जनवादी लेखक संघ ने कवियों के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस लेने की मांग की
जनवादी लेखक संघ ने हाफ़िज़ अहमद समेत असम के दस कवियों पर गुवाहाटी पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर की निंदा करते हुए इसे तत्काल वापस लेने की मांग की है. यह एफआईआर बीती 10 जुलाई को यह कहते हुए दर्ज कराई गई है कि काज़ी सरोवर हुसैन की एक ‘मियां कविता’ सोशल मीडिया पर वायरल होने से देश की राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ गई है. शिकायतकर्ता ने ये भी कहा है कि कवि ने इसमें अपने नेशनल सिटिजन रजिस्टर नंबर का ज़िक्र किया है जिससे सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही एनआरसी की प्रक्रिया बाधित हुई है. शिकायत में कहा गया है कि इस कविता को सोशल मीडिया पर साझा कर इन कवियों ने शीर्ष कोर्ट की अवमानना की है.
जनवादी लेखक संघ ने इस सभी आरोपों को निराधार बताते हुए कहा है कि जिस कविता को काज़ी सरोवर हुसैन की बताया जा रहा है, वह असल में हाफ़िज़ अहमद की है जिसका अंग्रेज़ी में अनुवाद शालिम एम हुसैन ने और हिन्दी में कथाकार चन्दन पाण्डेय ने किया है. लेखक संघ ने अपने बयान में कहा है कि शिकायतकर्ता ने कविता की वाक्य-दर-वाक्य जो व्याख्या की है, वह पूरी तरह हास्यास्पद है. अपने बयान में जनवादी लेखक संघ ने इस कविता को साझा भी किया है जिसका एक हिस्सा इस तरह है:
“दर्ज करो
कि मैं मिया हूं
नाराज रजिस्टर ने मुझे 200543 नाम की क्रमसंख्या बख्शी है
मेरी दो संतानें हैं
जो अगली गर्मियों तक
तीन हो जाएंगी
क्या तुम उससे भी उसी शिद्दत से नफरत करोगे
जैसी मुझसे करते हो?”
संघ ने लिखा है कि शीर्ष कोर्ट में चल रही प्रक्रिया की आलोचना करना अपने आप में कोर्ट की अवमानना नहीं है. यह भारतीय संविधान के तहत मिली अभिव्यक्ति की आजादी के तहत उनका अधिकार है.