नहीं बढ़ रहा भारतीय रेलवे का गैर किराया राजस्व


Railway will appeal to passenger to give up subsidy

 

भारतीय रेलवे साल दर साल अपनी गैर किराया राजस्व (एनएफए) से होने वाली कमाई को बढ़ा पाने में असफल रहा है. आंकड़ें बताते हैं कि बीते समय में यात्री किराये के अतिरिक्त दूसरे क्षेत्रों से होने वाली रेलवे कमाई में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई है.

रेलवे ने लक्ष्य रखा था कि कुल कमाई का 20 फीसदी हिस्सा वह एनएफए से प्राप्त करेगा. लेकिन रेलवे में होने वाले लगातार बदलावों और जरूरी फैसलों के अभाव में यह असंभव होता जा रहा है. फिलहाल रेलवे अपनी कुल कमाई का केवल आठ फीसदी हिस्सा ही एनएफए से प्राप्त कर पाता है.

माल ढुलाई और पैसेंजर टिकट आदि से आने वाले किराये को छोड़कर बाकी जगहों से होने वाली कमाई को गैर किराया राजस्व (एनएफए) कहते हैं. इसमें विज्ञापन, प्रचार, पार्किंग, सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम आदि से होने वाला लाभ शामिल है.

मिंट में छपी एक रिपोर्ट में ज्योतिका सूद लिखती हैं कि पर्याप्त योग्यता और संसाधनों के रहने के बाद भी  दिशा-निर्देश  की कमी है. वह कहती हैं कि रेलवे अपनी गैर किराया राजस्व नीति को सही ढंग से लागू करने में असफल रहा है.

अभी रेलवे एनएफए नीति के तहत ट्रेन, रेलवे ब्रिज आदि पर विज्ञापन, स्टेशन पर एटीएम, ट्रेन और प्लेटफॉर्म पर इंफोटेनमेंट डिजिटल सामग्री से कमाई करता है. रेलवे ने एनएफए मॉडल को लागू कर अगले 10 साल में करीब 15,000 करोड़ की कमाई करने का लक्ष्य रखा है.

इससे पहले साल 2010-11 में रेल मंत्री रहते हुए ममता बनर्जी ने अपने बजट भाषण में कहा था कि ब्रांडिंग/विज्ञापन आदि से रेलवे की सालाना कमाई 150 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1000 करोड़ रुपये करने का लक्ष्य है. पर आज नौ साल बाद भी कुछ नहीं बदला है.

रेलवे ने साल 2018-19 के लिए एनएफए से होने वाली कमाई का लक्ष्य 1,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1,200 करोड़ रुपये कर दिया है. पर इस साल अप्रैल में एनएफए से केवल 32 करोड़ 65 लाख रुपये की कमाई हुई. रेल राज्य मंत्री राजेश गोहेन ने बताया कि रेलवे को यह कमाई प्रमुख तौर पर कोच, रेलवे जमीन, फुट ओवर ब्रिज आदि पर वाणिज्यक प्रचार से हुई है.

एनएफए नीति के खराब प्रदर्शन के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं. जैसे कम समय में नीतियों में कई बार बदलाव, एक निश्चित कार्यकाल के लिए बनाई गई टीम जो एनएफए से होने वाली कमाई को बढ़ाने की दिशा में काम करे और बड़े स्तर पर लागू की गई नीतियों का फेल होना.

रेलवे ने मई 2018 में विकेंद्रीकरण की नीति को अपनाया. उदाहरण के लिए पहले विज्ञापनदाता को अपने प्रोडक्ट का विज्ञापन देने के लिए एक व्यक्ति से मुलाकात करनी होती थी. पर अब उसे रेलवे के 16 जोन में विज्ञापन देने के लिए हर जोन के अलग-अलग जनरल मैनेजर से बात करनी होगी. विकेंद्रीकरण की नीति के साथ अब सारी शक्तियां 16 जोन में बंटे रेलवे के जनरल मैनेजर के पास आ गई हैं. साथ ही रेलवे ने विज्ञापन आदि के लिए कॉन्ट्रैक्ट की समय सीमा घटाकर 3-5 साल कर दी है. इसके साथ ही रेलवे ने सभी जोन के जनरल मैनेजर को एक हाइब्रिड रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल अपनाने के लिए कहा है.

जानकार मानते हैं कि रेलवे के लिए विकेंद्रीकरण की नीति ज्यादा लाभदायक नहीं होगी. इससे एनएफए से होने वाला उनका लाभ घट सकता है. एनएफए से होने वाले लाभ को बढ़ाने के लिए जरूरी है कि रेलवे विज्ञापनों आदि से होने वाली कमाई से आगे बढ़कर सोचे. रेलवे को बेहतर मॉडल, सेंट्रल टीम और नई पहल की जरूरत है.


Big News