संवाददाता, न्यूज़ प्लेटफॉर्म
एमसीडी में भ्रष्टाचार के 20 साल पुराने मामले में 10 साल की सजा
20 साल पहले हुए भ्रष्टाचार के मामले में तीस हजारी कोर्ट ने दोषियों को 10 साल की सजा सुनाते हुए कहा कि भ्रष्टाचारियों से किसी भी स्तर पर हमदर्दी या नरमी नहीं बरती जा सकती. भ्रष्टाचार के दोषियों को कड़ी सजा देना समाज की मांग है, और सजा सुनाते समय इस बात का ध्यान में रखा जाना चाहिए.
कोर्ट ने यह फैसला एमसीडी को साढ़े पांच करोड़ रुपये की चपत लगाने के मामले में एमसीडी के दो पूर्व अधिकारियों राम स्वरूप नारंग और राम किशन के खिलाफ दी है. दोनों को ही दस-दस साल की सजा के साथ 37-37 लाख रुपये के जुर्माने की सजा भी कोर्ट ने सुनाई है.
कोर्ट ने इसी मामले में एक दूसरे दोषी सुरेंद्र कुमार गुप्ता को सात साल और 27 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है. यह सजा तीस हजारी कोर्ट के विशेष न्यायाधीश किरण बंसल ने आपराधिक साजिश, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, विश्वासघात फर्जी दस्तावेज बनाने और इस्तेमाल करने और दूसरी धाराओं के तहत दोषी ठहराया.
सुरेंद्र कुमार गुप्ता के पिता और इस मामले में मुख्य आरोपी महेंद्र कुमार गुप्ता की सुनवाई के दौरान मौत हो चुकी है. जबकि कोर्ट सुरेंद्र की मां को पहले ही बरी कर चुकी है. दूसरी ओर इस मामले में शामिल दूसरे आरोपी बृज लाल की भी मौत हो चुकी है.
एमसीडी मुख्यालय टाउन हॉल में लेखा अधिकारी के पद पर कार्यरत बीपी झुमन ने भ्रष्टाचार रोक थाम शाखा को इसकी शिकायत की थी. शिकायत में कहा गया था कि सिविल लाइन जोन के तत्कालीन क्लर्क ने दूसरे दोषियों से मिली भगत कर इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के भुगतान के लिए जून 1998 से 5.49 करोड़ रुपये के 21 चेक जारी करवाए, लेकिन उन्हें अपने कार्यालय के एमसीडी सिविल जोन के बैंक खाते में जमा करवाने के बजाए उससे मिलते जुलते एमसीडी सिविल लाइन जोन के नाम के खातों में जमा करवाए.
इसके बाद महेंद्र कुमार गुप्ता के रिश्तेदार की कंपनी दीपक स्टील ट्रेडर्स के खाते में 43 लाख से ज्यादा रुपये ट्रांसफर किए. इसके अलावा महेंद्र कुमार गुप्ता ने अपनी पत्नी सरला गुप्ता की कंपनी श्री धारी रोलिंग मिल्स प्राइवेट लिमिटेड के खाते में 34 लाख और दूसरी बार 30 लाख रुपये जमा करवाए. इस कंपनी में महेंद्र गुप्ता को भी निर्देशक बनाया गया था.