विकास रफ्तार में गिरावट के बीच मंदी की कगार पर अर्थव्यवस्था
विभिन्न आर्थिक सूचकों का मंदी की ओर इशारा और 2012 के बाद वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर घटकर पांच फीसदी रह जाने पर विश्लेषकों का मानना है कि नीति निर्माताओं के लिए इस स्थिति से उभर पाना मुश्किल होगा.
मुंबई स्थित निर्मल बांग इक्विटी प्राइवेट में अर्थशास्त्री टेरिजा जॉन ने एक रिपोर्ट में कहा कि विकास अब लगातार दो तिमाही के लॉन्ग टर्म ट्रेंड 6.6 फीसदी से नीचे चला गया है जो दर्शाता है कि भारत लगभग मंदी जैसे हालातों में है.
शुरुआती संकेत बताते हैं कि विकास को एक बार फिर पटरी पर लाना काफी मुश्किल होने वाला है.
अगर लगातार दो तिमाहियों में जीडीपी विकास दर में गिरावट दर्ज की जाती है तो ये अर्थव्यवस्था में मंदी की मानक परिभाषा पर खरा उतरता है. साथ ही अन्य आर्थिक गतिविधियों में महीनों तक जारी सुस्ती भी मंदी की ओर इशारा करती है.
भारत में ऑटो उद्योग में बिक्री अपने दो दशकों के निचले स्तर पर पहुंच गई है. वहीं उद्योग की ओर से तमाम कोशिशें भी कामयाब नहीं रही हैं. इसके अलावा वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत थी. इस हिसाब से 2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी विकास दर में 3.2 प्रतिशत की भारी कमी आई है.
वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में आई ये कमी पिछले सात सालों में सर्वाधिक है.
ब्लूमबर्ग ने उच्च आवृत्ति वाले संकेतकों के अध्ययन में पाया कि उपभोग और निवेश में गिरवाट के बीच लगातार जुलाई महीने में भी आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती रही.
निर्मल बाग के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि सितंबर तिमाही के अंत तक जीडीपी विकास दर निम्नतम स्तर पर पहुंच सकती है. साथ ही उनका मानना है कि इस स्थिति से निपटने के लिए सरकारी खर्चों में बढ़ोतरी की जरूरत है.
विभिन्न कंपनियों के बाद अब गोल्डमैन सैक्स का भी कहना है कि सुस्ती से उभरने के लिए रिजर्व बैंक को ब्याज दर में कटौती करने की जरूरत है.
बार्कलेज पीएलसी के अनुमान के मुताबिक इस साल के अंत तक रिजर्व बैंक 65 बेसिस प्वॉइंट की कमी कर सकता है. वहीं कोटक महिंद्र बैंक का अनुमान है कि आरबीआई 75 बेसिस प्वॉइंट की कौटती कर सकता है.