जस्टिस लोकूर ने कॉलेजियम का फैसला वेबसाइट पर नहीं डालने का सवाल उठाया


justice lokur raises question on collegium process

 

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मदन बी लोकूर ने कहा कि वह इस बात से निराश हैं कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के 12 दिसंबर का फैसला वेबसाइट पर नहीं डाला गया.

उन्होंने कहा,’हम जो भी फैसला लेते हैं उसे वेबसाइट पर डाला जाता है. मैं निराश हूं कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम का फैसला वेबसाइट पर नहीं डाला गया.’

जस्टिस लोकूर 30 दिसंबर को रिटायर हुए थे. जिसके बाद 10 जनवरी को कॉलेजियम ने अपने 12 दिसंबर के फैसले पर फिर से विचार करते हुए जस्टिस दिनेश महेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना का सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन किया था.

जस्टिस लोकूर ने आगे यह भी कहा, मुझे नहीं पता कि मेरी रिटायरमेंट के बाद कौन से अतिरिक्त दस्तावेज आए जिसकी वजह से कॉलेजियम को फौसला बदलना पड़ा.

30 दिसंबर 2018 को जस्टिस लोकूर कॉलेजियम की चर्चा में शामिल हुए थे. इस चर्चा में सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति के लिए जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और जस्टिस राजेंद्र मेनन के नामों की सिफारिश पर कथित सहमति बनी थी.

हालांकि, बाद में दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और कर्नाटक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दिनेश माहेश्वरी का प्रमोशन करके शीर्ष अदालत में जज बनाया गया था.

कॉलेजियम व्यवस्था पर बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता है कि ये व्यवस्था विफल हुई है. हम मशीनों से नहीं इंसानों से डील करते हैं. कॉलेजियम में कुछ फेरबदल की जरूरत है. लेकिन इसे विफल नहीं कहेंगे. कॉलेजियम में स्वस्थ चर्चा होती है. और सहमति-असहमति इसका हिस्सा है. न्यायिक नियुक्तियों में समय-सीमा का पालन करने के लिए एक तंत्र होना चाहिए.’

उन्होंने स्पष्ट करते हुए बताया कि जब भी किसी की नियुक्ति या स्थानांतरण का सुझाव भारत के चीफ जस्टिस देते हैं तो उसकी कॉलेजियम के सदस्यों के बीच चर्चा की जाती है. ना कि उसे मान लिया जाता है.

जस्टिस लोकूर ने तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के काम करने के तरीके के खिलाफ चार सीनियर जजों की तरफ से 12 जनवरी 2018 बुलाए गए प्रेस कांफ्रेंस के बारे में कहा, ‘इसका आयोजन जरूरी था और इससे कुछ हासिल भी हुआ है. इससे सुप्रीम कोर्ट के कामकाज में थोड़ा खुलापन लेकर आया है.’


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