भारतीय व्यंजनों में विश्व भर के लोगों की दिलचस्पी बढ़ी
Wikimedia Commons
एक नए अध्ययन के अनुसार भारतीय व्यंजन लोकप्रियता के मामले में विश्व में पांचवें पायदान पर है. जहां पूरे विश्व में अमेरिकी संगीत और फिल्मों का बोलबाला है. वहीं अमेरिकी व्यंजन लोकप्रियता के मामले में अब भी पीछे हैं.
एक तरफ फिल्म और संगीत अमेरिकी संस्कृति का अहम हिस्सा है, दूसरी ओर अमेरिकी संस्कृति को समृद्ध बनाने वाले व्यंजनों का चलन बाकि देशों में कम है.
नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च के अध्ययन का हवाला देते हुए अमेरिकी अर्थशास्त्री जोएल वॉल्डफोगल ने सांस्कृतिक व्यापार में व्यंजनों की महत्त्वता बताई है. उन्होंने जापान, इटली, चीन और भारत के व्यंजनों का दूसरे देशों में कारोबार होने के फायदे बताए हैं.
अध्ययन में वॉल्डफोगल ने सीमा पार व्यंजनों के व्यापार को अधिक गहराई से समझाने की कोशिश की है. इसके लिए उन्होंने 52 देशों के खाने के खर्च का हिसाब जानने के लिए यूरोमॉनिटर और रेस्तरां के व्यंजनों लिए ट्रिपएडवाइजर के मार्केट रिसर्च डेटा का इस्तेमाल किया.
अध्ययन में उन्होंने पाया कि 2017 में अपने व्यंजनों का शुद्ध निर्यात सबसे ज्यादा जापान और इटली ने किया. व्यंजनों के शुद्ध निर्यातक होने का मतलब है कि सीमा पार किसी भी देश का भोजन अन्य देशों में कितना खाया जाता है.
भारत के संदर्भ में उन्होंने पाया है कि विश्व भर में यहां के व्यंजनों की लोकप्रियता पांचवें पायदान पर है. भारत का नंबर इटली, जापान, चीन और अमेरिका के बाद आता है.
भारत में कई विदेशी व्यंजनों के रेस्तरां भी हैं. व्यंजनों के शुद्ध आयातक होने के चलते भारत का “क्वीजीन घाटा” 2017 में लगभग 400 करोड़ का था. हालांकि सबसे ज्यादा क्वीजीन व्यापारिक घाटा अमेरिका का रहा. 2017 में अमेरिका का शुद्ध आयात 13,300 करोड़ का था. इस घाटे की वजह से बाकि सांस्कृतिक उत्पादों जैसे फिल्म और संगीत के व्यापार सरप्लस भी महत्व नहीं रखते हैं.
इसके बाद अमेरिका पर फिल्मों और संगीत में सबसे आगे होने पर सवाल उठने लगे थे.
वॉल्डफोगल का तर्क है कि सांस्कृतिक व्यापार को मापने के लिए व्यंजन व्यापार और वैश्विक व्यंजन में दिलचस्पी को नजरअंदाज कर दिया जाता है. उन्होंने सुझाव दिया कि एक सांस्कृतिक उत्पाद के रूप में व्यंजनों और व्यंजनों का समावेशी सांस्कृतिक प्रभाव की धारणाओं को बदल सकता है.