मोदी सरकार में अधर में रही नई शिक्षा नीति


government increased da allowance of central government employees

 

साल 2014 में नई शिक्षा नीति (एनईपी) का वादा कर सत्ता में आई बीजेपी ने अब तक इसे लागू नहीं किया है.

मिंट में छपी खबर के मुताबिक शिक्षा के स्तर में आई कमी, बेहतर शिक्षकों की जरुरत और आधारभूत सुविधाओं का अभाव इस बात की ओर संकेत है कि देश में जल्द से जल्द एक नई शिक्षा नीति को लागू करने की जरुरत है.

सत्ता में आने से पहले बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में लोगों से नई शिक्षा नीति लागू करने का वादा किया था. पार्टी की ओर से कहा गया था कि यह नीति शिक्षा के बदलते पैमानों के अनुरूप होगी. लेकिन इसे लेकर सरकार का रवैया बता रहा है कि लोकसभा चुनावों और नई सरकार आने तक नई शिक्षा नीति लागू नहीं होगी.

पिछली शिक्षा नीति को लागू किए अब 30 साल से ज्यादा का समय बीत गया है. इस वजह से भी एनईपी की अहमियत अब काफी बढ़ गई है. इसका सीधा प्रभाव 29 करोड़ छात्रों के जीवन पर होगा.

कोठारी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर पहली शिक्षा नीति 1968 में लागू की गई थी. दूसरी शिक्षा नीति 1986 में लागू हुई. इसके बाद तीसरी नीति 1992 में लागू की गई, जिसे दूसरी शिक्षा नीति में कुछ बदलावों के साथ लागू किया गया था.

सरकार और तमाम शिक्षाविदों के लिए एनईपी को शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे तेज बदलावों के अनुरूप तैयार करना काफी चुनौतीपूर्ण होगा.

उम्मीदें है कि नई शिक्षा नीति में उदारीकरण के बाद देश में आए बदलावों, मशीनीकरण, बेरोजगारी की बढ़ती दर, और बढ़ती जनसंख्या की जरुरत जैसे तमाम पक्षों ध्यान में रखा जाएगा.

आंकड़े बताते हैं कि देश में करीब 900 विश्वविद्यालय और 50 हजार से ज्यादा कॉलेज और संस्थान हैं. इसके अलावा एक लाख चालीस हजार से ज्यादा स्कूल हैं. जबकि देश का कुल शिक्षा बजट 93,847 करोड़ ही है.

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के पूर्व सदस्य एमएम अंसारी ने कहा कि नई शिक्षा नीति को लागू करने को लेकर सरकार गंभीर नहीं है. उन्होंने कहा, “शिक्षा नीति निर्माण में बड़े स्तर पर संसाधनों का इस्तेमाल किया गया, लेकिन नीति लागू करने की तारीख को लगातार आगे बढ़ाया जा रहा है. टीआरएस सुब्रमण्यम समिति और के कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट में दिए गए सुझावों को बेकार कर दिया गया है.”

एनईपी पर मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि इस पर काम जारी है और इसे जल्द ही लागू कर लिया जाएगा. उन्होंने कहा, “नीति का दूसरा मसौदा तैयार कर लिया गया है, जिसे जल्द ही सार्वजनिक कर सुझाव लिए जाएंगे.”

जावड़ेकर के बयान के कुछ दिनों बाद ही एचआरडी मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि अब इसकी संभावनाएं कम ही है. उन्होंने कहा, “हमने नीति अगले 20 वर्षों को ध्यान में रखकर बनाई है. हम जानते है कि नीति लागू करने में देर हुई है, लेकिन नीति को सरकार के कार्यकाल के अंतिम छोर पर जल्दबाजी में लागू करना सही नहीं होगा.”

ऐसे में इस पर सवाल उठने जायज हैं. आखिर सरकार के लिए नई शिक्षा नीति और देश के छात्रों की शिक्षा कितनी अहमियत रखती है? दो समिति और तमाम सुझावों के बाद तैयार की गई नीति पर बीते चार साल में सरकार का रवैया टालमटोल वाला ही रहा है.


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