जम्मू-कश्मीर: जमानत के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर करवा रही है सरकार


in jammu kashmir govt asking detainee to sign bond to ensure release

 

5 अगस्त को सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा हटा दिया और शांति बनाए रखने का हवाला देते हुए सैकड़ों नेताओं, कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया. 75 दिन का समय बीत गया है. सैकड़ों के तादाद में नेता, कार्यकर्ता अब भी हिरासत में हैं. वहीं विरोध प्रदर्शनों, पथराव के घटनाओं और शांति बनाए रखने का हवाला देते हुए राह चलते ‘संदिग्ध’ लोगों को हिरासत में लिया जा रहा है.

अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक ‘शांति बनाए रखने के लिए अनुबंध’ नामक दस्तावेज पर हस्ताक्षर के बाद ही सरकार हिरासत में लिए गए लोगों की रिहा कर रही है.

खबर के मुताबिक सरकार हिरासत में लिए गए लोगों, राजनेताओं पर इस अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव बना रही है.

एक वरिष्ठ वकील और मानव अधिकार कार्यकर्ता ने अनुबंध को गैर कानूनी और असंवैधानिक करार दिया. उन्होंने कहा, सीपीसी की धारा 107 के तहत बनाए जाने वाले मूल अनुबंध (जिसमें अपराधियों से हस्ताक्षर करवाए जाते हैं) का संशोधित रूप है.

जानकारी के मुताबिक हिरासत में लिए गए राजनेताओं और अकादमिक जगत के लोगों को अनुबंध पर हस्ताक्षर के बाद रिहा कर दिया गया. जबकि अनुबंध पर हस्ताक्षर से इनकार करने वाली राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती अब भी हिरासत में हैं.

हालांकि इस अनुबंध में स्पष्ट तौर पर अनुच्छेद 370 का जिक्र नहीं है. लेकिन वकील कह रहे हैं कि इस दस्तावेज पर लिखा है, ‘शांति बनाए रखने के लिए अनुबंध.’ उनका कहना है कि सरकार ऐसा करके रिहाई के बाद नेताओं और कार्यकर्ताओं की किसी भी सार्वजनिक गतिविधियों पर सवाल उठा सकती है.

अनुबंध में हस्ताक्षरकर्ता ये स्वीकार करता है कि ‘मामले में जांच चलने तक वो शांति भंग करने का प्रयास नहीं’ करेंगे. इसके तहत हस्ताक्षरकर्ताओं को 10 हजार रुपये जमा करने हैं. इसके अलावा अगर हस्ताक्षरकर्ता अनुबंध का उल्लंघन करता है तो उसे जमानत के तौर पर 40 हजार रुपये देने होंगे.

हाई कोर्ट में वकील अल्ताफ खान ने बताया कि विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिरासत में ली गई दो औरतों से रिहाई के लिए अनुबंध के साथ एक माफीनामा पर भी हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया, हालांकि महिलाओं ने इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. इसमें गलती के लिए ‘माफी’ मांगने और ‘भविष्य में इसे ना दोहराने’ की बात कही गई है.

मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज ने कहा, ’75 दिनों के भीतर सरकार ने पांच से छह हजार लोगों को हिरासत में लिया, जिसमें से बहुत से लोगों को अनुबंध पर हस्ताक्षर के बाद रिहा कर दिया गया.’

सरकार ने हिरासत में लिए गए लोगों के बारे में अब तक आधिकारिक जानकारी नहीं दी है.

उन्होंने बताया कि कुछ मामलों में एक व्यक्ति की रिहाई के लिए सरकार सामूहिक अनुबंध पर भी हस्ताक्षर करवा रही है. जिसमें 5-20 लोगों को अनुबंध पर हस्ताक्षर करने होते हैं.


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