जेएनयू चार्जशीट मामला: दिल्ली के कानून मंत्री ने मांगा कानून सचिव से जवाब
यह धारणा धीरे-धीरे पुष्ट होती जा रही है कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में लगे कथित देशद्रोह मामले को दिल्ली पुलिस ने राजनीतिक मकसद से भुनाना चाहती है. अब दिल्ली सरकार के कानून मंत्री कैलाश गहलोत ने कानून सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा है कि उन्होंने चार्जशीट की फ़ाइल उन्हें दिखाए बगैर गृह सचिव के पास कैसे भेजी.
दरअसल, इस मामले में दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट दायर करने के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया और इस संबंध में बीती 19 जनवरी को दिल्ली पटियाला हाउस कोर्ट ने उसको झिड़का भी था. कोर्ट ने पूछा था कि दिल्ली पुलिस ने कन्हैया कुमार समेत दस लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के लिए कानूनी पूर्व अनुमति क्यों नहीं ली. कोर्ट ने इस वजह से मामले का संज्ञान लेने से ही मना कर दिया था. वहीं दिल्ली पुलिस ने कहा था कि वह दस दिनों के भीतर आवश्यक अनुमति ले लेगी.
इस मामले में चार्टशीट दायर करने के लिए दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के कानून विभाग से अनुमति लेनी थी. नियमों के अनुसार, सरकार को चार्जशीट दायर करने की मंजूरी देने के लिए तीन महीने का वक्त मिलना चाहिए. इतना ही नहीं, सरकार चार्जशीट पर कोई फैसला लेने से पहले कानूनी सलाह भी ले सकती है. नियमों के तहत, चार्जशीट की फ़ाइल को एलजी के पास भी भेजे जाने का प्रावधान है. अगर सरकार निर्धारित तीन महीने में चार्जशीट पर कोई निर्णय नहीं ले पाती तो पुलिस को स्वतः चार्जशीट की अनुमति मिल जाती है.
कैलाश गहलोत ने नियमों की उपेक्षा के लिए कानून सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी किया है.
दिल्ली पुलिस ने 14 जनवरी को पटियाला हाउस कोर्ट में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के विवादस्पद कार्यक्रम मामले में चार्जशीट दाखिल की थी. इस मामले में दिल्ली पुलिस ने दस लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है. जिनमें जेनएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार, सैयद उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य शामिल हैं. ये तीनों जेएनयू के छात्र रहे हैं. इसके अलावा सात कश्मीरी- आकिब हुसैन, मुजीब हुसैन, मुनीब हुसैन, उमर गुल, रईस रसूल, बशारत अली और खालिद बशीर भट के खिलाफ चार्जशीट दर्ज की गई है.
यह सवाल शुरुआत से ही अनुत्तरित था कि साल 2016 के मामले में दिल्ली पुलिस निर्धारित 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दायर क्यों नहीं कर पाई. निर्धारित 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दायर नहीं करने के बावजूद आम चुनाव से ठीक पहले इस मामले पर आगे बढ़ने का राजनीतिक निहितार्थ क्या था?