पहली बार सामने आया महात्मा गांधी का स्वास्थ्य रिकॉर्ड


mahatma gandhi's helth record

 

महात्मा गांधी की आलोचना करते हुए एक बार विस्टन चर्चिल ने उन्हें ‘अधनंगा फकीर’ कहा था. लेकिन महात्मा गांधी ने ना सिर्फ भारतीय स्वतंत्रता में महती भूमिका निभाई बल्कि पूरी दुनिया को अपनी अहिंसक नीतियों से प्रभावित किया. कम बीएमआई और उच्च रक्तचाप के बावजूद अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिला देने वाले मोहन दास करमचंद गांधी क्या सिर्फ अपने मजबूत इरादों और धैर्य के बल पर इतना सब कुछ कर गुजरे?

महात्मा गांधी का व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड पहली बार आम लोगों के सामने आया है. इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने महात्मा गांधी के स्वास्थ्य रिकॉर्ड को ‘गांधी और स्वास्थ्य @150’ नाम की किताब में छापा है. इससे पहले ये रिकॉर्ड दिल्ली स्थित राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में रखे हुए थे.

इन रिकॉर्ड से महात्मा गांधी के स्वास्थ्य के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें सामने आई हैं. इसके मुताबिक सन् 1939 में महात्मा गांधी का वजन 46.7 किलोग्राम था, जबकि उनकी लंबाई 165 सेंटीमीटर थी. इसकी वजह से उनका बॉडी मॉस इंडेक्स (बीएमआई) 17.1 था. मौजूदा मानकों के मुताबिक ये बीएमआई काफी कम है. इसे अंडरवेट कहा जाएगा. उस वक्त भी स्वास्थ्य मंत्रालय इस तरह के लोगों को ठीक से और सही पोषण वाला भोजन लेने की सलाह देता था.

इतने बॉडी मास इंडेक्स वाले व्यक्ति को कमजोर की श्रेणी में रखा जाता है और उसे नियमित जांच और डॉक्टर से परामर्श की सलाह दी जाती है. लेकिन महात्मा गांधी ने इसके बावजूद भारत में बड़े अहिंसक आंदोलनों का नेतृत्व किया और आजादी को सुनिश्चित किया.

स्वास्थ्य रिकॉर्ड के मुताबिक गांधी को दूसरे तरह की स्वास्थ्य समस्याएं भी थीं. उन्हें तीन बार मलेरिया हुआ. पहली बार 1925 में फिर 1936 और 1944 में. महात्मा गांधी को बवासीर और अपेंडिक्स की समस्या से भी गुजरना पड़ा.

इसके अलावा लंदन में प्रवास के दौरान उन्हें फेफड़ों में संक्रमण की समस्या से भी गुजरना पड़ा. गांधी के व्रत काफी मशहूर हैं, उनके आंदोलन करने का ये अपना तरीका था. लेकिन इसके चलते उन्हें बहुत गंभीर परेशानियों से गुजरना पड़ा था. कई बार वह बस मरते-मरते बचे.

लेकिन एक और सवाल अकसर आपके जेहन में जरूर आता होगा कि अहिंसा, त्याग और क्षमा के इस पुजारी का दिल कितना स्वस्थ था? रिकॉर्ड से इस बात का खुलासा भी होता है.

1937 से 1940 के बीच महात्मा गांधी की इलेक्ट्रो-कार्डियोग्राम यानी कि इसीजी रिपोर्ट भी इस रिकॉर्ड में मौजूद है. इसीजी के मुताबिक गांधी के दिल में कोई गंभीर समस्या नहीं थी. लेकिन कॉर्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर बलराम भार्गव कहते हैं, “ये इसीजी रिपोर्ट तो सामान्य है, लेकिन उन्हें मायोकार्डिटिस की कुछ समस्या थी, जो कि गांधी की उस समय की उम्र में सामान्य है.”

इन सबके बीच जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है वो है गांधी का ब्लड प्रेशर यानी कि रक्तचाप. रिकॉर्ड के मुताबिक फरवरी 1940 में गांधी का ब्लड प्रेशर 220/110 था. मानकों के अनुसार ये हाई ब्लड प्रेशर के दायरे में आता है. इतने उच्च रक्तचाप के बावजूद गांधी किस तरह से खुद को इतना शांत रखते थे, ये बात सोचने लायक है.

फरवरी 1940 के कुछ महीने बाद गांधी ने डॉक्टर सुशीला नैय्यर को लिखा, “मैं सर्पगंधा के तीन बूंद का सेवन कर रहा हूं, इसके बावजूद मेरा रक्तचाप बढ़ रहा है.” इसका मतलब साफ है कि गांधी को लगातार उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझना पड़ रहा था.

गांधी के इस तरह के स्वास्थ्य के बावजूद इतना काम कर पाने के पीछे की वजह उनका पैदल चलना हो सकता है. रिकॉर्ड के मुताबिक गांधी रोज करीब 18 किलोमीटर पैदल चलते थे.

1913 से 1948 के दौरान तमाम आंदोलनों में वे करीब 79 हजार किलोमीटर पैदल चले. ये तकरीबन धरती का दो बार चक्कर लगाने के बराबर है.

अकसर ये कहा जाता है कि अगर आइजनहावर का ब्लड प्रेशर इतना ज्यादा ना होता तो शायद द्वितीय विश्व युद्ध ना होता. लेकिन गांधी ने अपने मामले में इस कथन को गलत साबित कर दिया.

अल्बर्ट आइंस्टीन ने यूं ही नहीं कहा, ‘‘आने वाली पीढ़ियों को ये यकीन करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति कभी इस धरती पर चला था.’’


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