भीमा कोरेगांव मामला: सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, वी गोन्जाल्विस की जमानत याचिका खारिज


Bhima Koregaon case: Judge dismisses media report about war and peace

 

बॉम्बे हाई कोर्ट ने भीमा कोरेगांव मामले में सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और  वी गोन्जाल्विस की जमानत याचिका खारिज कर दी है.

जस्टिस एसवी कोतवाल ने 26 अगस्त को जमानत याचिका पर सुनवाई शुरू की थी और सात अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सभी तीन आरोपियों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम और आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत आरोप लगाए गए है.

मामले में पुलिस ने दावा किया था कि 31 दिसंबर 2017 को दिए गए भड़काऊ भाषणों की वजह से अगले दिन पुणे जिले के भीमा-कोरेगांव गांव के आसपास जातीय हिंसा भड़की थी. भीमा कोरेगांव की लड़ाई के 200 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित समारोह में हिंसा भड़की. हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी तथा कुछ अन्य घायल हो गए थे.

गोन्जाल्विस की ओर से मामले में पेश हुए वकील मिहिर देसाई ने कहा, ‘गोन्जाल्विस बीते एक साल से जेल में है. पुणे पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज की है उसमें उनका नाम नहीं है. पुलिस ने केवल दो पत्रों के आधार पर कार्रवाई की. इन पत्रों पर ना तारीख है ना ही किसी के हस्ताक्षर. ये पत्र पुलिस को किसी के लेपटॉप से मिले थे.’

सुधा भारद्वाज की ओर से मामले में पेश हुए वकील डॉ. युग चौधरी ने बेंच से कहा, ‘इस मामले में एक भी ऐसा दस्तावेज नहीं है जो कानून में मान्य हो. सभी प्रस्तुत दस्तावेज प्रिंट आउट कॉपी है और मूल कॉपी नहीं.’

भारद्वाज बीते साल अक्टूबर से पुणे की यरवदा सेंट्रल जेल में बंद हैं.

अरुण फरेरा के वकील सुदीप पासबोले ने बेंच को बताया कि फरेरा आदिवासी लोगों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता और वकील हैं.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को गिरफ्तारी से संरक्षण की अवधि शुक्रवार को 15 अक्टूबर तक के लिए बढ़ा दी थी.


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