हवाई अड्डों के निजीकरण में वित्त मंत्रालय और नीति आयोग के सुझाव दरकिनार


govt ignored finance ministry and niti aayog guidelines on airport privatisation

  लखनऊ हवाई अड्डा (wikimedia)

देश के छह प्रमुख हवाई अड्डों को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया में सरकार ने वित्त मंत्रालय और नीति आयोग के कई अहम दिशा-निर्देशों को दरकिनार किया है. हवाई अड्डों के निजीकरण की प्रक्रिया के तहत वित्त मामलों के विभाग की ओर से एक निजी कंपनी को दो से अधिक हवाई अड्डे नहीं देने के सुझाव को सरकार ने अस्वीकार कर दिया है. सरकार के इस फैसले का लाभ संभावित तौर पर अडानी सूमह को होता हुआ दिख रहा है.

बीते साल नवंबर में कैबिनेट ने एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) के अंतर्गत आने वाले छह हवाई अड्डों के निजीकरण का फैसला किया था.

वित्त मंत्रालय के वित्त मामलों के विभाग (डीईए) और नीति आयोग की ओर से निजीकरण के तहत बोली लगाने वालों की पात्रता को अधिक बेहतर बनाने के लिए कुछ महत्तवपूर्ण सुझाव दिए थे.

11 दिसंबर को इन सुझावों पर फैसला लेने और प्रस्ताव को अंतिम रूप देने के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप अपरेजल कमिटी (पीपीपीएट) की बैठक हुई.

द हिंदू की खबर के अनुसार विभागों की ओर से सुझाव दिया गया था कि बोली लागाने वाले समूह को इस क्षेत्र में पूर्व अनुभव होना चाहिए. इसके अलावा समूह से कुल लागत मूल्य के संबंध में भी जानकारी देने की मांग की गई थी, ताकि उसकी वित्त योग्याता का अंदाजा लगाया जा सके.

पैनल की बैठक के तीन दिन बाद 14 दिसंबर को एएआई ने लखनऊ, अहमदाबाद, जयपुर, गुवाहाटी, तिरुवंथमपुरम और मैंगलोर एयरपोर्ट के लिए पीपीपी मोड के तहत प्रबंधन, विकास और संचालन के लिए टेंडर जारी किया था.

फरवरी 2019 में एएआई ने घोषणा की कि अडानी समूह ने सभी छह हवाई अड्डों के लिए सबसे अधिक बोली लगाई. जिसके बाद 3 जुलाई को कैबिनेट ने इनमें से तीन हवाई अड्डों को किराए पर देने की अनुमति दे दी. जबकि अभी तीन एयरपोर्ट के संबंध में जानकारी नहीं मिली है.

द हिंदू की ओर पूछे गए सवाल के जवाब में अब तक उन्हें सुभाष चंद्र गर्ग और नागरिक उड्डयन सचिव पीएस खारोला से जवाब नहीं मिला है. इस फैसले के समय गर्ग वित्त मामलों के सचिव और पीपीपीएसी की अध्यक्ष थे. फिलाहाल वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव पद से उनका तबादला विद्युत मंत्रालय में कर दिया गया है.

महत्तवपूर्ण सुझावों को किया दरकिनार

पीपीपीएसी की बैठक से पहले डीईए और नीति आयोग ने अपने सुझाव पैनल की मीटिंग में भाग लेने वाले मंत्रालयों से साझा की थी. नोट से पता चलता है कि डीईए ने सुझाव दिया था कि “छह हवाई अड्डों की यह परियोजनाएं अत्याधिक पूंजी निवेश वाली हैं. ऐसे में कार्यगत समस्याओं और वित्त जोखिमों को देखते हुए बोली लगाने वाले किसी भी समूह को दो से अधिक हवाई अड्डों की जिम्मेदारी ना दिए जाए. विभिन्न समूहों को जिम्मेदारी देने से उनके बीच कड़ी प्रतिद्वंदिता भी देखने को मिलेगी.”

अपने सुझावों के समर्थन में डीईए ने नोट में कहा, “दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों के लिए योग्य समूह केवल जीएमआर था. लेकिन इसके बावजूद एक ही कंपनी को दो हवाई अड्डों की जिम्मेदारी नहीं दी गई.”

पीपीपीएसी ने हालांकि इस सुझाव को दरकिनार करते हुए कहा कि बोली लगाने के लिए या निश्चित हवाई अड्डे एक समूह को नहीं दिए जाने जैसे नियंत्रण लगाने की आवश्यकता नहीं है.

वहीं नीति आयोग की ओर से कहा गया था कि बोली लगाने वाले समूह को संचालन और प्रबंधन में पूर्व अनुभव होना जरूरी है. वहीं ऐसा ना होने के स्थित में मॉडल रिक्वेस्ट फॉर क्वालिफिकेशन (RfP) का सुझाव दिया गया था, जिसके तहत बोली लगाने वाले समूह के सामने अन्य अनुभवी समूह या योग्य लोगों के साथ जुड़ने की शर्त रखी जा सकती है.

पैनल ने इन सुझावों को स्वीकार नहीं किया. जबकि इससे पहले दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और हैदराबाद हवाई अड्डों की जिम्मेदारी विदेशी कंपनियों को दी गई थी, जिन्होंने RfP की शर्त को पूरा किया था.

साथ ही कुल परियोजना लागत के संबंध में भी सुझाव स्वीकार नहीं किया गया. डीईए के सुझाव के संबंध में नागर विमानन मंत्रालय की ओर से स्पष्टिकरण दिया गया कि 50 वर्षों के लिए किराए पर देने के संबंध में कुल लागत की जानकारी दे पाना संभव नहीं है. मंत्रालय ने कहा कि ये ब्राउन फील्ड एयरपोर्ट हैं और इसके लिए सभी जरूरी डाटा होना जरूरी है.

पैनल ने इस संबंध में मंत्रालय का ही फैसला अपनाया.

डीईए ने पैसेंजर फीस (पीपीएफ) को बोली पर अंतिम फैसला लेने के लिए आधार बनाने पर भी चिंता जाहिर की. डीईए का कहना था कि पीपीएफ को केवल आरक्षित मूल्य के तौर पर रखा जाना चाहिए.

हालांकि एयरपोर्ट अथॉरिटी एम्प्लॉई यूनियन के सदस्य सोभान पीवी की ओर से दाखिल आरटीआई के जवाब में एएआई ने कहा कि “पीपीएफ के संबंध में फैसला करने के लिए कोई अध्ययन नहीं किया गया.”


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