एक दशक में छठी बार चुनाव का सामना कर रहा है ग्रीस


greek general election: tsipras syriza party facing bad time

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यूरोपीय देश ग्रीस एक दशक के दौरान छठी बार चुनावी प्रक्रिया से गुजर रहा है. हालांकि 2018 में बेलआउट पैकेज से सफलता पूर्वक बाहर आने के बाद ये पहला चुनाव है. इससे पहले यूरोपीय संसद के लिए हुए चुनाव में ग्रीस के प्रधानमंत्री एलेक्सिस सिप्रास की पार्टी को भारी झटका लगा था.

इन चुनावों में उनकी सिरिजा पार्टी विरोधी दल कंजर्वेटिव न्यू डेमोक्रेसी पार्टी (एनडी) से 10 फीसदी अंकों से पीछे रह गई थी. इसके बाद सिप्रास ने 26 मई को आकस्मिक चुनाव कराने की घोषणा कर दी थी.

यूरोपीय संसद के चुनाव के साथ ही देश में स्थानीय चुनाव कराए गए थे जहां मुख्य विपक्षी पार्टी ने सिप्रास की सिरिजा पार्टी को मात दी थी.

क्यों हो रहे हैं आकस्मिक चुनाव?

जनवरी 2015 में सिरिजा पार्टी ने दक्षिणपंथी दल इंडीपेंडेंट ग्रीक्स पार्टी (एएनईएल) के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. एएनईएल मितव्ययिता विरोधी कार्यक्रम पर आधारित पार्टी है. इन चुनावों के छह महीने बाद ही तीसरे बेलआउट पैकेज के लिए जनमत संग्रह कराया गया था, जिसके बाद सरकार ने इस पर हस्ताक्षर किए थे.

तीसरे बेलआउट पैकेज को लागू करने के सवाल पर सितंबर में एक बार फिर से चुनाव कराए गए, जहां एक बार फिर से सिरिजा पार्टी जीत दर्ज करने में सफल रही. और इंडीपेंडेंट ग्रीक्स के साथ मिलकर सरकार बनाई.

ये गठबंधन जनवरी 2019 तक चला, इसके बाद एएनईएल सरकार से बाहर चली गई. एनएलईएल के सरकार छोड़ने के पीछे प्रेस्पा समझौते का विरोध था. ये समझौता ग्रीस और उत्तर मेसेडोनिया के बीच हुआ था. ग्रीस में इस समझौते का व्यापक तौर पर विरोध हुआ था.

उस दौरान किरियाकोस मिसोटाकिस की अगुआई में एनडी पार्टी ने भी इस समझौते का जमकर विरोध किया था. और इस पार्टी के कुछ महत्वपूर्ण सांसदों ने इस मुद्दे पर हो रहे विरोध में खुलकर हिस्सा लिया था.

मिसोटाकिस ने यहां तक कह दिया था कि अगर उनकी सरकार होती है तो वे उत्तरी मेसेडोनिया के यूरोपीय यूनियन में शामिल होने के सवाल पर वीटो पॉवर का इस्तेमाल करेंगे.

मिसोटाकिस ग्रीस के एक मशहूर राजनीतिक परिवार से संबंध रखते हैं. उनके पिता ग्रीस के प्रधानमंत्री रहे हैं और उनकी एक बहन विदेश मंत्री रह चुकी हैं.

आखिर सिरिजा पार्टी यूरोपियन संसद के चुनाव क्यों हारी?

जानकारों का मानना है कि यूरोपियन संसद के लिए हुए चुनाव में सिरिजा के हारने के पीछे की मुख्य वजह इससे मध्य वर्ग का मोहभंग हो जाना है. बेलआउट पैकेज से हुआ लाभ इस वर्ग तक नहीं पहुंचा बल्कि इसे भारी टैक्स का सामना करना पड़ा.

कामकाजी वर्ग जो 2012 से 2015 तक हमेशा सिरिजा के साथ रहा, उसने भी इन चुनावों में उसे पीठ दिखा दी. इसकी वजह ये थी कि सत्ताधारी पार्टी श्रम बाजार में गिरावट को कम करने में असफल रही. हालांकि इस दौरान बेरोजगारी कम हुई और लोगों के वेतन में भी वृद्धि हुई, लेकिन ये सिरिजा पार्टी को उभारने में नाकाफी साबित हुए.

क्या हैं मुख्य पार्टियों के मुद्दे?

इस चुनाव में मुख्य होड़ मध्यवर्ग के वोटों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हो रही है. इस वर्ग में वकील, डॉक्टर, मैकेनिक, कुशल कर्मचारी और सरकारी अधिकारी आते हैं.
इनमें से ज्यादातर का मानना है कि खराब आर्थिक हालत का बोझ उनके सिर पर रहा, जबकि सिरिजा पार्टी ने उनकी कोई मदद नहीं की.

कई सर्वे दावा करते हैं कि इस मध्य वर्ग के 10 में से नौ परिवार अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इनमें से अधिकतर किसी तरह के अतिरिक्त खर्च को वहन नहीं कर सकते हैं.

तीन साल तक विपक्ष में रहने के दौरान एनडी पार्टी के सुर बदले हैं. अब ये पार्टी आर्थिक सुधार और सुरक्षा पर बल देने की बात कह रही है. मिसोटाकिस नए निवेश, कम टैक्स, अधिक से अधिक वेतन और बड़े शहरों की गलियों में अधिक पुलिस के वादे कर रहे हैं.

वहीं दूसरी ओर सिप्रास की सिरिजा पार्टी दावा कर रही है कि अब जाकर वह अपने कार्यक्रम को लागू करने लायक हुई है. उसका कहना है कि पार्टी अब गठबंधन के दबाव से मुक्त हुई है, जिससे उसे अपने मुताबिक काम करने में आसानी होगी.

सिप्रास का कहना है कि मिसोटाकिस की पार्टी सात दिन काम करने की व्यवस्था लागू करना चाहती है, और बाजार को और ज्यादा अनियमित करने वाली है. साथ ही सिप्रास का कहना है कि एनडी सरकारी कर्मचारियों की संख्या में भी कटौती करेगी.

क्या कहते हैं चुनाव पूर्व सर्वे?

ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक एनडी पार्टी 9-12 फीसदी की बढ़त ले सकती है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या ये पार्टी बिना गठबंधन के सरकार बनाने में सफल होगी. संसद में प्रवेश पाने के लिए किसी दल को कम से कम तीन फीसदी वोट हासिल करने होते हैं.

जानकारों के मुताबिक संसद में कम से कम सात दल प्रवेश पाने में सफल रहेंगे. इसमें पहले नंबर पर एनडी पार्टी और दूसरे पर सिरिजा के रहने के कयास लगाए जा रहे हैं.

अगर इस चुनाव में एनडी पार्टी सरकार बनाने लायक वोट पाने में असफल रहती है और गठबंधन भी नहीं हो पाता है तो अगस्त में फिर से चुनाव होगा.


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