मुंबई के 2050 तक डूबने की आशंका: अध्ययन


Mumbai likely to drown by 2050: study

 

भारत, बांग्लादेश और इंडोनेशिया सहित अन्य एशियाई देशों में अनुमानित उच्च ज्वार रेखा के नीचे रहने वाली आबादी में इस सदी के अंत तक पांच से दस गुना वृद्धि देखी जा सकती है. एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है.

विश्व के सबसे बड़े एवं सघन आबादी वाले शहरों में से एक और भारत की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई पर 2050 तक डूबने का खतरा मंडरा रहा है.

अनुमानित उच्च ज्वार रेखा (प्रोजेक्टेड हाइ टाइड लाइन) तटीय भूमि पर वह निशान होता है जहां सबसे ऊंचा उच्च ज्वार साल में एक बार पहुंचता है.

यह शोध अमेरिका में क्लाइमेट सेंट्रल के स्कॉट ए कल्प और बेंजामिन एच स्ट्रॉस ने प्रकाशित करवाया.

क्लाइमेट सेंट्रल एक गैर लाभकारी समाचार संगठन हैं जिससे वैज्ञानिक और पत्रकार जुड़े हैं, जो जलवायु विज्ञान का आकलन करते हैं.

यह शोध नेचर कम्युनिकेशन्स जर्नल में प्रकाशित हुआ. इसमें भविष्य में जल स्तर में होने वाली वृद्धि और विश्व के प्रमुख हिस्सों में जनसंख्या घनत्व में वृद्धि के अनुमान को देखा गया. इसमें पाया गया कि समुद्र का जल स्तर बढ़ने से पहले के अनुमानों के मुकाबले तीन गुना अधिक लोग प्रभावित होंगे.

वैज्ञानिकों ने यह पता लगाने का प्रयास किया कि वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या घनत्व वाले निचले इलाके समुद्र का जल स्तर बढ़ने के कारण कितने असुरक्षित हैं.

शोधकर्ताओं के मुताबिक दुनियाभर में करीब 25 करोड़ लोग ऐसी भूमि पर रह रहे हैं जो सालाना बाढ़ के दौरान पानी में डूब सकती है.

नए अनुमानों के मुताबिक एक अरब लोग ऐसी भूमि पर रह रहे हैं जो वर्तमान की उच्च ज्वार रेखा से 10 मीटर से भी कम ऊंचाई पर है. इनमें 25 करोड़ लोग उच्च ज्वार रेखा से एक मीटर नीचे रह रहे हैं.

शोधकर्ताओं का कहना है कि दुनियाभर में प्रभावित भूमि पर रह रहे कुल लोगों में से 70 फीसदी से अधिक चीन, बांग्लादेश, भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपीन और जापान जैसे आठ एशियाई देशों में हैं.

संशोधित अनुमानों के आधार पर कहा गया है कि भारत, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और फिलीपीन में अनुमानित उच्च ज्वार रेखा से नीचे रहने वाली वर्तमान आबादी में पांच से दस गुना इजाफा हो सकता है.

शोध में कहा गया कि वर्ष 2050 तक 34 करोड़ लोग ऐसी जगहों पर रह रहे होंगे जो सालाना बाढ़ के पानी में डूब जाएगी जबकि इस सदी के अंत तक यह संख्या 63 करोड़ हो जाएगी.


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