी नीचे करने की तैयारी में सरकार


government plan to nationwide daily minimum wage of less than Rs 180, rejecting its own expert panel’s recommendation

 

बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार देश में न्यूनतम मजदूरी 180 रुपये प्रतिदिन से भी कम करने जा रही है. न्यूनतम मजदूरी की ये दर इसके खुद के पैनल की अनुशंसा से काफी कम है. इस बाबत गठित विशेषज्ञ पैनल ने न्यूनतम मजदूरी 375 रुपये प्रतिदिन करने की अनुशंसा की थी. मोदी सरकार जल्द ही इसको लेकर संसद में एक विधेयक पेश करने वाली है.

केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने मीडिया से बात करते हुए इस बारे में जानकारी दी. उन्होंने न्यूनतम वेतन 180 रुपये किए जाने की बात कही, हालांकि उन्होंने इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया.

सरकार के इस कदम की तीखी आलोचना हो रही है. कुछ स्वतंत्र विश्लेषकों और मजदूर संगठन के सदस्यों ने इसे मजदूर विरोधी बताया है. उन्होंने कहा कि ये देश के 40 करोड़ कामगारों के साथ धोखा है.

इससे पहले गंगवार ने इस बारे में मीडिया से बात करते हुए कहा था, “तीन जुलाई को इस संबंध में बने बिल पर कैबिनेट ने अपनी सहमति जता दी थी. यह लोकसभा में किसी भी दिन पेश किया जा सकता है. इससे 40 करोड़ कामगारों को फायदा होगा. कुछ राज्यों में अभी तक 50,60 और 100 रुपये मजदूरी चल रही है. हमने न्यूनतम मजदूरी 178 रुपये प्रतिदिन करने जा रहे हैं.”

सरकार जो दर निर्धारित करने जा रही वह पैनल की अनुशंसा के आधे से भी कम है. श्रम अर्थशास्त्री अनूप शतपथी की अध्यक्षता में गठित किए गए पैनल ने सरकार से न्यूनतम मजदूरी 375 रुपये प्रतिदिन करने की बात कही थी.

पैनल की ये अनुशंसा 2018 की कीमतों को आधार बनाकर की गई थी. हालांकि कमिटी ने सरकार से कहा था कि देश के अलग-अलग हिस्सों में अगर एक दर संभव ना हो तो इसमें कुछ फेरबदल किया जा सकता है. कमिटी ने कहा था कि देश के पांच क्षेत्रों में ये दर 342 से 447 रुपये के बीच रखी जा सकती है.

अगर न्यूनतम मजूदरी वाला ये विधेयक संसद में पास हो जाता है तो पूरे देश में 178 रुपये की ये दर लागू होगी. राज्य इस दर को बढ़ा सकते हैं, लेकिन इससे नीचे नहीं जा सकते.

देश में इस समय 1996 में शुरू की गई निचले स्तर की न्यूनतम मजदूरी दर लागू है, जिसमें हर दो साल बाद सुधार किया जाता है. आखिरी बार इसे 2017 में अपडेट किया गया था. जब इसे 176 रुपये निर्धारित किया गया था. गंगवार के जो नई दर बता रहे हैं, वो इसी के करीब है.

सतपथी कमिटी का गठन श्रम संगठनों की मांग पर किया गया था. इन संगठनों ने कहा था कि जो न्यूनतम दरें लागू हैं उनसे मजदूरों की बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं होती.

इस कमेटी ने जिन नई दरों की अनुशंसा की है, उसमें संतुलित आहार और मनोरंजन तथा परिवहन का खर्च भी शामिल किया गया है.

इस पूरे घटनाक्रम में ये जानना रोचक है कि सरकार ने इस बारे में जनता की राय जानने के लिए कमिटी की रिपोर्ट वेबसाइट पर डाली थी. सरकार ने कहा था कि लोगों के मुद्दों को कमिटी के सामने रखा जाएगा. लेकिन रिपोर्ट आने के बाद से अब तक सरकार ने सतपथी कमिटी से किसी तरह की बातचीत नहीं की है.

इस सरकारी कदम की आलोचना आरएसएस के मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ ने भी की है. संघ की ओर से कहा गया कि 178 रुपये की न्यूनतम मजदूरी का कोई मतलब नहीं है.

सीपीएम के मजदूर संगठन सीटू के जनरल सेक्रेटरी तपन सेन कहते हैं कि 178 रुपये की न्यूनतम मजदूरी कामगार विरोधी है.

सेन ने कहा, “विशेषज्ञ कमिटी की अनुशंसा वाली 375 रुपये वाली दर भी कामगारों की जरूरतों को पूरा नहीं करती, या जो दर अलग-अलग क्षेत्रों में लागू है वो मजदूरों की जरूरतों से काफी कम है. अब सरकार पर उसकी ही कमिटी का कोई असर नहीं हुआ है. 178 रुपये की दर कामगार विरोधी है, यह उनके साथ धोखा है.”


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