इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम राजनीतिक चंदे की पारदर्शिता के खिलाफ: चुनाव आयोग
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर केंद्र सरकार से असहमति जताते हुए भारत के निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि इस योजना से पॉलिटिकल फंडिंग की पारदर्शिता पर गहरा प्रभाव पड़ा है.
लाइव लॉ की एक खबर के अनुसार चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को चुनौती देती जनहित याचिकाओं के जवाब में एक कांउंटर हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दायर किया है. इस हलफनाफे से पता चलता है कि चुनाव आयोग ने मई 2017 में फाइनेंस एक्ट के पास होने के तुरंत बाद ही इस ओर अपनी असहमति जताई थी. इस फाइनेंस एक्ट ने ही कानून में संशोधन कर इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के लिए आधार तैयार किया था.
26 मई 2017 को कानून मंत्रालय को भेजे गए एक पत्र में चुनाव आयोग ने इस मामले में बिंदुवार अपनी असहमति दर्ज की थी.
2017 में पास हुए फाइनेंस एक्ट ने जो कानून संशोधन किया था, उसके तहत राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड से प्राप्त चंदे की जानकारी चुनाव आयोग को देनी जरूरी नहीं रह गई थी. चुनाव आयोग ने उस समय इस संशोधन को पॉलिटिकल फंडिंग की पारदर्शिता को लेकर बहुत ही पीछे जाने वाला कदम बताया था और तत्काल प्रभाव से इसे निरस्त करने की मांग की थी.
चुनाव आयोग ने कहा था कि यदि चंदे के स्रोत को जाहिर नहीं किया जाएगा तो यह पता लगाना असंभव होगा कि चंदा सरकारी और विदेशी स्रोतों से आया है. सरकारी और विदेशी स्रोतों से चंदा लेना लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के सेक्शन 29(B) के तहत निषिद्ध है.
इसी दौरान कंपनी एक्ट 2013 में किए गए संशोधन को लेकर भी चुनाव आयोग ने असहमति दर्ज कराई थी. इस एक्ट के सेक्शन 182 को संशोधित किया गया था. इस संशोधन के तहत चंदा देने की उस सीमा को हटा दिया गया था, जिसके अनुसार एक कंपनी अपने पिछले तीन वित्तीय वर्षों में हुए मुनाफे का केवल 7.5 फीसदी ही इलेक्टोरल बांड से राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में दे सकती थी.
चुनाव आयोग ने इसपर आपत्ति दर्ज करते हुए कहा था कि इस संशोधन से ऐसी शेल कंपनियों के खुलने की आशंका और बढ़ जाएगी, जिनका एक मात्र मकसद राजनीतिक चंदा देना होगा और जो इस धंधे को एक मुनाफे का धंधा बना लेंगी. इसके साथ ही आयोग ने कहा था कि इस संशोधन से राजनीतिक दलों को काले धन से फंड देना और आसान हो जाएगा.
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा है कि इलेक्टोरल बांड स्कीम को तुरंत समाप्त कर देना चाहिए. इससे पॉलटिकल फंडिंग की पारदर्शिता पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है और अभी तक जारी किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड का 95 प्रतिशत हिस्सा सत्ताधारी दल अर्थात बीजेपी के हिस्से में गया है.
वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि इससे पारदर्शिता और बढ़ी है. बहरहाल चुनाव आयोग की इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 2 अप्रैल को सुनवाई करेगा.