हांगकांग में सरकार के विरोध में विशाल मार्च
हांगकांग में सरकार के खिलाफ एक और विशाल मार्च निकाला गया. मार्च के अंत में मास्क पहने प्रदर्शनकारियों ने चीन के स्थानीय दफ्तर पर अंडे फेंके. चीन के शासन को लेकर सालों से बढ़ते आक्रोश से पैदा हुए इस बवाल का अंत फिलहाल नजर नहीं आ रहा है.
पुलिस और उग्र प्रदर्शनकारियों के बीच पिछले कुछ हफ्तों में कई बार छिटपुट हिंसक झड़प हुई हैं. इस दौरान कई मार्च निकाले गए हैं. इन घटनाओं को हांगकांग का हाल के वर्षों का सबसे गंभीर संकट माना जा रहा है.
इन प्रदर्शनों की शुरुआत सबसे पहले एक विवादित विधेयक को लेकर हुई. इस विधेयक के पारित हो जाने पर किसी आरोपी को चीन प्रत्यर्पित करने का मार्ग प्रशस्त हो जाता. विरोध प्रदर्शन के कारण अब इस विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.
हालांकि, विरोध प्रदर्शनों ने व्यापक रूप ले लिया है और अब लोकतांत्रिक सुधारों, सार्वभौमिक मताधिकार आदि की मांग की जा रही है.
साल 1997 में हांगकांग चीन को वापस सौंपा गया था, जिसके बाद से अभी बीजिंग की सत्ता को यहां सबसे बड़ी चुनौती मिलती दिख रही है. पुलिस को प्रदर्शन बंद कराने के लिए आंसू गैस के गोले और रबर की गोलियां दागनी पड़ रही है.
पिछले सात हफ्ते से हफ्ते के अंत में रैलियां आयोजित की जाती रही हैं और आज हुई रैली भी इसी का हिस्सा है. इस रैली में सरकार विरोधी हजारों प्रदर्शनकारियों ने हिस्सा लिया.
पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को सामान्य से थोड़ा छोटा रास्ता इस्तेमाल करने के आदेश दिए थे, लेकिन भीड़ ने इस फरमान की अनदेखी की और चीन की केंद्र सरकार की नुमाइंदगी करने वाले विभाग ‘लायजन ऑफिस’ की तरफ बढ़ने लगे.
इसके बाद मास्क पहने हजारों प्रदर्शनकारियों ने ‘लायजन ऑफिस’ के बाहर सड़क जाम कर दिया, बैरीकेड लगा दिए और चीन के दफ्तर की बहुमंजिली इमारत पर अंडे बरसाने शुरू कर दिए. इस इमारत पर लेजर लाइटें भी डाली गईं.
टोनी नाम के एक 19 वर्षीय प्रदर्शनकारी ने बताया, ‘‘हम यहां यह घोषणा करने आए हैं कि बीजिंग हमारी शासकीय मूल्यों और न्यायिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन कर रहा है.’’
मास्क पहने एक अन्य प्रदर्शनकारी ने कहा, ‘‘कोई हिंसक प्रदर्शन या दंगे नहीं हो रहे. यहां सिर्फ क्रूरता है. हम किसी भी तरीके से अपनी मातृभूमि की रक्षा करेंगे. हम सरकार से अपील करते हैं कि वह हांगकांग को बर्बादी की कगार पर नहीं ले जाए.’’
देर शाम बीजिंग के दफ्तर के बाहर पुलिस कहीं नजर नहीं आई, लेकिन प्रदर्शनकारियों को लग रहा था कि दंगा निरोधक अधिकारी जल्द ही जवाबी कार्रवाई करेंगे.
इससे पहले, अनिता पून (35) ने कहा कि इस हफ्ते के अंत में बुजुर्ग लोगों को रैली में हिस्सा लेते देख उन्होंने भी रैली में शिरकत का फैसला किया.
उन्होंने कहा, ‘‘जब बुजुर्ग महिलाएं घरों से बाहर आ रही हैं तो हम इसे टीवी पर कैसे देखते रह सकते हैं ? सरकार ने लोगों की आवाज पर प्रतिक्रिया नहीं दी है, इसलिए ऐसा होता रहता