जानें मुकदमों के बोझ से दबी हुई जिला अदालतों के बारे में


list of most stressed district courts in india

 

अक्सर यह कहा जाता है कि भारत में कानूनी मामलों में लम्बी अदालती प्रक्रिया चलना अपने आप में किसी सजा से कम नहीं है.

एक विश्लेषण के मुताबिक बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा में देश की सबसे अधिक मुकदमों के बोझ से दबी अदालतें हैं. सबसे अधिक मुकदमों से दबे 50 जिलों में से 45 इन तीन राज्यों में हैं. विश्लेषण के मुताबिक देश के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में स्थित कोर्ट पर मुकदमों का दबाव सबसे कम है.

लाइव मिंट की खबर के मुताबिक, यह विश्लेषण न्यायिक तनाव सूचकांक (judicial stress index) पर आधारित है. जो जिला अदालतों में लंबित मामले, अदालतों के बुनियादी ढांचे में कमी और जनसंख्या के अनुपात में मामलों के संबंध में जानकारी देता है.

न्यायिक तनाव सूचकांक में 0 कम तनाव और 1 अधिक तनाव को दर्शाता है. विश्लेषण के लिए 544 जिला अदालतों से आंकड़े लिए गए.

0.72 (न्यायिक तनाव सूचकांक मान) के स्कोर के साथ ओडिशा की अंगुल जिले की अदालत पर सबसे अधिक मुकदमों का बोझ है. इसके बाद बिहार की लखीसराय (0.61) और वैशाली (0.60) की जिला अदालते हैं.

भारत में सबसे कम बोझ वाली अदालतें मोहाली (0.06), चंडीगढ़ (0.07) और दक्षिणी दिल्ली (0.08) की जिला अदालत हैं.

हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़ और दिल्ली सहित देश के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में सबसे कम बोझ वाली अदालतें हैं. भौगोलिक रूप से सबसे कम तनाव वाली अदालतें देश में आर्थिक समृद्धि को दर्शाती हैं.

देश के सबसे गरीब राज्यों के सूची में शामिल उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा की अदालतें सबसे अधिक मुकदमों के बोझ का सामना कर रही हैं. इसके विपरीत, पंजाब और हरियाणा जैसे अपेक्षाकृत समृद्ध राज्यों में कम बोझ वाली अदालतें हैं.

भारत की सभी जिला अदालतों में लगभग 36% मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं. हालांकि यह आंकड़ा अदालतों में मत्वपूर्ण भौगोलिक भिन्नता को दर्शाता है.

देश की 46 जिला अदालतों में आधे से अधिक मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं. इनमें से अधिकतर देश के उत्तर-पूर्वी हिस्सों में स्थित हैं.

इनमें से 19 जिला अदालत उत्तर प्रदेश में हैं. यूपी के देवरिया में 67% से अधिक मामले लंबित हैं. ओडिशा के अंगुल (66%) और खुर्दा (64%) जिला लंबित मामलों की सूची में दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे.

बिहार के 14 जिले और ओडिशा के 9 जिले भी इसी सूची में शामिल हैं.

देश की 69 अदालतों में तीन साल से अधिक समय से 10 फीसदी मामले लंबित हैं. इनमें से अधिकतरहरियाणा (21), पंजाब  (20) और उत्तराखंड (8) में हैं.

उत्तराखंड के चम्पावत,गंगटोक हरियाणा के नुह के न्यायालयों में सबसे कम लंबित मामले हैं. यहां 2.5 फीसदी से कम मामले तीन साल से अधिक समय से लंबित हैं.

न्यायिक तनाव में तनाव के पीछे बुनियादी सुविधाओं में कमी जैसे अन्य कारण भी जिम्मेदार हैं. बुनियादी ढांचे की सुविधाओं में शौचालय और सुरक्षा के उपाय आदि जैसी चीजें शामिल हैं.

665 जिला अदालत परिसरों की कानूनी नीति के लिए विधि सेंटर द्वारा 2018 सर्वेक्षण और 6650 मुकदमों में राज्यों के भीतर बुनियादी ढांचे में काफी अंतर दिखाई देता है. राज्य की राजधानियां और शहरीकृत केंद्रों में ये सुविधाएं बेहतर हैं जिस कारण से ऐसे इलाकों का स्कोर भी अच्छा रहा. जबकि अन्य हिस्सों में इन सुविधाओं की काफी कमी रही.

हरियाणा, पंजाब, मेघालय और केरल की जिला अदालतों में बेहतर बुनियादी ढांचे हैं. वहीं मणिपुर, बिहार और राजस्थान में बुनियादी सुख -सुविधाओं की कमी हैं.

कोर्ट पर जनसंख्या के अनुपात में मामलों का भार न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला अन्य महत्त्वपूर्ण कारक है. अधिक भार वाली शीर्ष दस जिला अदालतों में से चार दिल्ली-एनसीआर में हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अन्य जगहों से भी मामले ट्रांसफर किए जाते हैं.

एनसीआर के इतर अदालतों पर भार के मामले में शीर्ष जिला अदालतें हिमाचल प्रदेश के किन्नौर और शिमला, केरल के तिरुवनंतपुरम, पठानमथिट्टा और कोल्लम से हैं.

सबसे कम मुकदमों वाली अदालतें उत्तर-पूर्व में हैं, इनमें 20 में से 13 नयायालयों में कम भार हैं. चंदेल, सेनापति और चुराचांदपुर में देश की सबसे कम भार वाली अदालतें हैं.

न्याय तक पहुंचने के लिए सुधार करना केवल मुद्दा नहीं हैं, बल्कि यह सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था की बेहतरी में योगदान देता है.

पिछले महीने प्रकाशित आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया कि निचली न्यायपालिका की क्षमताओं में सुधार भारत में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में अहम साबित हो सकता है.

सर्वे के मुताबिक जिला न्यायालयों पर दबाव कम करने का लाभ विभिन्न स्तरों पर देखने को मिलेगा. ऐसे में फिलहाल सबसे पहले निचली अदालतों के सुधार की दिशा में काम करने की जरूरत है.


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