नहीं रहे हिन्दी आलोचना के स्तम्भ डॉ नामवर सिंह
हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार और आलोचक डॉ नामवर सिंह का बीती रात नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया. वे 92 वर्ष के थे. डॉ सिंह पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे. उन्हें कुछ दिन पहले एम्स में भर्ती किया गया था. परिजनों के मुताबिक़, आज लोधी रोड स्थित श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.
जुलाई 1926 में यूपी के चंदौली जिले के जीयनपुर गांव में पैदा हुए डॉ नामवर सिंह लम्बे समय तक हिन्दी आलोचना के स्तम्भ रहे. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और बाद में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में उन्होंने बतौर अध्यापक हिन्दी आलोचना और साहित्य की दुनिया को समृद्ध किया. हिन्दी साहित्य की दुनिया उन्हें ‘जनयुग’ और ‘आलोचना’ के संपादक के रूप में भी जानती थी.
उनके बारे में एक बेहद दिलचस्प तथ्य ये भी है कि उन्होंने साल 1959 में चकिया-चंदौली सीट से चुनाव भी लड़ा. साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजे जा चुके नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य में आलोचना को एक नया आयाम दिया.
‘छायावाद’, ‘इतिहास और आलोचना’, ‘कहानी नयी कहानी’, ‘कविता के नये प्रतिमान’, ‘दूसरी परम्परा की खोज’ और ‘वाद विवाद संवाद’ उनकी प्रमुख रचनाएं हैं.
डॉ सिंह की मौत पर हिन्दी के साहित्यिक जगत में शोक का माहौल है. वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी से उन्हें ‘हिन्दी में साहित्य की दूसरी परंपरा का अन्वेषक’ बताया है. उन्होंने लिखा है कि हिन्दी साहित्य में नामवर सिंह के निधन से सन्नाटा पसर गया है.