भारत ने UNHRC में कहा, जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करना आंतरिक मामला


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  ANI

कश्मीर मामले पर भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में कहा कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करना भारतीय संसद का संप्रभु निर्णय है. साथ ही भारत ने कहा कि देश अपने आंतरिक मामले में कोई हस्तक्षेप स्वीकार नहीं कर सकता.

विदेश मंत्रालय के पूर्वी मामलों की सचिव विजय ठाकुर सिंह ने यूएनएचआरसी के 42वें सत्र में भारत के खिलाफ पाकिस्तान के आरोपों को खारिज किया और कहा कि जो अन्य देशों में अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के बारे में बोलते हैं, वे खुद अपने देश में उनके मानवाधिकारों को कुचल रहे हैं और “जब वास्तव में वे खुद षड्यंत्रकारी होते हैं तो वे स्वयं को पीड़ित बताने लगते हैं.”

उन्होंने पाकिस्तान की ओर स्पष्ट संकेत करते हुए कहा कि मानवाधिकारों के बहाने दुर्भावनापूर्ण राजनीतिक एजेंडे के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) का दुरुपयोग करने वालों की निन्दा किए जाने जरूरत है. भारत ने इसे पाकिस्तान का “दुर्भावनापूर्ण” अभियान करार दिया और साथ ही “राज्य प्रायोजित आतंकवाद” की भी निन्दा की.

यूएनएचआरसी प्रमुख मिशेल बैश्लेट द्वारा सोमवार को की गई टिप्पणी पर सिंह ने कहा कि भारत द्वारा हाल में जम्मू कश्मीर में उठाए गए विधायी कदम देश के संविधान के आधारभूत ढांचे के अनुरूप हैं.

बैश्लेट ने कश्मीर में प्रतिबंधों के असर को लेकर सोमवार को “गंभीर चिंता” व्यक्त की थी और कहा था कि मूलभूत सुविधाओं तक लोगों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए भारत को मौजूदा प्रतिबंधों में ढील देनी चाहिए.

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार आयुक्त ने भारत और पाकिस्तान दोनों से कहा था कि वे सुनिश्चित करें कि कश्मीरी लोगों के मानवाधिकारों का सम्मान और संरक्षण हो.

उल्लेखनीय है कि भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने के बाद दोनों पड़ोसियों के बीच तनाव बढ़ गया है और राज्य में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाकर पाकिस्तान ने यह मुद्दा यूएनएचआरसी में उठाया है.

सिंह ने कहा, “ये निर्णय हमारी संसद ने व्यापक चर्चा के बाद किए, जिसका टेलीविजन पर प्रसारण हुआ और इसे व्यापक समर्थन मिला. हम दोहराना चाहते हैं कि संसद द्वारा पारित अन्य कानूनों की तरह यह एक संप्रभु निर्णय है, जो पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है. कोई भी देश अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप स्वीकार नहीं कर सकता है तथा भारत तो बिल्कुल भी नहीं.”

उन्होंने कहा कि चुनौतीपूर्ण परिस्थतियों के बावजूद जम्मू कश्मीर में प्रशासन आधारभूत सेवाएं, जरूरी आपूर्ति, संस्थानों में कार्य, आवागमन और लगभग पूरी कनेक्टिविटी सुनिश्चित कर रहा है.

वरिष्ठ राजनयिक ने कहा, “लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं आरंभ हो गई हैं. प्रतिबंधों में लगातार ढील दी जा रही है.”

सिंह ने कहा, “सीमा पार से आतंकवाद के खतरे के मद्देनजर हमारे नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अस्थायी नियंत्रात्मक और एहतियाती कदम आवश्यक हैं.”

उन्होंने पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल की तरफ स्पष्ट इशारा करते हुए कहा, “एक प्रतिनिधिमंडल मेरे देश के खिलाफ आक्रामक रूप से झूठे और मनगढ़ंत आरोप लगाकर लगातार बोलता रहा है.”

सिंह ने कहा, “विश्व जानता है कि यह मनगढ़ंत विमर्श वैश्विक आतंकवाद के केंद्र से आता है जहां वर्षों से सरगनाओं को आश्रय दिया जा रहा है. यह राष्ट्र ‘वैकल्पिक कूटनीति’ के रूप में सीमा पार से आतंकवाद का संचालन करता है.”

उन्होंने कहा कि आज जीवन के अधिकार की रक्षा और दुनियाभर के लोगों की सुरक्षा की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता को आतंकवाद एक गंभीर चुनौती दे रहा है.

सिंह ने कहा, “जो अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र में किसी भी प्रकार से आतंकवाद को बढ़ावा, वित्तीय मदद या समर्थन देते हैं, वास्तव में वे मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले सबसे बड़े तत्व हैं.”

उन्होंने कहा कि विश्व, खासकर भारत “राज्य प्रायोजित आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों” की गतिविधियों का बहुत अधिक पीड़ित रहा है और यह जीवन जीने के मौलिक मानवाधिकार को खतरा पहुंचाने वाले आतंकी समूहों तथा उनके आकाओं के खिलाफ निर्णायक तथा ठोस कार्रवाई करने का समय है.

सिंह ने कहा, “हमें बोलना चाहिए. चुप्पी केवल आतंकवादियों को मजबूती देती है. यह उनके आक्रामक तौर-तरीकों को भी प्रोत्साहित करती है. भारत विश्व समुदाय से आतंकवाद और इसके आकाओं के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की अपील करता है.”

पाकिस्तान ने इससे पूर्व मांग की कि यूएनएचआरसी को कश्मीर में स्थिति को लेकर अंतरराष्ट्रीय जांच करानी चाहिए. उसने विश्व निकाय से आग्रह किया कि भारत द्वारा जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद उसे “निष्क्रिय” नहीं रहना चाहिए.

सिंह ने कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय का एक जिम्मेदार सदस्य है और वह मानवाधिकारों को बढ़ावा देने तथा उनके संरक्षण के लिए एक रचनात्मक रुख में विश्वास करता है.

उन्होंने कहा, “हमारा मानना है कि मानवाधिकारों की तब सर्वश्रेष्ठ सुरक्षा होती है जब राष्ट्र के संस्थान मजबूत होते हैं. 1.3 अरब लोगों का राष्ट्र होने के नाते हम ऐसा करते हैं जो लोकतंत्र, सहिष्णुता और विविधता में एकता के उच्चतम सिद्धांतों को दर्शाता है.”


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