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चंद्रयान-2 से कैसे होगा चंद्रमा का अध्ययन?


how will chandrayan 2 mission work

 

देश के प्रतिष्ठित चंद्र अभियान, चंद्रयान-2 के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटा है. यह किसी खगोलीय पिंड पर उतरने का इसरो का पहला अभियान है. यह 2008 में प्रक्षेपित चंद्रयान-1 की ही अगली कड़ी है.

चंद्रयान-1 को पीएसएलवी रॉकेट के जरिए प्रक्षेपित किया गया था, लेकिन इस बार अभियान को जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट के जरिए अंजाम दिया जाएगा. ये लांच ऐसे मौके पर होने जा रहा है जब इंसान के चंद्रमा पर पहुंचने के 50 साल पूरे होने जा रहे हैं.

16 जुलाई 1969 को अमेरिका का अपोलो-11 अभियान लांच किया गया था. उस अभियान में इंसान को सफलतापूर्वक चंद्रमा पर उतारने के बाद वापस धरती पर उतार लिया गया था.

ये लांच कैसे होगा?

सबसे पहले अंतरिक्ष यान को जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट से धरती की पार्किंग कक्षा के लिए लांच किया जाएगा. इसके बाद कुछ समय तक अंतरिक्ष यान को यहां रोककर रखा जाएगा.

जब वांछित प्रक्षेपवक्र मिल जाएगा, तब इसे फिर से गति दी जाएगी. चंद्रमा के प्रभावमंडल में पहुंच जाने के बाद इसके थ्रस्टर को धीरे कर दिया जाएगा, ताकि ये चंद्रमा के प्रभाव में आ जाए.

इसके बाद इसे चक्रीय कक्षा में छोड़ दिया जाएगा. यहीं पर लैंडर और रोवर को एक यूनिट के रूप में आर्बिटर से अलग कर दिया जाएगा. फिर एक ब्रेकिंग सिस्टम की सीरीज के जरिए छह सितंबर 2019 को इसकी आराम से लैंडिंग कराई जाएगी.

क्या खास है चंद्रयान-2 में?

चंद्रयान-2 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का अध्ययन करने वाला पहला अभियान होगा. ये एक आर्बिटर और लैंडर से मिलकर बना है. इसके लैंडर का नाम मशहूर अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है. इसके रोवर का नाम प्रज्ञान रखा गया है, जिसका अर्थ बुद्धिमत्ता होता है.

इस मिशन में प्रयोग किए जा रहे अंतरिक्ष यान का कुल भार 3,877 किलो है. ये पिछले यान से करीब चार गुना है.

इसे जीएसएलवी मार्क-3 से लांच किया जाएगा. ये रॉकेट भारतीय अंतरिक्ष एंजेसी इसरो का सबसे शक्तिशाली रॉकेट है.

चंद्रयान-1 ने अपना लैंडर चंद्रमा पर गिराया था, जबकि इस अभियान में पूरी यूनिट को आराम से उतारा जाएगा. विक्रम को चंद्रमा पर मौजूद दो क्रेटर के बीच समतल भूमि पर उतारा जाएगा.

इस अभियान की लागत 978 करोड़ रुपये है. अभियान में प्रयोग किए जा रहे लैंड-रोवर की संभावित आयु 14 दिन है, जबकि इसका आर्बिटर एक साल तक सक्रिय रहेगा.

कैसे काम करेगा प्रज्ञान?

चंद्रमा अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करने के लिए 29.5 दिन लेता है. इतने समय में ही यह धरती का एक चक्कर भी पूरा करता है. यही कारण है कि इसका एक ही सिरा हमेशा धरती के सामने रहता है.

चंद्रमा के दिन धरती के 14 दिनों के बराबर होते हैं. चंद्रयान की लैंडिंग छह सितंबर को होगी, जब हम चंद्रमा का एक-तिहाई हिस्सा देख सकेंगे. इस समय जब चंद्रयान लैंडिंग कर रहा होगा, इसकी लैंडिंग करने की जगह वाला हिस्सा धरती की ओर होगा और सूर्य की किरणें इस पर पड़ रही होंगी.

इस हिस्से पर अगले पखवाड़े तक सूर्य की रोशनी रहेगी. यही कारण है कि इसकी उम्र 14 दिन तक की है. ये यूनिट सोलर ऊर्जा से काम करती है, इसलिए बिना रोशनी के ये काम नहीं कर सकती.

लेकिन अगर इसरो दूसरे पखवाड़े में भी इसे चालू करने में सफल रहा तो ये उसके लिए बोनस की तरह होगा.

आर्बिटर पर मौजूद कैमरा से इस मिशन की तस्वीरें एकत्र की जाएंगी. जिन्हें 3डी में परिवर्तित किया जाएगा. इस आर्बिटर पर आठ उपकरण या पेलोड मौजूद होंगे. हर पेलोड का काम अलग होगा. इनमें कुछ चंद्रमा की सतह पर इलेक्ट्रॉन का घनत्व मापेंगे कुछ तापमान की गणना करेंगे.

इस मिशन में सबसे कठिन हिस्सा लैंडिंग बताया जा रहा है. अब तक कुल मिलाकर चांद पर 38 लैंडिंग प्रयास हो चुके हैं. इसरो के मुताबिक इनकी सफलता का औसत 52 फीसदी है.

अभियान की आवश्यकता क्यों?

चंद्रमा अध्ययन के लिए प्राचीन वातावरण उपलब्ध कराता है. ये दूसरे खगोलीय पिंडों के नजदीक भी है. इसके निर्माण और क्रियाकलाप के बारे में बेहतर समझ होने से सोलर सिस्टम को समझने में आसानी होगी, यहां तक की धरती के बारे में भी अधिक जानकारी मिलेगी.

धरती के पास खगोलीय पिंडों को समझने से और आधुनिक मिशन में सहायता मिलेगी. आखिर में पूरी सौर प्रणाली अपने आप में एक पहली है, जिसे समझने का प्रयास लगातार जारी है.


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