लोगों का वाहन पंजीकरण और ड्राइविंग डेटा बेचकर कमाई कर रही है सरकार


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बजट से पहले पेश हुए आर्थिक सर्वेक्षण में डेटा बेचकर राजस्व कमाने को लेकर काफी बहस हुई थी. लेकिन असल में सरकार पहले से ही आम नागरिकों का डेटा बेचकर कमाई कर रही है. राज्य सभा में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने खुलासा किया है कि सरकार भारतीयों के वाहन पंजीकरण और ड्राइविंग लाइसेंस से जुड़े डेटा बेचकर पैसे कमा रही है.

हालांकि राज्य सभा में दिए गए जवाब से यह साफ नहीं हुआ है कि मंत्रालय किस प्रकार वाहन पंजीकरण और ड्राइविंग लाइसेंस के डेटा बेचने से जुड़ी चुनौतियों और लोगों की निजता का ध्यान रख रहा है. महाराष्ट्र से कांग्रेस के राज्य सभा सांसद हुसैन दलवई ने सरकार से पूछा था, “अगर सरकार का वाहन-सारथी डेटाबेस थोक में बेचने का इरादा है तो वह डेटा बेचन से हुए अनुमानित राजस्व को सार्वजनिक करे.”

जवाब में सरकार ने बताया कि उसने 87 निजी और 32 सरकारी कंपनियों को विहान और सारथी डेटाबेस का एक्सेस करने की छूट दी है और अब तक इससे 65 करोड़ रुपये जमा हो चुका है. इस साल की शुरुआत में वाहनों से जुड़े डेटा बेचने की नीति को कैबिनेट से मंजूरी मिली थी.

विहान और सारथी साफ्टवेयर में वाहन पंजीकरण, चालान, परमिट और ड्राइविंग आदि की जानकारी मौजूद है. इस डेटाबेस का उपयोग ही आरटीओ करता है. इसके पास अब तक लगभग 25 करोड़ वाहन पंजीकरण और 15 करोड़ ड्राइविंग लाइसेंस का रिकॉर्ड है.

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने ‘बल्क डेटा शेयरिंग पॉलिसी एवं प्रक्रिया’ बनाई है. इसके तहत वाहन पंजीकरण के डेटा से जुड़ी कुछ जानकारी को साझा किया जा सकता है.

राज्य सभा में लिखित में जवाब देते हुए गडकरी ने कहा, “जो भी संगठन बल्क डेटा पाना चाहती है, वह वित्त वर्ष 2019-20 में 3 करोड़ रुपये जमा कर इसे प्राप्त कर सकती है.”

शैक्षणिक संस्थाएं केवल अनुसंधान के उद्देश्य और आंतरिक उपयोग के लिए डेटा प्राप्त कर सकती हैं. सरकार ने बताया कि 2019-20 के वित्त वर्ष के लिए संस्थाएं एक बार में 5 लाख का भुगतान कर के बल्क डेटा प्राप्त कर सकती हैं.

सरकार ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के जरिए विहान-सारथी डेटाबेस को चोरी हुए वाहनों के डेटा के साथ लिंक कर दिया है.

भारत में निजी जानकारियों के डेटा को बेचना बहुत आम बात है. हालांकि ऐसा पहली बार है जब सरकार ने यह माना है कि वह कमाई के लिए डेटा बेच रही है.

भारत में डेटा सुरक्षा को लेकर किसी भी तरह का कोई कानून नहीं है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने निजता को अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार करार दिया है.

सरकार के जवाब से यह साफ नहीं हुआ कि निजी कंपनियां उन डेटा का कैसे इस्तेमाल कर रही हैं.


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