एलआरएस के तहत भारतीयों ने अब तक की सबसे बड़ी रकम विदेश भेजी
इस साल जुलाई के महीने में भारतीयों ने उदारीकृत प्रेषण योजना यानि लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (एलआरएस) के तहत 1.69 बिलियन डॉलर रुपये विदेश भेजे हैं. यह अब तक की विदेश भेजे जाने वाली सबसे ज्यादा राशि है.
एलएसआर के तहत कोई भी भारतीय नागरिक एक वित्त वर्ष में ढाई लाख डॉलर तक विदेश भेज सकता है. यह आरबीआई द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधा है. इस योजना के तहत भारतीयों को विदेशों में पढ़ाई, ईलाज, रिश्तेदारों को पैसे भेजने, आप्रवासियों को पैसे भेजने की सुविधा है.
एक तरफ सरकार देश में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) को लाने का दावा करती है. वहीं दूसरी ओर वित्त वर्ष 2019 के शुरू के चार महीनों में 5.8 अरब डॉलर एलआरएस के तहत देश के बाहर गया है.
मई 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद से अब तक 45 अरब डॉलर ( एक डॉलर के मुकाबले 70 रुपये के विनिमय दर से 3.15 लाख करोड़ रुपये) से ज्यादा विदेशों में भेजे जा चुके हैं.
यही अगर यूपीए-2 के पांच सालों से तुलना की जाए तो अप्रैल 2009 से मार्च 2014 के बीच एलआरएस के तहत 5.45 अरब डॉलर भारतीयों ने विदेश भेजे थे.
भारतीय नागरिक एलआरएस के तहत पूंजी खाता लेनदेन से पैसे भेज सकते हैं. इसके तहत वे विदेशों के बैंकों में विदेशी मुद्रा खाता खोल सकते हैं, प्रोपर्टी खरीद सकते हैं, म्युचुअल फंड में भी निवेश कर सकते हैं, इसके अलावा पूंजीगत निधि में भी निवेश कर सकते हैं.
आरबीआई के पिछले पांच सालों का डेटा दिखाता है कि एलआरएस के अंतर्गत विदेश घूमने पर भारतीयों ने 14 अरब डॉलर खर्च किए हैं, करीबी रिश्तेदारों के रखरखाव के लिए लगभग 10.5 अरब डॉलर खर्च किए गए हैं और विदेशों में पढ़ाई के चलते 10 अरब डॉलर भेजे गए थे. इसके अलावा तोहफे भेजने के लिए 4.8 अरब डॉलर खर्च किए गए और शेयर और ऋण में 1.9 अरब डॉलर निवेश हुआ है.
वित्त वर्ष 2010 और वित्त वर्ष 2014 के बीच तुलना करें तो पता चलता है कि इन पांच सालो में एलआरएस के तहत विदेशी यात्रा के लिए भारतीयों ने 12.9 करोड़ डॉलर खर्च किए और करीबी रिश्तेदारों के रखरखाव के लिए 99.2 करोड़ डॉलर खर्च किए. इसके साथ ही तोहफा भेजने के लिए भारतीयों ने 1.17 अरब डॉलर खर्च किए.
पिछले पांच सालों में एलआरएस के तहत भारतीयों ने जो धन बाहर भेजे हैं उसकी तुलना में विदेशों से भारत में एफपीआई के जरिए आने वाला धन काफी कम है.
अप्रैल 2014 से अब तक एफपीआई ने भारतीय इक्विटी में 176,212 करोड़ रुपये का कुल निवेश किया है. इसी दौरान एफपीआई ने ऋण बाजार में कुल 260,017 करोड़ रुपये निवेश किया है.
निवेश विशेषज्ञों और निधि प्रबंधन के कारोबार से जुड़े लोगों की माने तो पिछले पांच सालों में एलआरएस योजना के तहत धन के विदेश भेजने में आई उछाल से जाहिर होता है कि भारत से पूंजी और छोटे और मध्यम आकार के व्यापारी भी विदेश जा रहे हैं.
एक निवेश कंपनी के सीईओ ने कहा, ‘छोटे व्यवसायी और उद्यमी जो अपेक्षाकृत संपन्न हैं, वे अपना आधार देश से बाहर स्थानांतरित करना चाहते हैं.’
एक वित्तीय सेवा कंपनी के प्रमुख ने कहा कि देश में सामाजिक सद्भाव और शांति को लेकर लोगों के बीच चिंता बढ़ रही है. इसके अलावा कर अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न से भी लोग चिंतित हैं. यही वजह है कि कई लोग जो अपेक्षाकृत संपन्न वर्ग से हैं, उनके विदेशों में बसने का आधार है.
उन्होंने कहा, ‘यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति है. अगर इस पैसे का 50 फीसदी भी भारत में रहता और व्यवसायों में निवेश होता तो यह रोजगार सृजन और अर्थव्यवस्था के विकास के मामले में बहुत प्रभावी साबित होता.’
एक अन्य बाजार विशेषज्ञ ने कहा कि अब कर की दर में 35 फीसदी से 43 फीसदी की वृद्धि (उच्चतम कर सीमा में रहने वालों के लिए) भी मददगार साबित नहीं हो रही है. उन्होंने कहा, ‘कई अमीर भारतीयों को लगता है कि भारत की तुलना में किसी विकसित देश में कर की उच्च दर का भुगतान करके वे जीवन की बेहतर गुणवत्ता प्राप्त कर सकते हैं.’
कुछ लोगों को लगता है कि सरकार को इस पर लगाम लगाने के उपायों के बारे में सोचना चाहिए.
सूत्रों के मुताबिक विदेशों में स्थायी निवास के लिए पूछताछ पिछले एक साल में लगभग दोगुनी हो गई है. कई संपन्न भारतीय अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, स्पेन, पुर्तगाल और दुबई में स्थाई तौर पर बसना चाहते हैं.
एक सूत्र ने कहा कि पिछले छह-आठ महीनों में अमेरिका (अमेरिकी रेजिडेंसी और नागरिकता के लिए) में ईबी5 वीजा ग्रीन कार्ड के लिए आवेदन में वृद्धि हुई है. नवंबर 2019 से अमेरिका ऐसे आवेदन के लिए शुल्क में 80 फीसदी की वृद्धि करने जा रहा है. वर्तमान में यह राशि 500,000 डॉलर है जो बढ़कर 900,000 डॉलर तक हो जाएगी.
एक अन्य आव्रजन सलाहकार (इमिग्रेशन एडवाइजर) ने कहा कि भारत में ईबी5 बाजार इस समय छोटा है. और इस संबंध में गतिविधि की रफ्तार पिछले एक महीने में धीमी हो गई है क्योंकि अब आने वाले आवेदनों को 900,000 डॉलर का भुगतान करना होगा. इस प्रक्रिया को पूरा होने में और सभी कागजी काम और जांच पूरी करने के लिए लगभग दो महीने का समय लगता है.