महाराष्ट्र: फसल बीमा दिखाने के लिए खेती के आंकड़ों में बड़ी हेरा-फेरी


in maharashtra major irregularities in farm claim crops for insurance

 

महाराष्ट्र सरकार ने इस साल फसल बीमा के अंतर्गत आने वाले भूमि रिकॉर्ड में बड़े स्तर पर अनियमितताएं पाई हैं. जानकारी के मुताबिक, इस रबी मौसम में पूरे राज्य में 33 लाख 81 हजार हेक्टेयर जमीन पर खेती की गई. लेकिन फसल बीमा करीब 45 लाख हेक्टेयर भूमि का हुआ है.

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया लिखता है कि राज्यअधिकारियों के मुताबिक जमीनी स्तर पर फसल के लिए जोती गई भूमि और बीमा के तहत आने वाली भूमि में ये बड़ा अंतर प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा हो सकता है.

साल 2016 में राष्ट्रीय खेती बीमा योजना की जगह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की गई थी. नई योजना के तहत किसानों को बाढ़, सूखा, और कीड़ो द्वारा फसलें खराब हो जाने और साथ ही फसल की बुआई के बाद होने वाले तमाम नुकसानों के लिए बीमा की सुविधा दी गई है.

दस्तावेजों के मुताबिक राज्य में रबी फसलों की बुआई के लिए मौजूद 56 लाख 93 हजार हेक्टेयर भूमि में से औसतन करीब 10 से 12 लाख हेक्टेकर भूमि पर ही खेती की जाती है.

साल 2015-16 में जारी किए गए आंकड़ों की माने तो (इस साल राज्य में व्यापक स्तर पर सूखा पड़ा था) रबी के मौसम में 24 लाख 55 हजार हेक्टेयर भूमि पर फसल का बीमा किया गया था.

रबी का मौसम खरीफ की तुलना में छोटा होता है. ऐसे में योजना के तहत कम ही फसलें रजिस्टर्ड हैं, जिनके लिए बीमा की सुविधा उपलब्ध है. योजना के तहत, किसान को बीमा के प्रीमियम के तौर पर केवल दो प्रतिशत की दर से (किसी भी फसल के लिए) रकम जमा करनी होती है. बाकी की प्रीमियम  राशि राज्य और केंद्र द्वारा समान रूप से भरी जाती है.

इस साल कम बारिश होने की वजह से काफी बड़े हिस्से में रबी की फसलें नहीं लगाई गईं. एक अधिकारी ने आशंका जाहिर करते हुए कहा कि इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि “इनमें से अधिकतर केस झूठे हैं. ऐसे में बीमा के तहत आने वाली भूमि पर या तो खेती की ही नहीं गई या फिर बुआई की जमीन को बढ़ा कर दिखाया गया. इसके अलावा एक ही जमीन पर एक से ज्यादा फसल के लिए बीमा लेने का मामला भी हो सकता है.”

उन्होंने कहा कि “हमें शक है कि स्थानीय स्तर पर अधिकारी किसानों से साथ मिलकर ये काम कर रहे हैं. योजना नियमों के अनुसार, किसान को बीमा लेने लिए स्थानीय राजस्व अधिकारी से सर्टिफेकेट लेना होता है. इसमें अधिकारी भूमि पर फसल लगाए जाने को जमीनी स्तर पर सुनिश्चित करने के बाद ही सर्टिफिकेट देते हैं. वहीं, किसान बीमा का प्रीमियम योजना से जुड़े किसी भी बैंक में जमा करवा सकता है.”

अधिकारी ने बताया कि “सर्टिफिकेट जारी करने के लिए स्थानीय राजस्व अधिकारी के अंतर्गत करीब 1000 हेक्टेयर भूमि आती है. नियम के मुताबिक मंजूरी देने से पहले भूमि खुद जाकर देखनी होती है, पर कई मामलों में अधिकारी जांच नहीं करते हैं. साथ ही अधिकारी के लिए भी ये मुश्किल है कि वो सभी मामलों में ध्यान रखे कि किसान एक ही भूमि के लिए कई सर्टिफिकेट तो नहीं जारी करवा रहा.”

2015 में जांच के बाद सामने आया था कि करीब 15,000 किसानों ने झूठे दस्तावेजों के आधार पर बीमा हासिल किया था, जिसकी कीमत करीब 54 करोड़ थी.

सरकार ने इस साल सामने आए मामले में जांच के आदेश दे दिए हैं.


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