क्या भारत ने मसूद अजहर के मामले में चीन से सौदेबाजी की?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जैश प्रमुख मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने के फैसले पर 10 दिन पहले मुहर लगा दी गई थी. ये फैसला बीजिंग में होने वाले चीन के लिए अति महत्वपूर्ण बेल्ट एंड रोड फोरम के ठीक पहले लिया गया था.
इसे लेकर काफी समय से कूटनीतिक बातचीत चल रही थी. इससे पहले भी भारत कई बार ऐसे प्रयास कर चुका है, लेकिन चीन बार-बार वीटो लगाकर भारत के प्रयासों पर पानी फेर दे रहा था.
इस बार इस मुद्दे पर अधिकतर कूटनीतिक बातचीत न्यूयॉर्क, वाशिंगटन, दिल्ली, बीजिंग, पेरिस, लंदन और इस्लामाबाद में हुई. इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि इस मामले में हुई बातचीत में कम से कम छह देशों के अधिकारियों ने हिस्सा लिया.
अखबार सूत्रों के हवाले से लिखता है, “ये कार्रवाई बहुपक्षीय थी, जिसे भूमिगत होकर अंजाम दिया गया.” अखबार सूत्रों के हवाले से लिखता कि इस मामले में जटिल सौदा हुआ है.
इससे पहले विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा था कि भारत आतंकवाद के मुद्दे पर समझौता नहीं करता. उन्होंने कहा, “मैं साफ तौर पर कहना चाहता हूं कि हम आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में समझौता नहीं करते. चीन बता ही चुका है कि उसने क्यों रुकावट हटा ली है.”
अखबार लिखता है कि अजहर को प्रतिबंधित सूची में डालने का मामला इसी साल मार्च में करवटें लेने लगा था. उस समय जब चीन के वार्ताकार कांग जुयान-यू पाकिस्तान गए थे, तब पाकिस्तान ने चीन के सामने पांच पूर्व शर्तें रखी थीं. उस समय 13 मार्च आपत्ति जताने ले लिए अंतिम तिथि थी.
इस दौरान भारत ने यूएन के सभी देशों को अजहर मामले में डोजियर सौंपे. इसमें बताया गया कि मसूद अजहर किस तरह भारत में संसद पर हमले से लेकर पुलवामा तक के अपराधों में शामिल रहा है.
इसके बाद यूएन में जब एक बार फिर से चीन ने भारत के प्रस्ताव का विरोध किया, तब भारत ने कोई कड़ी आपत्ति नहीं जताई थी. ये बातचीत की प्रक्रिया का संकेत था जिसका परिणाम अब जगजाहिर हो चुका है. पुलवामा हमले की चीन द्वारा यूएन में निंदा करने से कुछ उम्मीदें भी जगी थीं.
इस बारे में चीन ने पाकिस्तान की पांच शर्तें भारत के सामने रखीं. इनमें तनाव कम करना, द्विपक्षीय बातचीत शुरू करना, पुलवामा हमले को अजहर के मामले से ना जोड़ना, अमेरिका के साथ मिलकर पाकिस्तान के अन्य समूहों को काली सूची में डालने के लिए दबाव ना डालना जाए और कश्मीर में हिंसा पर रोक लगाना शामिल थीं.
अखबार लिखता है कि हर शर्त पर दोनों देशों के बीच काफी उठा-पटक हुई, जिसमें चीन और अमेरिका ने मध्यस्थता की.
एक तरफ जहां पाकिस्तान की पूर्व शर्तें भारत के मानने लायक नहीं थीं तो वहीं दूसरी तरफ चीन अतिरिक्त शर्त के रूप में भारत से अपने बेल्ट एंड रोड का समर्थन करने को कह रहा था. इसको लेकर भारत अपने पूर्व बयान पर काबिज था. भारत चीन के सीपेक प्रोजेक्ट को लेकर विरोध जता रहा था. भारत का कहना था कि ये प्रोजेक्ट भारत की सुरक्षा के लिए खतरा है.
बीते कुछ सप्ताह में इस मामले में काफी प्रगति हुई है. ये जानते हुए कि बिना किसी बड़े प्रस्ताव के चीन कुछ नहीं करने वाला, भारत और अमेरिका ने कुछ कदम बढ़ाए हैं.
चीन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के उपाध्यक्ष की कुर्सी चाहता था, जिसमें जापान उसका प्रतिद्वंद्वी था. इस मामले में भारत ने जापान से पीछे हटने का अनुरोध किया. सूत्रों के मुताबिक इस बार फरवरी के घटनाक्रम से सीख मिल चुकी थी. इस बार भारत की बेल्ट एंड रोड नीति का लाभ उठाया गया.
मार्च के अंत में जब अमेरिका और फ्रांस ने अजहर का मुद्दा यूएन सुरक्षा परिषद में उठाने का फैसला किया. इस बार इसे प्रतिबंध समिति के सामने ना उठाने का फैसला किया गया. इसके पीछे कारण था कि इसे सबके सामने रखा जाए और वोटिंग के बल पर पास कराया जाए.
लेकिन चीन ने अब भी इस पर ज्यादा रुचि नहीं दिखाई, इसके चलते उसे अजहर को लेकर अपनी नीति सबके सामने रखनी पड़ी. ये एक ऐसा कदम था जिसके चलते चीन की वैश्विक छवि पर असर पड़ता.
इस बार अमेरिकी मदद से भारत ये बात रखने में सफल रहा कि ये सिर्फ एक व्यक्ति का मामला है जो एक आतंकवादी संगठन का मुखिया है. इसे यूएन भी मान चुका है. चीन को छोड़कर इस प्रस्ताव पर सभी सदस्य देश राजी हो गए.
अप्रैल की शुरुआत में बालाकोट को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच बना तनाव भी कम हो गया था. हालांकि पहली शर्त पूरी हो गई थी, लेकिन बाकी के बारे में कुछ साफ नहीं था.
अप्रैल के मध्य में जब बेल्ट एंड रोड सम्मेलन हो रहा था, तब अमेरिका ने चीन से अजहर के मामले पर अपनी नीति बदलने का दबाव डाला. अमेरिका से कहा गया कि अगर वो चाहता है कि ये मुद्दा यूएन सुरक्षा परिषद तक ना जाए तो उसे नीति में बदलाव करना होगा.
उसी समय भारत इस बात पर सहमत हो गया कि मई 2017 की तरह भारत बेल्ट एंड रोड को लेकर कोई स्टेटमेंट जारी नहीं करेगा. हालांकि इस दौरान भारत ने अपनी नीति ना बदलने की बात भी कही.
इस बीच 25 अप्रैल को चीन ने फैसला किया कि ये प्रस्ताव ठीक है, भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव भी कम हो चुका है और पाकिस्तान को भी इस अजहर के मुद्दे पर कोई खास आपत्ति नहीं है. एफएटीएफ को लेकर भी दोनों देशों को उम्मीद दिखी.
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध के मुद्दे पर भी भारत और अमेरिका के बीच बातचीत हुई. अमेरिका ने भारत से ईरान पर लगे प्रतिबंध में साथ देने को कहा. अजहर को प्रतिबंध का मुद्दा दांव पर लगा देख भारत इसके लिए तैयार हो गया. इससे पहले भारत ने हमेशा एकतरफा प्रतिबंधों का विरोध किया है.
इससे पहले विदेश मंत्रालय ने एकतरफा प्रतिबंधों को लेकर जारी बयान में कहा था, कि सरकार तीन कारकों को ध्यान में रखकर फैसला लेगा- “व्यापारिक विचार, ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा हित”, इससे संकेत मिला था कि इनके पास तेल के लिए वैकल्पिक योजना है.
इन सबके बाद अमेरिका ने चीन से साफ तौर पर कह दिया था कि अगर वो अजहर के मुद्दे पर प्रतिबद्धता नहीं दिखाता है तो ये अमेरिका इसे खुली बहस के लिए ले जाएगा. पहले 15 मई की तिथि तय की गई थी जिसे बाद में एक मई कर दिया गया. इसके बाद इस प्रस्ताव पर चीन ने अपनी सहमति जता दी.
उसी समय 22 अप्रैल को विदेश सचिव विजय गोखले बीजिंग गए. इस दौरान एक मई को अमेरिकी समय के मुताबिक सुबह नौ बजे समझौते पर हस्ताक्षर को लेकर सहमति बन गई. और जब अजहर को प्रतिबंधित सूची में डाला गया तो शर्त के मुताबिक अजहर को पुलवामा हमले से नहीं जोड़ा गया.
इस मुद्दे पर विदेश मामलों के प्रवक्ता बचकर निकल गए. उन्होंने कहा कि अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करवाने में उसकी सारी आतंकवादी गतिविधियों ने भूमिका निभाई. जबकि सच ये है कि इस मामले में भारत ने कई स्तरों पर सौदेबाजी कर सफलता हासिल की है.